धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग, और जानिए रोकथाम के उपाय, जाने khetivyapar पर | धान की फसल | धान के रोगों की रोकथाम | धान के रोग | रोग प्रबंधन | धान के प्रमुख रोग एवं निदान | धान में लगने वाले रोग | Paddy Farming | paddy crop diseases | paddy diseases and control | Common rice diseases


धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग

धान एक प्रमुख खाद्यान्न् फसल है। चावल के उत्पादन में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर आता है। खेती के हर चरण में अलग-अलग बीमारियों का प्रकोप होता है। जिससे किसानों को इससे बचने के लिए कई उपाय करने पड़ते हैं। वहीं, कुछ किसान ऐसे भी हैं जो जिनको पर्याप्त जानकारी नहीं होने से अपनी फसलों की देखभाल नहीं कर पाते हैं। आइए जाने धान की फसल में कौन सा रोग किस समय लगता है और उससे बचाव के उपाय क्या है?

धान के प्रमुख रोग अंगमारी रोग, पर्ण झुलसा, पत्ती का झुलसा रोग, ब्लास्ट या बकानी रोग, स्टेम बोरर कीट, लीफ फोल्ड कीट, हॉपर, ग्रॉस हॉपर, सैनिक कीट आदि हैं। इनकी रोकथाम समय पर की जानी चाहिए। अगर समय पर इसकी रोकथाम के लिए उपाय नहीं किए गए तो फसल बर्बाद हो सकती है। 

पत्ती का झुलसा रोग:

पौधे के अंकुरण से लेकर परिपक्व अवस्था में इस रोग के लगने की संभावना हो सकती है। धान की पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर बीच तक सूखने लगते हैं। सूखे पीले पत्ते के साथ राख के रंक के चकत्ते दिखाई देने लगते हैं। बालियों मे दाना नहीं भर पाता है।

उपचार- इसके उपचार के लिए 75 ग्राम एग्रीमाइसीन-100 और 550 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड / ब्लाइटॉक्स-50/क्यूप्राविट को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 3-4 बार 10-15 दिनों के अंतराल से छिड़काव करें। इस रोग के लगने पर नाइट्रोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए।

खैरा रोग: इस रोग के प्रकोग से धान की निचली पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और बाद में पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। पौधों की बढ़ोतरी भी रुक जाती है।

उपचार- इसके रोकथाम के लिये 20 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पहले डालना चाहिए। रोकथाम के लिए 5 किग्रा जिंक सल्फेट और 2.5 किग्रा चूना 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

शीथ झुलसा रोग: यह रोग पानी की सतह से ऊपर पौधे पर फफूंद अण्डाकार जैसा हरापन , स्लेट/उजला धब्बा पैदा करती है। भूरे या पुआल के रंग के रोगी स्थान बनते हैं। बाद में ये तनों को चारों ओर से घेर लेते हैं, और आवरण से बालियाँ बाहर नहीं निकल पाती हैं। बालियों के दाने के रंग भी बदल जाते हैं। 

रोकथाम – खेत में रोगग्रेस्त पौधा नजर आते ही काटकर निकाल देना चाहिए और अत्यधिक नाइट्रोजन एवं पोटाश का प्रयोग न करें। धान के बीच को सुडोमोनास लोरेसेन्स की 1 ग्राम अथव ट्रोइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीचकी दर से उपचारिक करके बुवाई करें। 

झोंका रोग: झोंका रोग फसल की उत्पादिता एवं उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करता है। यह रोग फसल के किसी भी चरण में लग सकता है। यह रोग से ग्रसित पौधो की पत्तियों के शुरूआत में हरे-भूरे घाव समान रंग दिखते हैं और पौधा जला हुआ प्रतीत होता है।

रोकथाम – उर्वरक का प्रयोग मान्यतानुसार न्यूनतम करें। बारिश होने के पश्चात ही नर्सरी लगायें। समयानुसार रोपाई करें।

थ्रिप्स रोग – यह रोग नर्सरी व धान की उपज के समय मुख्य रूप से प्रभावित करता है। यह रोग धान की गुच्छे बनते समय दाना नहीं भर पाता है। यह रोग फसल के प्रारंभ मे पत्तियों मे पीली व सफेद रंग के छिद्र दिखाई देते हैं।

रोकथाम- पोटेशियम साबुन या पाईरेथ्रम के साथ पौधे पर स्पे्र करें। एमोमेक्टिन बेंजोएट की 375 ग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।



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