भारत के परिवार पिछले 3 साल से बैंकों से कर्ज ज्यादा ले रहे हैं और उसकी तुलना में जमा कम कर रहे हैं। मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज ‘इकोस्कोप’ की 19 मार्च की रिपोर्ट से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि दिसंबर 2023 को समाप्त 9 महीनों के दौरान परिवारों ने सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 फीसदी के बराबर पैसे जमा किए हैं। वहीं बैंकों से लिया गया कर्ज जीडीपी के 4.9 फीसदी के बराबर है।
शोध विश्लेषकों निखिल गुप्ता और तनीषा लाढा द्वारा लिखी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 2 साल से बैंकों द्वारा दिया जा रहा कर्ज, बैंक में जमा होने वाले धन से अधिक है। इसमें कहा गया है कि इसकी वजह से भारत के परिवारों का ऋण नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय की तुलना में देखें तो परिवारों पर कर्ज ज्यादा है।
वित्त वर्ष 2020 के शुरुआती 9 महीनों में जहां जीडीपी के 3.3 फीसदी के बराबर धन जमा किया गया था, वहीं यह वित्त वर्ष 2023 के पहले 9 महीनों के दौरान बढ़कर जीडीपी के 4.5 फीसदी के बराबर हो गया। बैंकों द्वारा दिया गया कर्ज इस अवधि के दौरान जीडीपी के 2.9 फीसदी से बढ़कर 4.9 फीसदी हो गया है। बैंकों द्वारा दिया जाने वाला कर्ज बढ़ने की वजह से परिवारों का कुल कर्ज दिसंबर 2022 में जीडीपी के 36.9 फीसदी की तुलना में दिसंबर 2023 में जीडीपी के 40.1 फीसदी के बराबर हो गया है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘परिवारों का कर्ज वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर जीडीपी का 38 फीसदी तक हो गया है, जो वित्त वर्ष 2022 में जीडीपी का 36.7 फीसदी था। यह वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी के 39.1 फीसदी की तुलना में दूसरे स्थान पर है।
बैंकों के आंकड़ों के आधार पर हमारे अनुमान से पता चलता है कि यह दिसंबर 2023 (वित्त वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही) तिमाही में बढ़कर जीडीपी के 40 फीसदी के बराबर हो गया, जो नया उच्च स्तर है। परिवारों के कर्ज में असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण (पर्सनल लोन) में तेज वृद्धि जारी है, उसके बाद सुरक्षित ऋण, कृषि ऋण और कारोबारी ऋण का स्थान है।’
अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के परिवारों का कर्ज उनकी प्रति व्यक्ति आमदनी की तुलना में बहुत ज्यादा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा शीर्ष 5 अर्थव्यवस्थाओं और ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों के परिवारों पर ऋण के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया, जो स्विट्जरलैंड स्थित बैंक फॉर इंटरनैशनल सेटलमेंट से लिया गया था। ताजा उपलब्ध आंकड़े सितंबर 2023 तक के हैं।
जर्मनी, चीन, जापान और अमेरिका में जीडीपी की तुलना में परिवारों का ऋण ज्यादा है। यह जीडीपी के 50 से 75 फीसदी के बीच है। रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में यह जीडीपी के 20 से 35 फीसदी के बीच है। इसमें भारत मध्य श्रेणी में आता है।
मोटे तौर पर प्रति व्यक्ति आमदनी किसी देश में औसत कमाई का मापक होती है। भारत में यह शीर्ष 5 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं या इसके ब्रिक्स के समकक्षों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से कम है।
जर्मनी, चीन, जापान और अमेरिका में प्रति व्यक्ति जीडीपी 12,000 डॉलर से 77,000 डॉलर के बीच है। रूस, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में प्रति व्यक्ति जीडीपी 6,000 से 16,000 डॉलर के बीच है। भारत में यह करीब 2,400 डॉलर है।
मोतीलाल ओसवाल के मुताबिक बैंकों के जमा में वृद्धि सुस्त रही है, वहीं पूंजी बाजारों में ज्यादा धन लगाया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पूंजी बाजार में निवेश का हिस्सा पिछले 7 साल में (वित्त वर्ष 2017 से वित्त वर्ष 2023) बढ़कर जीडीपी के 0.8 फीसदी के बराबर हो गया है, जो नोटबंदी के पहले महज 0.2 फीसदी था। यह वित्त वर्ष 2024 के शुरुआती 9 महीनों में जीडीपी का 0.7 फीसदी रहने की संभावना है।’
First Published – April 9, 2024 | 9:25 PM IST