मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर से करीब 80 किमी दूर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शनिवार को शिवभक्तों का तांता लगा रहा। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में भगवान की अगवानी ढोल-नगड़े के साथ की गई। दरअसल, मान्यता है कि गोपाष्टमी से भैरव जयंती तक 15 दिनों के लिए भगवान मालवा क्षेत्र में अपने भक्तों से मिलने जाते हैं।
By Shashank Shekhar Bajpai
Edited By: Shashank Shekhar Bajpai
Publish Date: Sat, 23 Nov 2024 10:41:43 AM (IST)
Updated Date: Sat, 23 Nov 2024 10:41:43 AM (IST)
HighLights
- भैरव अष्टमी को मालवा-निमाड़ की 15 दिवसीय यात्रा से लौटेंगे भगवान ओंकारेश्वर।
- मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त में भगवान की अगवानी ढोल-नगाड़े और शंखनाद के साथ की गई।
- कार्तिक शुक्ल गोपाष्टमी से भैरव जयंती तक मालवा में भक्तों से मिलने जाते हैं भगवान।
नईदुनिया प्रतिनिधि, खंडवा। एक पखवाड़े तक मालवा भ्रमण के उपरांत भगवान ओंकारेश्वर महादेव भैरव अष्टमी पर शनिवार को तीर्थनगरी लौटेंगे। मान्यता है कि भोलेनाथ यहां माता पार्वती के साथ चौसर खेलते हैं। यहां रात में चौसर बिछाकर मंदिर को बंद कर दिया जाता है।
अगली सुबह जब मंदिर के पट खुलते हैं, तो चौसर और पासे बिखरे हुए मिलते हैं। सांकेतिक रूप से 15 दिन की यात्रा पर भगवान के जाने की परंपरा के चलते इस दौरान मंदिर में रात्रि के समय गर्भगृह में चौपड़-पासे और झूला नहीं सजता है।
शनिवार को भगवान के लौटते ही अब ये सब पूर्ववत होने लगेगा। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शनिवार को ब्रह्म मुहूर्त में परंपरा अनुसार भगवान की अगवानी ढोल-नगाड़े और शंखनाद के साथ हुई। मंगला आरती के समय भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के मूल स्वरूप, मां पार्वती और पंचमुखी गणेश का शृंगार व पूजन होगा।
वहीं, त्रिकाल भोग के अलावा रात्रि में गर्भगृह में शयन आरती के उपरांत चौपड़ और झूला सजना शुरू हो जाएगा। भगवान के लौटने पर मंदिर ट्रस्ट के पं. राजराजेश्वर दीक्षित के आचार्यत्व में कोटितीर्थ घाट पर मां नर्मदा का पूजन और आरती होगी।
प्राचीन समय से चल रही है परंपरा
ट्रस्ट के पं. आशीष दीक्षित ने बताया कि कार्तिक शुक्ल की गोपाष्टमी से भैरव जयंती तक भगवान के 15 दिन के लिए मालवा क्षेत्र में अपने भक्तों से मिलने जाने की परंपरा रही है। प्राचीन समय से मान्यता है कि भगवान ओंकारेश्वर भक्तों का हालचाल जानने के लिए मालवा जाते हैं।
पूर्व में भगवान ओंकारेश्वर पालकी में सवार होकर ओंकारेश्वर से मालवा भ्रमण लाव-लश्कर के साथ रवाना होते थे। साथ में पुजारी, सेवक, नगाड़े, ढोल-नगाड़े और रसोइया भी जाते थे। अब यह सब सांकेतिक रह गया है। समय के परिवर्तन के साथ अब पालकी के बजाय सूक्ष्म रूप से भगवान को मालवा के लिए कार्तिक शुक्ल गोपाष्टमी को रवाना किया जाता है।
इंदौर से करीब 80 किमी है दूरी
भगवान की अनुपस्थिति में मंदिर में सामान्य धार्मिक आयोजन ही होते हैं। बताते चलें कि 12 ज्योतिर्लिंगों में से ओंकारेश्वर को खास माना जाता है। कहते हैं कि तीनों लोक का भ्रमण करके महादेव रोजाना इसी मंदिर में रात को सोने के लिए आते हैं।
मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर से ओंकारेश्वर की दूरी करीब 80 किमी है। यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इंदौर का देवी अहिल्या बाई होल्कर एयरपोर्ट है। इसके अलावा ट्रेन से यहां पहुंचने के लिए ओंकारेश्वर रोड रेलवे स्टेशन पर उतरा जा सकता है, जो इंदौर और खंडवा जैसे बड़े रेलवे स्टेशन से जुड़ा है।