रेशम कपास पर संकट – Drishti IAS


रेशम कपास पर संकट

स्रोत: द हिंदू

राजस्थान में आदिवासी धार्मिक परंपराओं, विशेषकर होलिका-दहन अनुष्ठानों में अत्यधिक उपयोग के कारण रेशम कपास के पेड़ (बॉम्बैक्स सीबा एल/Bombax ceiba L.) खतरे में हैं।

  • इसे सेमल या भारतीय कपोक वृक्ष या संस्कृत में शाल्मली भी कहा जाता है।
    • आदिवासी लोग होलिका में इस वृक्ष को जलाने के कार्य को एक पुण्य अनुष्ठान के रूप में देखते हैं।
    • वर्ष 2009 में उदयपुर ज़िले में होली के दौरान लगभग 1,500-2,000 पेड़ों काटकर आग लगा दी गई।

  • यह वृक्ष मुख्य रूप से नम पर्णपाती और अर्ध-सदाबहार जंगलों में मैदानी इलाकों में भी पाया जाता है।
    • भारत में वृक्षों की यह प्रजाति आमतौर पर अंडमान और निकोबार द्वीप, असम, बिहार, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में मिलती है।

  • यह पेड़ उच्च औषधीय महत्त्व का है; इसकी जड़ों और फूलों का उपयोग इनके उत्तेजक, कसैले एवं हेमोस्टैटिक गुणों के लिये किया जाता है। इसका उपयोग कामोत्तेजक, दस्त को रोकने, दिल को मज़बूत करने, सूजन को कम करने, पेचिश का इलाज करने तथा बुखार दूर करने के लिये किया जाता है।
    • इसमें जीवाणुरोधी और एंटीवायरल गुण भी होते हैं, यह दर्द से राहत देता है, लीवर की रक्षा करता है, एंटीऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करता है तथा रक्त शर्करा के स्तर को कम करता है।
    • इसका उपयोग कृषि वानिकी में पशुओं के चारे के लिये भी किया जाता है। जहाज़ निर्माण के लिये इसकी लकड़ी मज़बूत, लचीली और टिकाऊ होती है।

  • राजस्थान की कथोड़ी जनजाति ढोलक और तंबूरा जैसे संगीत वाद्ययंत्रों के लिये इस लकड़ी का उपयोग करती है तथा भील समुदाय द्वारा इसका उपयोग रसोई के चम्मच बनाने के लिये किया जाता है।

और पढ़ें: आदिवासी आजीविका की स्थिति (SAL) रिपोर्ट, 2022

Please enable JavaScript to view the comments powered by Disqus.





Source link

Exit mobile version