चने की खेती में क्रांति लाने वाली दो नई किस्में


चने की खेती के लिए सबसे अच्छी किस्में

चना एक प्रमुख दलहनी फसल मानी जाती है। चना की खेती करके किसान अच्छा उत्पादन के साथ भरपूर मुनाफा कमा सकते हैं। हाल के दिनों में इसकी कीमतों में बढ़ोतरी हुई है, इसलिए अधिक किसान इसकी खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। किसानों को चना की खेती से अधिक लाभ पहुंचाने के लिए चना की नई वेरायटी विकसित की गई है। हाल ही में पीएम मोदी ने दिल्ली स्थित फसलों की 109 किस्मों को जारी किया। यह किस्में अच्छी पैदावार देती है और इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, जिसमें न कीट और रोग न के बराबर होता है।

चने की खेती रबी सीजन में अक्टूबर-नवंबर के दूसरे सप्ताह तक की जाती है, सर्दियों के मौसम में किसान इन दोनों ही किस्मों की खेती करके बेहतर उत्पादन ले सकते हैं। इन दोनों की किस्मों की खासियत यह है कि यह रोगरोधी किस्में हैं। आइए जानते हैं चने की इन दोनों किस्मों की खासियत क्या है।

चने की इन किस्मों की खासियत और उपज:

चना पंत ग्राम 10 (पीजी 265): चना पंत ग्राम 10 (पीजी 265) चना की एक बेहतरीन नई वेरायटी है। चना की इस खास किस्म को आईसीएआर-एआईसीआरपी ऑन पल्सेस जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर उत्तराखंड के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया है। चना की इस किस्म को उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के किसानों के लिए तैयार किया गया है। रबी सीजन में बुवाई के लिए यह किस्म काफी अच्छी मानी जाती है। चने की यह किस्म को 130 दिनों में तैयार होती है। चने की इस किस्म की खेती से किसान प्रति हेक्टेयर औसतन 17.79 क्विटंल की पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। यह किस्म मुरझाने, कॉलर रोट और स्टंट जैसी बीमारियों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी और फली छेदक के प्रति सहनशील है।

चना नंद्याल ग्राम 1267: चना नांदयाल ग्राम 1267 की इस किस्म को आईसीएआर-एआईसीआरपी ऑन पल्सेज़, मुख्य केंद्र, RARS, नंद्याल, आचार्य एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है। चने की यह किस्म दक्षिणी क्षेत्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु किसानों के लिए इसकी खेती वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसमें 15.96% प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इस किस्म को तैयार होने में 90-95 दिनों का समय लगता है। इस किस्म की खेती करके किसान प्रति हेक्टेयर औसतन 20.95 क्विंटल तक का उपज प्राप्त कर सकते हैं।



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