गर्भावस्था में वज़न हर तिमाही के अनुसार बढ़ता चला जाता है। मगर ऐसे में इंटिमेट हाइजीन को नज़रअंदाज़ करना जोखिम का कारण बन सकता है। इस स्थिति में योनि में बढ़ते संक्रमण का प्रभाव मां और गर्भ में पल रहे बच्चे, दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
गर्भावस्था के दौरान कभी पसीना आना, कभी खुजली होना और कभी वेजाइनल डिस्चार्ज का सामना करना पड़ता है। शरीर में होने वाला हार्मोनल बदलाव इन समस्याओं का सबसे बड़ा कारण है। इसके अलावा बढ़ा हुआ वजन और थकान भी आपकी इंटीमेट हाइजीन को प्रभावित कर सकती है। प्रेगनेंसी के दौरान वज़न का लगातार बढ़ना बिल्कुल सामान्य है। मगर इस वजह से हाइजीन से लापरवाही नहीं की जा सकती। क्योंकि इस दौरान किसी भी तरह का संक्रमण मां और गर्भ में पल रहे बच्चे, दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। हेल्थ शॉट्स के इस लेख में हमने एक स्त्री रोग विशेषज्ञ से बात कर आपके लिए कुछ हाइजीन टिप्स जुटाए हैं। ताकि प्रेगनेंसी के दौरान आप अपनी इंटीमेट हाइजीन मेंटेन कर पाएं (hygiene during pregnancy) ।
रिसर्चगेट की रिपोर्ट के अनुसार गर्भवती महिलाएं कीटाणुओं के संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। ऐसे में शरीर को साफ सुथरा रखने के लिए हाथ धोना सबसे मुख्य स्वच्छता क्रिया है। इसके अलावा योनि की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए जननांग क्षेत्र का ख्याल रखना और क्लीनिंग ज़रूरी है।
गर्भावस्था में इंटिमेट हाइजीन का ध्यान रखना क्यों है ज़रूरी (Why it is important to take care of intimate hygiene during pregnancy)
इस बारे में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ शिवानी सिंह बताती हैं कि प्रेगनेंसी में महिलाओं के शरीर में हार्मोन इंबैलेंस बढ़ जाता है। इसके चलते त्वचा में शुष्कता और पसीना आना सामान्य है। ऐसी स्थिति में शरीर में संक्रमण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ने लगती है। सेल्फ केयर के लिए हाथों की हाइजीन बनाए रखें। इसके अलावा वेजाइनल डिसचार्ज से बढ़ने वाले गीलेपन और पसीने से बचने के लिए समय पर पैंटी चेंज करें। साथ ही टाइट कपड़े पहनने से भी बचना चाहिए। वे महिलाएं, जिनकी त्वचा खिंची हुई महसूस होती है, उन्हें मॉइश्चराइज़र अवश्य अप्लाई करना चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के उच्च स्तर के कारण योनि से स्त्राव बढ़ने लगता है। इसके अलावा रक्त के प्रवाह में वृद्धि भी योनि स्राव में वृद्धि का कारण बनती है। गर्भावस्था के दौरान होने वाला डिसचार्ज तरल, सफ़ेद और मिल्की होता है। डिलीवरी की डेट नज़दीक आने पर इसकी थिकनेस बढ़ने लगती है और इसमें हल्की गंध भी महसूस होती है। इससे बचने के लिए पैंटी लाइनर या मिनी पैड पहन सकती हैं।
जानें गर्भावस्था में कैसे रखें इंटिमेट हाइजीन को मेंटेन (How to maintain intimate hygiene during pregnancy)
1. वेजाइना को क्लीन रखें
शरीर का वज़न बढ़ने से योनि के स्वास्थ्य का ख्याल रखने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। वेजाइनल डिसचार्ज के कारण बढ़ते गीलेपन से राहत पाने के लिए खुशबू रहित साबुन या इंटिमेट वॉश का इस्तेमाल करें। इससे योनि का पीएच उचित बना रहता है। साथ ही क्लीनिंग के बाद पैंटी लाइनर पहनने से पहले योनि को तौलिए की मदद से सुखा लें। इससे संक्रमण के प्रभाव से बचा जा सकता है।
2. पसीने से बचने के लिए पैंटी लाइनर पहनें
अगर आप कामकाजी हैं, तो बार बार आने वाले पसीने से बचने के लिए पैटी लाइनर का इस्तेमाल करें। इससे न केवल गंध को नियंत्रित किया जाता है बल्कि योनि क्षेत्र भी सूखा रहता है। योनि स्राव से गीलापन बढ़ जाता है, ऐसे में पैंटी लाइनर नमी को एबजॉर्ब करने में कारगर साबित होती है।
3. प्यूबिक हेयर ट्रिम करें
गर्भवती महिलाओं को वेजाइना की स्वच्छता बनाए रखने के लिए प्यूबिक हेयर अवश्य ट्रिम करने चाहिए। दरअसल, इससे जननांग में लाइस पनपने का खतरा कम हो जाता है, जिससे किसी प्रकार के इंफे्क्शन, खुजली और एलर्जी से बचा जा सकता है। ट्रिमिंग से पहले शेविंग क्रीम का प्रयोग करें और फिर सिंगल स्ट्रोक में बालों को हटाने का प्रयास करें।
4. टाइट कपड़े पहनने से बचें
वज़न बढ़ने से कपड़ों का साइज़ बदलने लगता है। टाइट कपड़े पहनने से योनि के आसपास पसीना एकत्रित होने की समस्या बढ़ जाती है, जिससे खुजली और इरिटेशन का सामना करना पड़ता है। ऐसे में स्किन को ब्रीथएबल बनाए रखने के लिए मैटरनिटी क्लॉथ पहनें और शरीर को आराम पहुंचाएं।
5. यूरिन के बाद वाइप करें
यूरिन पास करने के बाद जेनिटल्स को अवश्य क्लीन करें। वाइप को आगे से पीछे की ओर लेकर जाएं। किसी भी प्रकार की इरिटेशन से बचने के लिए मुलायम टिशू का प्रयोग करें। हर बार यूरिन करने के बाद वेजाइना की क्लीनिंग ज़रूरी है।
ध्यान रखें
गर्भावस्था में शरीर का वज़न बढ़ने से चलते और उठते बैठते वक्त वज़न को बैलेंस करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में शावर लेने से पहले फ्लोर को स्लीपरी होने से बचाने के लिए मैट का प्रयोग करें। इससे पैर फिसलने का खतरा कम हो जाता है और शरीर का संतुलन बना रहता है।