सौर चुंबकीय क्षेत्र अनुसंधान – Drishti IAS


सौर चुंबकीय क्षेत्र अनुसंधान

स्रोत: पी.आई.बी.

हाल ही में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics- IIA) के खगोलविदों ने सौर वायुमंडल की विभिन्न परतों पर चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करके सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करने का एक नया तरीका खोजा है। खगोलविदों ने IIA के कोडईकनाल टॉवर टनल टेलीस्कोप से प्राप्त डेटा का उपयोग करके ऐसा किया है।

  • शोध विवरण: अध्ययन में सक्रिय सनस्पॉट क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें कई अम्ब्रे (गहरा केंद्रीय क्षेत्र) और एक पेनुम्ब्रा (बाहरी हल्का क्षेत्र) सहित जटिल विशेषताएँ शामिल हैं।
    • अवलोकन हाइड्रोजन-अल्फा रेखा और कैल्शियम II रेखा का उपयोग करके किये गए। ये रेखाएँ सौर वायुमंडल में विभिन्न ऊँचाइयों पर चुंबकीय क्षेत्र के स्तरीकरण का अनुमान लगाने में मदद करती हैं।
    • महत्व: यह निष्कर्ष सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण हैं तथा सौर चुंबकीय परिघटनाओं का अधिक विस्तार से पता लगाने के लिये भविष्य के अध्ययनों हेतु मंच तैयार करते हैं।

  • कोडईकनाल टॉवर टनल टेलीस्कोप: यह तीन दर्पण आधारित सौर दूरबीन है, जिसका स्वामित्व और संचालन भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के पास है।
    • ब्रिटिश खगोलशास्त्री जॉन एवरशेड ने पहली बार वर्ष 1909 में भारत के कोडईकनाल वेधशाला में एवरशेड प्रभाव देखा था।
      • एवरशेड प्रभाव एक ऐसी घटना है, जो सूर्य के धब्बों की सतह पर गैस के प्रवाह का वर्णन करती है।

  • सौर वायुमंडल के बारे में: सौर वायुमंडल चुंबकीय क्षेत्रों के माध्यम से परस्पर जुड़ी परतों से बना है। ये क्षेत्र ऊर्जा और द्रव्यमान को स्थानांतरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो “कोरोनल हीटिंग समस्या” को हल करने में मदद करता है तथा सौर हवा को चलाता है।
    • कोरोनाल हीटिंग समस्या सौर भौतिकी में एक रहस्य है, जिसमें यह समझना शामिल है कि सूर्य का कोरोना (सूर्य के वायुमंडल की सबसे बाहरी परत) उसके नीचे की परतों की तुलना में अधिक गर्म क्यों है।

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