परिप्रेक्ष्य: बाबा साहेब अंबेडकर की विरासत


चर्चा में क्यों?

चूँकि भारत 6 दिसंबर 2024 को डॉ. बी.आर. अंबेडकर की पुण्यतिथि के रूप में 69वें महापरिनिर्वाण दिवस मनाएगा। इस अवसर पर, 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये शिक्षा, सामाजिक न्याय और शासन में अंबेडकर के विचारों तथा सिद्धांतों को अपनाने का महत्त्व और भी प्रासंगिक हो जाता है।

टिप्पणी:

  • बौद्ध ग्रंथों में महापरिनिर्वाण का तात्पर्य जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति से है, जो पूर्ण शांति एवं आध्यात्मिक मुक्ति का प्रतीक है। 

डॉ. बी.आर. अंबेडकर का योगदान क्या है?

  • सामाजिक सुधार और जातिगत भेदभाव का उन्मूलन:
  • संवैधानिक वास्तुकार:
    •  भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में, डॉ. अंबेडकर ने यह सुनिश्चित किया कि यह समानता, न्याय और बंधुत्व का समर्थन करते हुए एक परिवर्तनकारी और प्रगतिशील दस्तावेज़ बने।
    • भारतीय संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का प्रावधान किया, जिससे भारतीय महिलाओं को आरंभ से ही समान मताधिकार मिला। यह उस समय उल्लेखनीय था जब अमेरिका, ब्रिटेन और फ्राँस जैसे कई पुराने लोकतांत्रिक देशों में महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त करने के लिये लंबा संघर्ष करना पड़ा।

  • महिला अधिकारों के लिये अधिवक्ता:
    • डॉ. अंबेडकर ने महिलाओं की मुक्ति के लिये संघर्ष किया तथा मातृत्व लाभ और समान अधिकारों का समर्थन किया।
    • उन्हें भारत में नारीवाद का अग्रदूत माना जाता है, क्योंकि उन्होंने महिलाओं के मुद्दों को वैज्ञानिक रूप से संबोधित किया और उनके अधिकारों को संविधान में शामिल किया।

  • आर्थिक दूरदर्शी:
  • शिक्षा और सशक्तीकरण:
    • डॉ. अंबेडकर ने शिक्षा को मुक्ति का प्रमुख साधन मानते हुए, गंभीर भेदभाव का सामना करने के बावजूद कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
    • आत्म और सामाजिक उत्थान के साधन के रूप में शिक्षा पर उनका ज़ोर समकालीन भारत के लिये एक मार्गदर्शक सिद्धांत बना हुआ है।

  • अवसंरचना विज़न: दामोदर घाटी परियोजना, हीराकुंड बाँध और सोन नदी परियोजना जैसी बड़े पैमाने की अवसंरचना परियोजनाओं की परिकल्पना की गई तथा उन्हें बढ़ावा दिया गया, ताकि स्थायी संसाधन प्रबंधन एवं राष्ट्रीय विकास सुनिश्चित हो सके। 
  • शिक्षाओं की वैश्विक प्रासंगिकता:
    • डॉ. अंबेडकर की शिक्षाएँ श्रम कानूनों, लैंगिक समानता और संघर्षों के समाधान के लिये संवैधानिक साधनों के उपयोग के संदर्भ में सार्वभौमिक प्रासंगिकता रखती हैं।
    • उनका बौद्ध दर्शन और सामाजिक सद्भाव पर ज़ोर, उनके विचारों को वैश्विक सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिये प्रासंगिक बनाता है।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर को सरकार की श्रद्धांजलि 

  • भारत रत्न पुरस्कार: डॉ. अंबेडकर को वर्ष 1990 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
  • अंबेडकर सर्किट: अंबेडकर के जीवन से जुड़े पाँच स्थानों को तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया गया (पंचतीर्थ विकास): 
    • जन्मस्थान महू 
    • लंदन में स्मारक (शिक्षा भूमि) 
    • नागपुर में दीक्षा भूमि 
    • मुंबई में चैत्य भूमि 
    • दिल्ली में महापरिनिर्वाण भूमि 

  • भारत इंटरफेस फॉर मनी (भीम) ऐप: डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिये उनके सम्मान में एक डिजिटल भुगतान ऐप लॉन्च किया गया, जो वित्तीय समावेशन और सशक्तीकरण का प्रतीक है। 
  • डॉ. अंबेडकर उत्कृष्टता केंद्र (डीएसीई): 31 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शुरू किये गए ये केंद्र अनुसूचित जाति के छात्रों को सिविल सेवा परीक्षाओं के लिये निशुल्क कोचिंग प्रदान करते हैं। 
  • अंबेडकर सामाजिक नवप्रवर्तन और उद्भवन मिशन (एएसआईआईएम): यह अनुसूचित जाति के युवाओं को उनके स्टार्टअप विचारों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • स्मारक टिकट और सिक्के: डॉ. अंबेडकर की विरासत को सम्मानित करने के लिये 10 रुपए और 125 रुपए मूल्यवर्ग के सिक्के और एक स्मारक डाक टिकट जारी किये गए। 
  • राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक: संकल्प भूमि बरगद परिसर (वडोदरा) और सतारा में अंबेडकर स्कूल जैसे स्थलों को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में प्रस्तावित किया गया। 
  • संविधान दिवस समारोह: वर्ष 2015 से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो भारतीय संविधान के निर्माण में डॉ. अंबेडकर की महत्त्वपूर्ण भूमिका का सम्मान करता है।

अंबेडकर के सपने को साकार करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • शैक्षिक असमानताएँ: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच असमान बनी हुई है, समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्ग अक्सर मुख्यधारा की शिक्षा व्यवस्था से बाहर रह जाते हैं।
  • लैंगिक असमानता: यद्यपि प्रगति हुई है, फिर भी लैंगिक भेदभाव और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर अभी भी तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • जाति व्यवस्था का प्रचलन: संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद, जाति-आधारित भेदभाव विभिन्न रूपों में जारी है, जिनमें अस्पृश्यता, सामाजिक बहिष्कार और दलितों तथा हाशिये के समूहों के खिलाफ हिंसा शामिल है।
  • सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: समृद्ध और हाशिये पर पड़े समुदायों के बीच की खाई को पाटने के लिये निरंतर प्रयासों और नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
  • अधिकारों के प्रति जागरूकता का अभाव: वंचित पृष्ठभूमि के कई व्यक्ति अपने संवैधानिक अधिकारों और हकों के प्रति अनभिज्ञ रहते हैं।
  • मानसिकता परिवर्तन में धीमी प्रगति: गहरे सामाजिक दृष्टिकोण को बदलना और स्थापित पदानुक्रम को समाप्त करना एक लंबी और पीढ़ी दर पीढ़ी चुनौती बन चुकी है।

आगे की राह

  • शिक्षा की भूमिका:
    • सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की समान पहुँच सुनिश्चित करना, विशेष रूप से हाशिये पर पड़े वर्गों के लिये, अब भी एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे अपने पाठ्यक्रम में ऐसी शिक्षाएँ शामिल करनी चाहिये, जो छात्रों को उनकी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा दे सकें।

  • सामाजिक और आर्थिक सुधार:
    • अंबेडकर का जातिविहीन, समतावादी समाज का सपना अभी भी प्रगति पर है। जाति-आधारित भेदभाव को खत्म करने, हाशिये पर पड़े समुदायों के प्रतिनिधित्व में सुधार लाने और रोज़गार एवं शिक्षा में समान अवसरों को बढ़ावा देने की पहल महत्त्वपूर्ण है।

  • मानसिकता में त्वरित परिवर्तन:
    • ज़मीनी स्तर पर आंदोलनों, मीडिया अभियानों और शैक्षिक सामग्री के माध्यम से संवाद को बढ़ावा देना चाहिये, ताकि जड़ जमाए हुए पदानुक्रमों तथा पूर्वाग्रहों को चुनौती दी जा सके।
    • रूढ़िवादिता को दूर करने और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिये कहानी कहने, कला एवं सोशल मीडिया जैसे सांस्कृतिक साधनों का लाभ उठाएँ। सामाजिक विभाजनों के बीच विश्वास और समझ बनाने के लिये अंतर-समुदाय सहयोग तथा साझा मंचों को प्रोत्साहित करना चाहिये।

  • हितधारकों की भूमिका:
    • नागरिक समाज संगठन, सरकारी संस्थान और कॉर्पोरेट संस्थाएँ सभी को अपनी भूमिका निभानी होगी ताकि वे उनकी विरासत के प्रचार-प्रसार में योगदान दे सकें।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी से वंचित छात्रों के लिये छात्रवृत्ति, सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा सामाजिक न्याय और संवैधानिक अधिकारों के विषय में जागरूकता अभियान जैसी पहलों को बढ़ावा मिल सकता है।




  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस पार्टी की स्थापना डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने की थी? (2012)

  1. पीज़ेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी 
  2. ऑफ इंडिया ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन 
  3.  द इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (B) 


मेन्स: 

Q. अलग-अलग दृष्टिकोण और रणनीतियों के बावजूद महात्मा गांधी तथा डॉ. बी.आर. अंबेडकर का दलितों के उत्थान का एक सामान्य लक्ष्य था। स्पष्ट कीजिये। (2015)





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