केरल में लेप्टोस्पायरोसिस का प्रकोप
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में निपाह वायरस के प्रकोप का खतरा कम हो जाने के कारण केरल को राहत मिली है, क्योंकि 42-दिवसीय अवलोकन की अवधि के दौरान कोई नया मामला सामने नहीं आया।
- हालाँकि इस राहत को लेप्टोस्पायरोसिस प्रकोप ने ग्रहण कर लिया है, जिसे ‘रैट फीवर’ के रूप में जाना जाता है।
- यह जीवाणु संक्रमण, विशेषकर मानसून से संबंधित चुनौतियों के मद्देनज़र एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभरा है।
लेप्टोस्पायरोसिस के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: लेप्टोस्पायरोसिस लेप्टोस्पाइरा जीनस के रोगजनक स्पाइरोकेट्स के कारण होता है। ये बैक्टीरिया जूनोटिक हैं, जिसका अर्थ है कि ये जंतुओं से मनुष्यों में संचारित होते हैं।
- लेप्टोस्पायर बैक्टीरिया रोगजनक हो सकते हैं। रोगजनक लेप्टोस्पायर कुछ जीव-जंतुओं के गुर्दे और जननांग पथ में पाए जाते हैं, जो मनुष्यों में लेप्टोस्पायरोसिस का प्राथमिक कारण हैं।
- रोगवाहक: कई स्तनधारी प्रजातियाँ जिनमें कृंतक, मवेशी, सूअर और कुत्ते आम हैं, के गुर्दे में लेप्टोस्पायर को आश्रय प्राप्त होता है।
- कृंतक इस रोग के संक्रमण में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये बिना कोई लक्षण दिखाए अपने पूरे जीवनकाल में लेप्टोस्पायर का उत्सर्जन कर सकते हैं।
- सभी संक्रमित जीव-जंतु इस रोग के लक्षण नहीं दिखाते हैं। प्राकृतिक तौर पर परपोषी जीवों में रोग के बहुत कम दुष्प्रभाव दिखते हैं, लेकिन किसी अन्य सेरोवर (बैक्टीरिया की एक प्रजाति के भीतर एक अलग भिन्नता) के साथ संक्रमण के बाद रोग विकसित हो सकते हैं।
- संचरण: यह रोग मुख्य रूप से संक्रमित पशुओं के मूत्र के सीधे संपर्क से या उनके मूत्र से दूषित जल, मिट्टी या भोजन के संपर्क से फैलता है।
- यह घाव, श्लेष्मा झिल्ली या जलयुक्त त्वचा के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर सकता है। दुर्लभ मामलों में यह रोग एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैल सकता है।
- लक्षण: इसमें हल्के फ्लू जैसी बीमारी से लेकर वील्स सिंड्रोम (गुर्दे और यकृत की शिथिलता), मेनिनजाइटिस और फुफ्फुसीय रक्तस्राव जैसी गंभीर स्थितियाँ शामिल हैं।
- रोग का उद्भवन काल सामान्यतः 7-10 दिन का होता है, तथा बुखार, सिरदर्द और पीलिया जैसे लक्षण आम होते हैं।
- लेप्टोस्पायरोसिस का अक्सर निदान नहीं हो पाता है, क्योंकि इसके लक्षण अन्य बीमारियों से मिलते-जुलते हैं तथा निदान परीक्षणों तक इसकी पहुँच भी सीमित है।
- महामारी विज्ञान (Epidemiology): यह एक वैश्विक बीमारी है, लेकिन उच्च वर्षा वाले उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह सबसे आम है।
- यह रोग विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रचलित है तथा भारत, इंडोनेशिया, थाईलैंड और श्रीलंका में इसके अधिकतर मामले, विशेषकर बरसात के मौसम में सामने आते हैं।
- जिन व्यवसायों में पशुओं के साथ अक्सर संपर्क रहता है, जैसे किसान, पशुचिकित्सक और सीवर कर्मचारी, उनमें जोखिम अधिक होता है।
- रोकथाम: रोकथाम में पशु जलाशयों को नियंत्रित करना, दूषित पानी या मिट्टी के संपर्क से बचना, सुरक्षात्मक कपड़े पहनना और अच्छी स्वच्छता विधियों को बनाए रखना शामिल है।
- टीकाकरण बीमारी को रोकने में मदद करता है, लेकिन गुर्दे की बीमारी को खत्म नहीं कर सकता है। कुत्तों, सूअरों और मवेशियों को विशिष्ट टीके लगाए जा सकते हैं।
- उपचार: इसका उपचार एंटीबायोटिक दवाओं जैसे पेनिसिलिन G, डॉक्सीसाइक्लिन और सेफ्ट्रिएक्सोन से किया जाता है।
लेप्टोस्पायरोसिस से संबंधित भारत की पहल
- लेप्टोस्पायरोसिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिये कार्यक्रम: 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य लेप्टोस्पायरोसिस के कारण होने वाली मौतों और बीमारियों की संख्या को कम करना है।
- वन हेल्थ दृष्टिकोण: यह रणनीति लेप्टोस्पायरोसिस को नियंत्रित करने के लिये मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को एकीकृत करती है। वन हेल्थ दृष्टिकोण रोग के प्रबंधन और रोकथाम के लिये एक समग्र दृष्टिकोण के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
मानसून के दौरान सामान्य संक्रमण
- भारत में मानसून का मौसम डेंगू, मलेरिया, हैजा, टाइफाइड, फ्लू और जलभराव के कारण फंगल संक्रमण जैसे संक्रमणों में वृद्धि लाता है, जिसमें निर्जलीकरण और मच्छर जनित बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स:
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
उत्तर: (c)
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