ओशो रजनीश ने जबलपुर के लिए कही थी यह बात… शरद पूर्णिमा पर आज भी याद करते हैं लोग


अपने छह दशक के कुल जीवनकाल में से सर्वाधिक दो दशक मध्‍य प्रदेश के जबलपुर में निवासरत रहे आचार्य रजनीश यानि ओशो को यह शहर अतिशय प्रिय था। यहां से मुंबई, पुणे होते हुए अमेरिका पहुंचकर विश्वविख्यात होने के उपरांत भी वे जबलपुर को शिद्दत से स्मरण करते रहे। उनका कहना था कि जबलपुर मेरा पर्वतस्थल है, जहां मैं सर्वाधिक आनंदित हुआ।

By Surendra Dubey

Publish Date: Thu, 17 Oct 2024 10:13:44 AM (IST)

Updated Date: Thu, 17 Oct 2024 10:19:53 AM (IST)

निसर्ग के सानिध्य में ओशो। फोटो : फाइल

HighLights

  1. जबलपुर में इस जगत का, इस पृथ्वी का एक सुंदरतम स्थल है।
  2. मुक्ताकाशी मंच पर नर्मदा महोत्सव की शुरुआत हुई थी।
  3. शरदपूर्णिमा की रात्रि में यहां उपस्थित होता है नयनाभिराम दृश्य।

सुरेन्द्र दुबे, नईदुनिया, जबलपुर(Sharad Purnima 2024)। जबलपुर में इस जगत का, इस पृथ्वी का एक सुंदरतम स्थल है, संगमरमरी भेड़ाघाट। शायद ही पृथ्वी पर इतनी सुंदर कोई दूसरी जगह होगी। यहां नर्मदा दो मील तक संगमरमर की पहाड़ियों के बीच से बहती हैं।

हजारों ताजमहल का सौंदर्य इकट्ठा

संगमरमर की पहाड़ी यानी जैसे हजारों ताजमहल का सौंदर्य इकट्ठा कर दिया गया हो और बीच से नर्मदा का बहाव। इससे बड़ा ही अपूर्व दृश्य उपस्थित होता है। शरपूर्णिमा की रात्रि में यहां जो नयनाभिराम दृश्य उपस्थित होता है, उसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं है।

संगमरमरी सौंदर्य में कई गुना इजाफा हो जाता

ओशो ने अपने एक प्रवचन में संस्मरण सुनाते हुए कहा था कि एक बार मैं दुनिया घूम चुके अपने एक वृद्ध प्रोफेसर को भेड़ाघाट दिखाने ले गया। वह शरदपूर्णिमा की रात थी। इस दिन तो नर्मदा के नैसर्गिक संगमरमरी सौंदर्य में कई गुना इजाफा हो जाता है।

पहली बार भेड़ाघाट के अनुपम दृश्य को देखा

यही वजह थी कि जीवन में पहली बार भेड़ाघाट के अनुपम दृश्य को देखकर वह वृद्ध प्रोफेसर एकदम आवाक से रह गए। इतने आनंदित हुए की उनकी आंखों से आंसू छलकने लगे। वह भाव-विह्वल होकर रोने लगे।

… जो मैं देख रहा हूं, क्या यह सब सच में है

नौकाविहार शुरू हुआ तो कहने लगे कि यह जो मैं देख रहा हूं, क्या यह सब सच में है। क्योंकि मुझे लगता है, मैं कोई सपना देख रहा हूं।

भरोसा नहीं हो रहा था, स्पर्श कर जानना चाहते थे

नाविक से कहा कि वह नाव को किनारे लगाए, ताकि वह संगमरमर की पहाड़ियों को छूकर महसूस कर सकें। उनको अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था, स्पर्श कर जानना चाहते थे कि क्या वह सच देख रहे हैं।

शरदपूर्णिमा पर नर्मदा महोत्सव बन गया पहचान

कुछ दशक पूर्व शिवतनया नर्मदा के विश्वप्रसिद्ध जलप्रताप धुंआधार के समीप मुक्ताकाशी मंच पर नर्मदा महोत्सव की शुरुआत हुई थी। कालांतर में यह आयोजन देश-दुनिया में चर्चित हो गया। यहां दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित होता है।

भेड़ाघाट का स्वर्गिक सौंदर्य देख हतप्रभ

सुधि श्रोता गीत-संगीत व नृत्य की मस्ती में गोते लगाते हुए शरदपूर्णिमा के पूरे खिले चांद के साक्षीत्व में भेड़ाघाट का स्वर्गिक सौंदर्य देख हतप्रभ से रह जाते हैं। इस दौरान ओशो के शब्द बरबस ही जेहन में कौंध जाते हैं।



Source link

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
Exit mobile version