4 तरीके जिनसे थैलेसीमिया ग्रस्त जोड़े बेबी प्लान कर सकते हैं – 4 tarike jinse thalasseamia grast jode baby plan kar sakte hain


थैलेसीमिया से लड़ना किसी भी व्यक्ति के लिए शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक चुनौतियों का कारण हो हो सकती है। ज्यादातर लोग यह मान बैठते हैं कि इस बीमारी के रहते न तो वे विवाह कर सकते हैं और न ही परिवार बना सकते हैं। पर ऐसा नहीं है।

थैलेसीमिया (Thalassemia) एक खून की बीमारी है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। इसमें खून में हीमोग्लोबिन नामक पदार्थ की कमी होती है। हीमोग्लोबिन शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए जरूरी है। अगर हीमोग्लोबिन कम हो जाएगा तो लाल रक्त कोशिकाएं (Red Blood Cells) शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचा पाएंगी। इससे बहुत थकान और कई दूसरी बीमारियां हो सकती हैं। थैलेसीमिया के दो मुख्य प्रकार हैं – अल्फा और बीटा। दोनों ही प्रकार से प्रजनन क्षमता, गर्भावस्था और बच्चे पैदा करने में समस्याएं हो सकती हैं। पर अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि थैलेसीमिया से ग्रस्त लोग भी माता-पिता बनने का सपना पूरा कर सकते हैं। यह कैसे संभव है और इसके लिए क्या विकल्प उपलब्ध हैं, आइए एक आईवीएफ स्पेशलिस्ट से जानते हैं।

डॉ. शीतल जिंदल जिंदल आईवीएफ चंडीगढ़ में डायरेक्टर मेडिकल जेनेटिक्स हैं। एमबीबीएस और एमडी कर चुकी डॉ शीतल कई वर्षों से उन जोड़ों की मदद कर रही हैं,जो किन्हीं कारणों से बेबी प्लान नहीं कर पा रहे। डॉ शीतल कहती हैं, “थैलेसीमिया एक रक्त विकार है और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता है। इसलिए हर बार प्रेगनेंसी प्लान करने से पहले हम जोड़ों को थैलेसीमिया टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। पर इसका अर्थ यह नहीं है कि थैलेसीमिया से ग्रस्त जोड़े मां-बाप नहीं बन सकते।”

पर इसके विकल्पों के बारे में जानने से पहले थैलेसीमिया का प्रजनन क्षमता पर प्रभाव भी जान लेना चाहिए। डॉ शीतल मानती हैं कि थैलेसीमिया स्त्री और पुरुष दोनों की ही प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है।

कैसे थैलेसीमिया प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है (How thalassemia affect reproductive health)

डॉ शीतल कहती हैं, “थैलेसीमिया से पीड़ित महिलाओं में खून की कमी और बार-बार खून चढ़ाने से यौवन देरी से आ सकता है और मासिक धर्म अनियमित हो सकता है। कभी-कभी मासिक धर्म भी बंद हो सकता है। यह समस्या बार-बार खून चढ़ाने से शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ने की वजह से होती है। इससे शरीर में हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है।

इस वजह से महिलाओं में डायबिटीज (Thalassemia causes diabetes) और दिल की बीमारियां (Thalassemia causes heart disease) होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इन सब वजहों से महिलाओं के गर्भवती (Thalassemia affect pregnancy) होने में दिक्कत हो सकती है।”

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Thalassemia ek blood disorder hai jo parents se unke bachcho me aa sakta hai
असल में थैलेसीमिया एक रक्त विकार है जो माता-पिता से उनके बच्चों में आ सकता है। चित्र : शटरस्टॉक

पुरुषों को भी प्रभावित करता है थैलेसीमिया (Thalassemia effect on males)

थैलेसीमिया से पीड़ित पुरुषों को भी प्रजनन में समस्याएं हो सकती हैं। बार-बार खून चढ़ाने से पिट्यूटरी ग्रंथि में आयरन जमा हो जाता है। इससे हार्मोन में कमी हो सकती है। इसके कारण यौवन देरी से आ सकता है, यौन इच्छा कम हो सकती है और बच्चे पैदा करने में दिक्कत हो सकती है। इसके अलावा, थैलेसीमिया जैसी बीमारी से होने वाली शारीरिक और मानसिक परेशानी भी यौन स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है और रिश्तों में समस्याएं पैदा कर सकती है।

थैलेसीमिया के साथ बच्चे पैदा करने के विकल्प (Pregnancy in Thalassemia)

इन चुनौतियों के बावजूद, थैलेसीमिया वाले लोगों के लिए बच्चे पैदा करने के कई विकल्प हैं। चिकित्सा विज्ञान में फर्टिलिटी प्रिजर्वेशन टेक्नीक्स और असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजिस्ट (ART) के आने से बच्चा पैदा करने की उम्मीद जगी हैं।

1 प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (PGD)

इस प्रक्रिया के बारे में बताते हुए डॉ जिंदल कहती हैं, “PGD एक ऐसा एडवांस मेथड है जिसका उपयोग इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) के साथ किया जाता है। ताकि गर्भाशय में प्रत्यारोपण करने से पहले भ्रूणों का आनुवंशिक स्थितियों के लिए परीक्षण किया जा सके। यह तकनीक सुनिश्चित करती है कि केवल थैलेसीमिया के बिना भ्रूण ही प्रत्यारोपण के लिए चुने जाते हैं, जिससे बच्चे को विकार देने का जोखिम काफी कम हो जाता है। स्वस्थ भ्रूण चुनकर, PGD न केवल थैलेसीमिया के संचरण को रोकने में मदद करता है, बल्कि सफल गर्भावस्था की संभावना में भी सुधार करता है।”

2 स्पर्म एंड एग फ्रीजिंग (Sperm and egg freezing)

“थैलेसीमिया का पता कम उम्र में चल जाने पर शुक्राणु या अंडाणु को सुरक्षित रखना एक अच्छा विकल्प है। यह तकनीक खासकर आयरन किलेशन थेरेपी शुरू करने से पहले उपयोगी होती है। क्योंकि इससे प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। कम उम्र में शुक्राणु या अंडाणु सुरक्षित रखने से लोग बाद में जब बच्चे पैदा करने के लिए तैयार हों, तो सहायक प्रजनन विधियों का ऑप्शन चुन सकते हैं।”

3 हार्मोनल उपचार (Hormonal treatment)

थैलेसीमिया से पीड़ित पुरुषों और महिलाओं दोनों में देरी से यौवन और हाइपोगोनाडिज्म का इलाज करने के लिए हार्मोनल थेरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है। ये उपचार हार्मोन के लेवल को बैलेंस करके और कमी को दूर करके सामान्य यौन विकास को बहाल करने और प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए काम करते हैं।

हॉर्मोनल उपचार और अन्य माध्यमों से आप भी बेबी प्लान कर सकती हैं। चित्र : एडॉबीस्टॉक

4 सरोगेसी (surrogacy)

थैलेसीमिया से पीड़ित महिलाओं के लिए जो गर्भावस्था के दौरान ज्यादा जोखिम का सामना करती हैं, सरोगेसी एक विकल्प है। इस प्रक्रिया में, IVF के जरिए से बनाया गया दंपति का भ्रूण एक सरोगेट में प्रत्यारोपित किया जाता है जो गर्भावस्था को पूर्ण अवधि तक ले जाता है। यह मां को गर्भावस्था से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों के बिना एक जैविक बच्चे के लिए अनुमति देता है।

याद रखें

डॉ शीतल के मुताबिक, “हालांकि थैलेसीमिया गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं के जोखिम को बढ़ा सकता है। इस स्थिति वाले कई व्यक्ति अभी भी उचित निगरानी और देखभाल के साथ एक स्वस्थ गर्भावस्था प्राप्त कर सकते हैं। गर्भवती होने से पहले थैलेसीमिया वाले लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य में होना और गर्भावस्था के दौरान अपनी उपचार योजना को अनुकूलित करने के लिए अपने स्वास्थ्य देखभाल टीम के साथ मिलकर काम करना महत्वपूर्ण है।

जोखिमों का प्रबंधन करने और सर्वोत्तम संभव परिणाम प्राप्त करने के लिए गर्भावस्था से पहले और दौरान क्या उम्मीद करें, इसके बारे में एक गहन स्वास्थ्य मूल्यांकन और स्पष्ट मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है।”

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