Jagannath Rath Yatra 2024: भगवान जगन्नाथ को स्वस्थ करने के लिए पिलाया जा रहा है काढ़ा, इस दिन खोलेंगे आंखें


हर साल धूम-धाम से जगन्नाथ रथ यात्रा पर्व मनाया जाता है। इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बल भद्र, रथ में सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। इस दौरान वे नगरभ्रमण करते हैं। रथ यात्रा से पहले नेत्रोत्सव मनाया जाता है, जिसके बाद तीनों देव, भक्तों को दर्शन देते हैं।

By Ekta Sharma

Publish Date: Wed, 03 Jul 2024 12:19:54 PM (IST)

Updated Date: Wed, 03 Jul 2024 12:19:54 PM (IST)

भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियां

HighLights

  1. ज्यादा स्नान करने से बीमार हो जाते हैं भगवान जगन्नाथ।
  2. बीमार होने पर तीनों देव को एकांतवास में रखा जाता है।
  3. एकांतवास में 15 दिनों तक की जाती है तीनों देव की सेवा।

धर्म डेस्क, इंदौर। Jagannath Rath Yatra 2024: हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होती है। इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई से शुरू होगी, जो कि 16 जुलाई को समाप्त होगी। रथ यात्रा शुरू होने से पहले कुछ प्रक्रिया भी की जाती हैं, जो ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि से शुरू होती हैं। इस दिन जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम को स्नान कराया जाता है।

स्नान के बाद, तीनों देवता बीमार हो जाते हैं और ठीक होने के लिए उन्हें शाही चिकित्सक के नियंत्रण में एकांतवास में रखा जाता है। इस दौरान उन्हें काढ़ा आदि दिया जाता है और उनका उपचार किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि दी जाने वाली आयुर्वेदिक दवा से वे 15 दिनों में ठीक हो जाते हैं। इसके बाद रथ यात्रा शुरू की जाती है।

एकांतवास में हैं तीनों देव

इस समय भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा एकांतवास में हैं। स्नान करने और बीमार पड़ने के बाद जब भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा 15 दिनों के लिए एकांतवास में रहते हैं, तो भक्त उनके दर्शन नहीं कर पाते हैं।

15 दिनों तक भगवान का आम लोगों की तरह ही इलाज किया जाता है। भगवान को आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां और काढ़े का भोग लगाया जाता है। 15 दिनों तक भगवान को शीतल लेप भी लगाया जाता है।

प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाएगा नेत्रोत्सव

भगवान को रात को सोने से पहले मीठा दूध पिलाया जाता है। इस दौरान न तो मंदिर की घंटी बजती है, न ही भक्त दर्शन कर सकते हैं। इस दौरान भगवान को अन्न का भोग नहीं लगाया जाता है।

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं। इस उपलक्ष्य में नेत्रोत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है। इस नेत्र उत्सव में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र को नई आंखें प्रदान की जाती हैं। इसके बाद ही सभी भक्त पहली बार भगवान के दर्शन करते हैं।

नेत्र उत्सव के बाद जगन्नाथ रथ यात्रा का उत्सव शुरू होता है। तीनों देव को विशाल और भव्य रथों में विराजित किया जाता है। इस रथ को मंदिर से बाहर निकाला जाता है और तीनों देवताओं को नगर भ्रमण कराया जाता है।

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