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हर इंसान को कभी न कभी घबराहट महसूस होती है और अगर ये घबराहट बढ़ती जाए, तो मानसिक विकार में भी बदल सकती है। एंग्जाइटी की इस समस्या को लोग बीमारी के तौर पर नहीं देखते और आंकड़े भी इसका सबूत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनियाभर में एंग्जाइटी को सबसे आम बीमारी माना जाता है। साल 2019 में करीब 31 करोड़ लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में एंग्जाइटी की समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। आंकड़ों के अनुसार, इस बीमारी का सबसे ज्यादा प्रभावी इलाज मौजूद है। इसके बावजूद, लोग इसके इलाज से बचते हैं। यही वजह है कि एंग्जाइटी की बीमारी गंभीर रूप ले लेती है और फिर इसका प्रभाव न सिर्फ दिमाग पर बल्कि शरीर पर भी दिखने लगता है।
इसका सबसे प्रमुख कारण लोगों का कई मिथकों को सच मान लेना है। उन्हें लगता है कि सोने में दिक्कत होना, टेंशन में रहना, पसीना आना या फिर हाथ या पैरों का कांपना ये सभी लक्षण तो आम हैं, और इनका इलाज कराने या इसको लेकर डॉक्टर से सलाह लेने की कोई जरूरत नहीं है। एंग्जाइटी से जुड़े मिथकों को जानने के लिए हमने आर्टेमिस अस्पताल के मेंटल हेल्थ और बिहेवियरल साइंस के चीफ डॉ. पुनीत द्विवेदी से बातचीत की। जानें एंग्जाइटी से जुड़े मिथक और उनकी सच्चाई। साथ ही डॉ. पुनीत ने इस समस्या को कम करने के तरीके भी बताए हैं।
एंग्जाइटी से जुड़े मिथक और उनकी सच्चाई
मिथ: एंग्जाइटी सिर्फ मानसिक समस्या है। इसका शरीर की फिटनेस पर कोई असर नहीं पड़ता।
सच्चाई: ये बिल्कुल मिथ है। एंग्जाइटी के कारण शरीर में भी कई बदलाव होते हैं, जिनमें सिरदर्द, मांसपेशियों में टेंशन, पाचन संबंधी दिक्कतें, तेज हार्टबीट और चक्कर आना शामिल हैं। क्रोनिक एंग्जाइटी में सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव भी देखने को मिलता है, जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, दिल से जुड़ी बीमारियां और इम्यून सिस्टम का कमजोर होना। मेंटल हेल्थ और फिजिकल हेल्थ, दोनों का बहुत गहरा संबंध है। अगर एंग्जाइटी का इलाज न किया जाए, तो ये दिमाग और शरीर दोनों को नुकसान पहुंचाती है। इससे सेहत पर असर पड़ता है।
मिथ: सिर्फ व्यस्कों को ही एंग्जाइटी होती है?
सच्चाई: एंग्जाइटी सिर्फ व्यस्कों तक सीमित नहीं है, बच्चे और टीनएजर्स भी इससे अछूते नहीं हैं। वैसे, बच्चों में एंग्जाइटी सबसे आम मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या है। बच्चों और युवाओं में आमतौर पर स्कूल का प्रेशर, सोशल मीडिया, पारिवारिक समस्याएं और आसपास के माहौल की वजह से स्ट्रेस होता है। इसका समय पर इलाज होना बहुत जरूरी है। अगर बच्चों का इलाज न कराया जाए, तो उनका सोशल विकास, पढ़ाई पर असर और पूरे जीवन की क्वालिटी पर प्रभाव पड़ता है। युवाओं में लक्षणों को समझना और उन्हें स्पोर्ट देना उनके मानसिक विकास को सुनिश्चित करता है।
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मिथ: एंग्जाइटी के लिए इलाज कराना जरूरी नहीं, ये समय के साथ खुद ही खत्म हो जाएगी।
सच्चाई: बिना इलाज कराए, एंग्जाइटी खत्म नहीं होती। हालांकि कुछ समय के लिए ये कम हो सकती है, लेकिन इलाज न कराने पर ये गंभीर हो सकती है। कई बार एंग्जाइटी को लेकर समय पर सलाह नहीं ली जाती, तो गंभीर मामलों में ये शरीर और दिमाग दोनों की जटिलताएं बढ़ा सकती है। थेरेपी, दवाइयों और लाइफस्टाइल में बदलाव करके एंग्जाइटी को लंबे समय के लिए कम किया जा सकता है। इसलिए किसी अनुभवी साइकोलोजिस्ट से मदद लेकर इसका इलाज कराना बहुत महत्वपूर्ण है।
मिथ: एंग्जाइटी की दवाइयां लेने से लत लग जाती है।
सच्चाई: कुछ दवाइयां जैसेकि बेंजोडायजेपाइन, एंग्जाइटी के इलाज में दी जाती है।अगर उनका गलत इस्तेमाल किया जाए, तो इसकी लत लग सकती है। लेकिन सभी एंग्जाइटी की दवाइयों से लत नहीं लगती। एंग्जाइटी के इलाज में आमतौर पर Selective serotonin reuptake inhibitors (SSRIs) और Serotonin-norepinephrine reuptake inhibitors (SNRIs) इस्तेमाल की जाती है और इनसे नशे की लत नहीं लगती। ये दवाइयां अक्सर लंबे समय तक एंग्जाइटी को मैनेज करने के लिए डॉक्टर अपनी देखरेख में देते हैं। बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टर के साथ मिलकर सही तरीके से प्लान करें, फिर चाहे वे दवाइयां हो या थेरेपी या फिर दोनों।
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डॉक्टर की सलाह
अक्सर डॉक्टर एंग्जाइटी को मैनेज करने के लिए कई तरह के तरीके अपनाते हैं। इसमें कोग्नेटिव-बिहेवियरल थेरेपी (CBT) शामिल है। इस थेरेपी की मदद से रोगी उन विचारों को पहचानने और उन्हें बदलने की कोशिश करता है, जो एंग्जाइटी को बढ़ाते हैं। माइंडफुल तकनीके जैसे कि मेडिटेशन या प्राणायाम करने की भी सलाह दी जाती है, जिससे स्ट्रेस कम हो और फोकस बढ़े। कसरत, सही व संतुलित खानपान और पर्याप्त नींद सेहतमंद शरीर और मन दोनों के लिए सबसे जरूरी हैं। लक्षणों को मैनेज करने के लिए डॉक्टर दवाइयां दे सकते हैं, लेकिन एंग्जाइटी को कम करने के लिए डॉक्टर दोस्तों, परिवार और मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स से परामर्श लेने पर जोर देते हैं।
Image Courtesy: Freepik
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