ओव्यूलेशन में मूड स्विंग से कैसे बचें,- Ovulation mei mood swing se kaise bachein


ओव्यूलेशन के दौरान महिलाओं की इमोशनल हेल्थ प्रभावित होती है। इसके चलते कभी महिलाएं बेवजह रोने लगती हैं तो कभी एंग्ज़ाइटी बढ़ जाती है। जानते हैं ओव्यूलेशन में मेंटल हेल्थ कैसे होती है प्रभावित

महिलाओं के शरीर में समय समय पर आने वाले बदलाव मूड स्विंग का कारण बनते हैं। इससे मेंटल और इमोशनल हेल्थ प्रभावित होना स्वाभाविक है। आमतौर पर पीरियड साइकल और गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को मूड स्विंग का सामना करना पड़ता है। इसके चलते कभी महिलाएं बेवजह रोने लगती हैं, तो कभी तनाव बढ़ जाता है। वहीं ओव्यूलेशन के दौरान भी महिलाओं की इमोशनल हेल्थ प्रभावित होती है। जानते हैं ओव्यूलेशन में मेंटल हेल्थ कैसे होती है प्रभावित (ovulation affect on mental health)।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार महिलाओं में ओव्यूलेशन के बाद की तुलना में ओव्यूलेशन से पहले यानि फॉलिक्यूलर फेस में डिप्रेशन के लक्षण ज्यादा देखने को मिलते हैं। ओव्यूलेशन के दौरान महिलाओं के शरीर में हार्मोन परिवर्तन होता है। इसके चलते तनाव की समस्या बढ़ जाती है।

क्या है ओव्यूलेशन और यह कब होता है?

महिलाओं में पीरियड साइकल की समय सीमा अलग अलग होती है। मगर आमतौर पर पीरियड साइकल 28 दिनों की होती है, जिसमें ओव्यूलेशन मासिक धर्म शुरू होने से 14 दिन पहले हो जाता है। ओव्यूलेशन के दौरान शरीर में ऐंठन, भूख में परिवर्तन और मूड स्विंग समेत कई बदलाव महसूस होने लगते हैं।

ओव्यूलेशन के दौरान शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ जाता है। ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन बढ़ने लगता है और ओवरीज़ को हेल्दी एग्स रिलीज़ करने का संकेत देता है कि यह अंडाशय से एक परिपक्व अंडा जारी करने का समय है। ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन के स्तर में बढ़ोतरी होने से शरीर पर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।

Ovulation kaise badhta hai
पीरियड साइकल 28 दिनों की होती है, जिसमें ओव्यूलेशन मासिक धर्म शुरू होने से 14 दिन पहले हो जाता हैं। चित्र : अडोबी स्टॉक

क्या है ओव्यूलेशन और मूड का कनैक्शन

ऑबस्टेट्रीशियन एंड गॉयनेकॉलाजिस्ट डॉ रवीना पटेल बताती हैं कि ओव्यूलेशन के दौरान महिलाओं में भावनात्मक बदलाव आने लगते हैं। इसके चलते ओव्यूलेशन से पहले फोलिकुलर फेस में सीरम एस्ट्राडियोल के चलते फोलिकल्स का आकार बढ़ने लगता हैं। ऐसे में ओव्यूलेशन से एक दिन पहले एस्ट्राडियोल का स्तर तेज़ी से बढ़ जाता है। इससे फीडबैक मेकेनिज्म में बदलाव आने लगता है, जिसके चलते सीरम ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन की मात्रा 10 गुना बढ़ जाती है। इसे ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन सर्ज कहा जाता है।

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सर्ज की प्रक्रिया के 36 घंटे बाद अंडा ओवरीज़ से रिलीज़ होता है। दरअसल, ये हार्मोन ब्रेन के हाइपोथैलेमस से नियंत्रित होते हैं। इससे मूड, नींद, यौन इच्छा, भूख, शरीर के तापमान समेत कई कार्यों को नियंत्रित किया जाता है। इन हार्मोन में अचानक बदलाव के कारण ओव्यूलेशन के दौरान मूड में परिवर्तन हो सकता है।

ओव्यूलेशन में मूड स्विंग से कैसे बचें

1. पूरी नींद लें

एक ही समय पर सोने और जागने की आदत को फॉलो करें। इससे हार्मोन असंतुलन से बचा जा सकता है और शरीर को मूड स्विंग से बचाने में मदद मिलती है। स्लीप पैटर्न से नींद की क्वालिटी बढ़ जाती है और शरीर को मोटापे से भी बचाया जा सकता है।

2. व्यायाम करें

मेंटल हेल्थ को बूस्ट करने के लिए व्यायाम को रूटीन में शामिल करें। अपनी शारीरिक क्षंतर के अनुसार एक्सरसाइज़ करें और कुछ देर वॉक और जॉगिंग करें। इसके अलावा एरोबिक्स और योगासनों की मदद से शरीर को कई समस्याओं से बचा जा सकता है।

3. हेल्दी मील्स लें

आहार में विटामिन और मिनरल जैसे पोषक तत्वों को शामिल करके फर्टिलिटी को बढ़ाने और हार्मोन को बैलेंस करने में मदद मिलती है। इसके लिए डाइट में ओमेगा 3 फैटी एसिड, हेल्दी फैट्स, फाइबर और फोलेट रिच फूड्स को शामिल अवश्य करे।

आहार में विटामिन और मिनरल जैसे पोषक तत्वों को शामिल करके फर्टिलिटी को बढ़ाने और हार्मोन को बैलेंस करने में मदद मिलती है। चित्र : अडॉबीस्टॉक

4. पानी भरपूर मात्रा में पीएं

पानी का नियिंमत सेवन शरीर बढ़ने वाली थकान, आलस्य और तनाव इन सभी चीजों को कम कर देता है। इससे शरीर एक्टिव और हेल्दी बना रहता है। इसके अलावा डिहाइड्रेशन का खतरा कम होने लगता है। पानी और हेल्दी पेय पदार्थों का सेवन करें।

5. पसंदीदा गतिविधियों के लिए समय निकालें

एक ही प्रकार के कार्य को करने के अलावा अपने पसंदीदा एक्टीविटीज़ में खुद को इनवाल्व करें। इससे ब्रेन हेल्थ बूस्ट होती है और सोशल सर्कल भी बढ़ने लगता है। मांइड एक्टिव रहने से तनाव, डिप्रेशन और मूड स्विंग को कम किया जा सकता है।



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