बरेली: यूपी में 3.88 लाख बच्चों को टीबी का खतरा है






By: Inextlive | Updated Date: Fri, 29 Mar 2024 01:38:26 (IST)




बरेली (ब्यूरो)। जन्म के बाच् बच्चों को अलग-अलग बीमारियों से बचाने के लिए उनका नियमित टीकाकरण किया जाता है. जन्म के तुंरत बाद ही नवजात को (बैसिलस कैलमेट गुएरिन) बीसीजी का टीका लगता है, जो उन्हें भविष्य में होने वाली टीबी की बीमारी से बचाता है, लेकिन प्रदेश के 35 सरकारी अस्पतालों में 3.88 लाच् बच्चे ऐसे छूटे, जिन्हें अब तक बीसीजी का टीका नहीं लगा है.

बरेली (ब्यूरो)। जन्म के बाच् बच्चों को अलग-अलग बीमारियों से बचाने के लिए उनका नियमित टीकाकरण किया जाता है। जन्म के तुंरत बाद ही नवजात को (बैसिलस कैलमेट गुएरिन) बीसीजी का टीका लगता है, जो उन्हें भविष्य में होने वाली टीबी की बीमारी से बचाता है, लेकिन प्रदेश के 35 सरकारी अस्पतालों में 3.88 लाच् बच्चे ऐसे छूटे, जिन्हें अब तक बीसीजी का टीका नहीं लगा है। ऐसे में इन 3.88 लाच् बच्चों पर टीबी का खतरा मंडरा रहा है। अपर निदेशक, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण डॉ। संदीपा श्रीवास्तव ने नाराजगी व्यक्त करते हुए सभी जिलों को पत्र जारी किया है। इन 35 जिलों में बरेली का नाम भी शामिल है। यहां भी 500 से अधिक नवजात टीबी के खतरे से जूझ रहे हैं।

नई रिपोर्ट जारी
प्रदेश का हर अस्पताल मंत्रा पोर्टल पर टीकाकरण की रिपोर्ट अपलोड करता है। उसी रिपोर्ट की जांच कर शासन ने एक नई रिपोर्ट जारी की। जिसमें बताया कि प्रदेश में 134 अस्पतालों ने मंत्रा पोर्टल पर टीकाकरण की रिपोर्ट अपलोड की। इसमें पता चला कि 35 सरकारी अस्पताल ऐसे हैं, जहां पर 90 प्रतिशत से भी कम बीसीजी, हेपेटाइटिस बी और ओपीवी का टीका लगा है। यदि बात पूरे प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों की बात की जाए तो अभी भी 3.88 लच्ख बच्चे ऐसे हैं जिन्हें बीसीजी का टीका नहीं लगा है, जिसकी वजह से भविष्य में उन पर टीबी का खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट की मानें तो इस वर्ष प्रदेश में 20.44 लच्ख बच्चों ने जन्म लिया। इनमें से 16.55 लच्ख बच्चों का टीकाकरण हुआ। 3.88 लच्ख बच्चे ऐसे छूटे जिन्हें टीका नहीं लगा। इसमें भी सबसे ज्यादा बुरी स्थिति प्रदेश बरेली, शाहजहांपुर, बदायूं, अयोध्या, लखनऊ, बाराबंकी, इटावा प्रयागराज, महाराजगंज, गाजीपुर, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़, आजमगढ़, झांसी, मऊ, मेरठ, श्रावस्ती जैसे जिलों के 35 अस्पतालों की हैं। इन सभी जिलों के सीएमओ को शासन से पत्र जारी कर सुधार के लिए कहा गया है। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा। प्रशांत रंजन का कहना हैं कि वह शत प्रतिशत टीकाकरण पर जोर दे रहे हैं। जल्द ही सच्ी बच्चों का टीकाकरण किया जाएगा।

कुछ विशेष बातें
-नवजात शिशु विभिन्न तरीकों से बैक्टीरिया के संपर्क में आ सकते हैं।
-इसके लक्षणों में बुखार, सुस्ती और सांस लेने संबंधी दिक्कत शामिल हैं।
-निदान के लिए सीने का एक्स-रे, ब्लड टेस्ट, फ़्लूड और ऊतक के नमूनों का टेस्ट और कल्चर और स्पाइनल टैप शामिल हो सकते हैं।
-सक्रिय संक्रमण से पीडि़त व्यक्ति के संपर्क में आने वाले शिशुओं को एंटीबायोटिक दिया जा सकता है, भले ही वे बीमार ना हों।
संक्रमण के इलाज के लिए संक्रमित नवजात शिशुओं और गर्भवती महिलाओं को एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं।

ऐसे होता है इन्फेक्शन
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के संपर्क में आने पर शिशु संक्रमित हो जाते हैं। बहुत तरह से शिशु इनके संपर्क में आ सकते हैं। जन्म से पहले बैक्टीरिया के गर्भनाल को पार कर जाने और भ्रूण को संक्रमित कर देने पर संक्रमण हो जाता है। जन्म के दौरान नवजात शिशु प्रसव नाल में संक्रमित फ्लूड में सांस लेने या उसे गटक लेने पर संक्रमण हो जाता है। जन्म के बाद नवजात शिशु ऐसे संक्रमित सूक्ष्म बूंदों में सांस लेने पर जो परिवार के सदस्यों या नर्सरी के कर्मचारियों के खुले में खांसने या छींकने से निकली होती हैं, संक्रमण हो जाता है। जिन माताओं के फेफड़ों में सक्रिय ट्यूबरक्लोसिस का संक्रमण होता है, उनसे पैदा होने वाले लगभग 50 परसेच्ट बच्चों में जीवन के पहले वर्ष के दौरान संक्रमण हो जाता है, जब तक कि इससे बचाव करने वाले एंटीबायोटिक्स या बैसिल कैल्मेट-गुरिन नामक टीका नहीं दे दिया जाता है।



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