Bareilly: Situation Of Confusion In Schools Regarding New Education Policy

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By: Inextlive | Updated Date: Wed, 10 Apr 2024 01:19:09 (IST)




बरेली (ब्यूरो)। न्यू एजुकेशन पॉलिसी यानी की एनईपी आज भी कई स्कूल्स के लिए मुश्किल बनी हुई है. कई लोगों को यह मालूम ही नहीं है कि आखिर यह है क्या और इसे कैसे स्टूडेंट्स के स्लेबस में लागू किया जाना है. स्कूल इसे पूरी तरह लागू नहीं कर पा रहे हैैं. कुछ स्कूल टीचर्स का मानना है कि एनईपी के लागू करने का मतलब है कि अपने पूरे स्लेबस को चेंंज कर देना और वह आसान बात नहीं है.

बरेली (ब्यूरो)। न्यू एजुकेशन पॉलिसी यानी की एनईपी आज भी कई स्कूल्स के लिए मुश्किल बनी हुई है। कई लोगों को यह मालूम ही नहीं है कि आखिर यह है क्या और इसे कैसे स्टूडेंट्स के स्लेबस में लागू किया जाना है। स्कूल इसे पूरी तरह लागू नहीं कर पा रहे हैैं। कुछ स्कूल टीचर्स का मानना है कि एनईपी के लागू करने का मतलब है कि अपने पूरे स्लेबस को चेंंज कर देना और वह आसान बात नहीं है।

बदलाव का मकसद
न्यू एजुकेशन पॉलिसी का मेन मोटो स्टूडेंट्स को रट्टïाफिकेशन से निजात दिलाना है। इसके पीछे मंशा है कि स्टूडेंट्स अच्छी से पढ़ाई कर सकें और अपने इंट्रेस्ट के हिसाब से पढ़ाई कर सकें, लेकिन यह मकसद डगमग-डगमग करके ही चल रहा है। स्टूडेंट्स की लाइफ में कांपटीशन इतना ज्यादा बढ़ गया है कि सिर्फ माक्र्स और रैैंकिंग के आधार पर ही उन्हें जज किया जाता है।

5+3+3+4 क्या है
स्कूली शिक्षा में बदलाव करते हुए 5+3+3+4 की बात की जा रही है। इसमें 5 का मतलब है स्टूडेंट की फाउंंडेशन स्टेज। इसमें पहले तीन साल प्री-स्कूल, फस्र्ट और सेकेंड स्कूल में खेलकूद और अदर चीजों के जरिए स्टूडेंट्स को पढ़ाना। 3 का मतलब है कि थर्ड और फोर्थ क्लास में स्टूडेंट को भविष्य के लिए तैयार करना। इसमेेें साइंस, मैथ, ड्राइंग और समाजिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाकर बच्चों को तैयार करना। 3 एक मिडिल एज इसमें तय पाठ्यक्रम के हिसाब से पढ़ाया जाता है। 4 नंबर बताता है कि चार साल स्टूडेंट के लिए लास्ट स्टेज होते हैैं। क्लास 9 से लेकर 12 तक स्टूडेंट किसी भी स्ट्रीम का कोई भी सब्जेक्ट सलेक्ट कर सकता है और कोई स्कूल वाले इसके लिए स्टूडेंट को मना नहीं कर सकते हैैं।

फस्र्ट आने की रेस
स्कूल्स में पढ़ाई को लेकर काफी कंपटीशन बना हुआ है। हर जगह माक्र्स को लेकर ही रेस बनी हुई है। कुछ पेरेंट्स से बात की तो उन्होंने बाताया कि एनईपी के आने के बाद भी एजुकेशन की क्वालिटी पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है, बल्कि अभी तो पढ़ाई और भी टफ हो गई है। बच्चों का कोर्स इतना टफ हो गया है कि वे पूरे दिन-दिन पढ़ाई करते रहते हैैं। स्कूल से आने के बाद कोचिंग, कोचिंग से आने के बाद सेल्फ स्ट्रेडी। इसके बाद स्कूल और कोचिंग का वर्क।

अपने कैंपेन ईजी नहीं एजुकेशन के अंतर्गत दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने सिटी के एक जाने-माने स्कूल की प्रिंसिपल से बात की। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश

रिपोर्टर : मैैम, क्या आप ने अपने स्कूल में एनईपी लागू कर दिया है?
प्रिंसिपल: नहीं एनईपी लागू करने के लिए हमारे पास कोई नोटिस नहीं आया है।
रिपोर्टर: एनईपी को लागू करने में दिक्कत क्या आ रही है?
प्रिंसिपल: एनईपी को लागू करने का मतलब है अपने पूरे कैरिकुलम में बदलाव कर देना, जो संभव नहीं है।
रिपोर्टर: कब तक लागू होने की संभावना है?
प्रिंसिपल: इसका अभी कोई उत्तर नहीं है।

थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला
स्कूली शिक्षा में एक और महत्वपूर्ण बात है कि स्कूल में तीन लैैंग्वेज पढ़ाना कंपल्सरी है। इसमें कक्षा पांच तक मातृ भाषा या लोकल भाषा में पढ़ाई की बात की गई है। इसके साथ ही जहां संभव हो वहां कक्षा 8 तक इस ही प्रक्रिया को अपनाया जाए। संस्कृत के साथ तमिल, तेलुगू और कन्नड़ जैसी कई भारतीय भाषाओं में पढ़ाई पर भी जोर दिया है, लेकिन इसे भी कम ही स्कूल फॉलो कर रहे हैैं। लैैंग्वेज आज भी एक बाउंडेशन बनी हुई है। कुछ बड़े और नीजी स्कूल्स में फॉरेन लैैंग्वेज पढ़ाई जाती है और इसमें स्टूडेंट्स इंट्रेस्ट भी ले रहे हैैं, लेकिन अभी कई ऐसे हैैं जो एनईपी को फॉलो ही नहीं करते हैैं।

इस सत्र में एनईपी को लागू कर दिया गया है और हर स्कूल को इसे फॉलो करना होगा। एनईपी सभी जगह लागू हो इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा।
संजय सिंह, बीएसए

एनईपी को पूरी तरह लागू कर पाना एक टफ टास्क हैैं। उनमें से कुछ चीजें ही फॉलो हुई हैैं। बाकी कई सारे प्वाइंट्स हैं, जिन्हें धीरे-धीरे लागू किया जा रहा है।
प्रतिभा जौहरी, हैरो स्कूल

एनईपी के बारे में लोगों को अवेयरनेस नहीं है कि आखिर यह है क्या और इसे कैसे लोगों के बीच लागू किया जाएगा। इस वजह से ही स्टूडेंट्स पर पढ़ाई का काफी बोझ है।
स्नेहा श्रीवास्तव, टीचर

हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा स्टडी में अच्छे से अच्छा करे और अच्छे नंबर से पास हो, लेकिन एजुकेशन सिस्टम की खामी बच्चों को झेलनी पड़ रही है।
प्रखर बैरसिया, पेरेंट

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