What Is Attachment Disorder In Hindi: 15 वर्षीय अंजली को उस समय दिल्ली स्थित मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल के पास ले जाया गया, जब उसके पेरेंट्स को लगा कि वह बहुत ज्यादा चिड़चिड़ी हो गई है और उसे संभालना घर में किसी के बस की बात नहीं रह गई है। यहां तक कि वह स्कूल में भी अपने दोस्तों के साथ मिसबिहेव करती है। अंजली के दोनों पेरेंट्स वर्किंग हैं। ऐसे में उसके पेरेंट्स उसे पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। यही कारण है कि उसे लगता है कि उसके पेरेंट्स उसके इमोशंस की कद्र नहीं करते हैं और उसे इग्नोर करते हैं। घर के इस तरह के माहौल के कारण अंजली के मन में हमेशा फियर ऑफ रिजेक्शन बना रहने लगा है। वह अपने इमोशंस को अपने अंदर रखने लगी, जिससे उसके स्वभाव में गुस्सा शामिल हो गया। यहां तक कि अंजली की पढ़ाई, सोशल नेटवर्क सब इफेक्टेड होने लगे। उसकी हेल्थ पर भी इन सबका नेगेटिव इफेक्ट होने लगा है। ट्रीटमेंट के दौरान उसे साइकोलॉजिस्ट के पास ले जाया, जहां उसका एसेंसमेंट हुआ। उसकी ट्रीटमेंट की जर्नी में पता चला कि वह अटैचमेंट डिसऑर्डर की शिकार है।
यह केस स्टडी हमारे साथ मनोवैज्ञानिक एवं मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. अरविंद ओट्टा ने शेयर की है, जो अंजली का इलाज कर रहे हैं। ट्रीटमेंट के दौरान उन्हें रियलाइज हुआ कि अंजलि को अटैचमेंट डिसऑर्डर। इस कारण वह दूसरों से कटी-कटी रहती है और ज्यादातर लोगों को नापसंद करती है।
ओनलीमायहेल्थ ऐसे मानसिक विकारों और रोगों की बेहतर तरीके से समझने के लिए ‘मेंटल हेल्थ मैटर्स’ नाम से विशेष सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के जरिए हम मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर के लक्षण, कारण और इलाज के संबंध में विस्तार से बताते हैं। आज इस सीरीज में आपको अंजली की केस स्टडी की मदद से ‘अटैचमेंट डिसऑर्डर’ के बारे में बताने जा रहे हैं।
क्या है अटैचमेंट डिसऑर्डर- What Is Attachment Disorder In Hindi
अटैचमेंट डिसऑर्डर एक तरह की कॉम्प्लेक्स और कॉम्प्लीकेटेड डिसऑर्डर है। यह समस्या होने पर मरीज के अंदर बच्चों की तरह इनसिक्युरिटी आ जाती है। ऐसे लोग अक्सर उन लोगों से अलग होने डरते हैं, जो उनके जीवन में मायने रखते हैं। डॉ. अरविंद ओट्टा के अनुसार, “आमतौर पर अटैचमेंट डिसऑर्डर की समस्या बचपन से ही होने लगती है। इस तरह समस्या होने के पीछे खासकर घर का माहौल जिम्मेदार होता है। जब बच्चों को अपने पेरेंट्स से पूरा इमोशनल और फिजिकल सपोर्ट नहीं मिलता है, तब उनके मन में असुरक्षा की भावना घर करने लगती है। ऐसे बच्चों का सही तरह से विकास नहीं होता है, ये अपने इमोशंस को कंट्रोल नहीं कर पाते हैं और इनके रिश्तों में भी अनबन बनी रहती है।”
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अटैचमेंट डिसऑर्डर के लक्षण- Symptoms Of Attachment Disorder In Hindi
अटैचमेंट डिसऑर्डर होने पर मरीज में कई तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं, जैसे-
- दूसरों पर भरोसा करने में मुश्किल होना। अटैचमेंट डिसऑर्डर के मरीजों अपने आसपास मौजूद लोगों के साथ रिश्ते बनाने के दौरान काफी कॉन्शस रहते हैं। इस तरह के लोग अक्सर अपने आसपास के लोगों को नापसंद करते हैं और अपनी पर्सनल लाइफ में कोई खास स्पेस नहीं देते हैं।
- अटैचमेंट डिसऑर्डर के मरीज इमोशनल नजदीकियों से बचने की कोशिश करते हैं। वैसे तो ये लोग दूसरों के नजदीक आना चाहते हैं, लेकिन अपनी आदत के कारण वे दूसरों को खुद से दूर कर देते हैं। इनके ऐसा करने के कारण अक्सर लोग भी इन्हें नापसंद करते हैं और इनसे बातचीत करने से बचते हैं।
- ये लोग हमेशा इमोशनल अस्थिर यानी अनस्टेबल रहते हैं। वास्तव में, इस तरह के लोगों के मन में दूसरों के प्रति गुस्सा, फ्रस्ट्रेशन और चिड़चिड़ापन भरा रहता है। इनका स्वभाव दूसरों के लिए काफी अनप्रेडिक्टबल हो जाता है।
- आत्मविश्वास की कमी भी इन लोगें में देखने को मिलता है। असल में, इन लोगों के मन में यह बात घर कर जाती है कि वे किसी काम के नहीं है और उन्हें कोई पसंद नहीं करता है। इसलिए, इनका आत्मविश्वास भी कम हो जाता है।
अटैचमेंट डिसऑर्डर का कारण- Causes Of Attachment Disorder In Hindi
जैसा कि हमने अंजली के मामले में देखा है कि वे ज्यादातर समय अकेले रहती है। उसके पेरेंट्स भी उसे टाइम नहीं दे पाते हैं। धीरे-धीरे अंजली खुद को नेग्नेक्टेड महसूस करने लगी। आखिर में, वह अटैचमेंट डिसऑर्डर का शिकार हो गई। इसके अन्य कारणों की बात करें-
- बचपन में किसी ट्रॉमा के कारण ऐसा हो सकता है।
- परिवार इंपॉर्टेंस न दे।
- हमेशा खुद को दूसरों अलग-थलग महसूस करना।
- मन में इनसिक्युरिटी और रिजेक्शन का डर होना।
- अगर पेरेंट्स के बीच अच्छे रिश्ते न हों, तो इसका नेगेअव असर बच्चे पर पड़ सकता है।
अटैचमेंट डिसऑर्डर का ट्रीटमेंट- Treatment Of Attachment Disorder In Hindi
अटैचमेंट डिसऑर्डर होने पर न सिर्फ मरीज की बल्कि परिवार की भी थेरेपी की जाती है। अंजली के मामले में भी ऐसा ही किया गया। फिलहाल उसकी कंडीशन में सुधार है। अटैचमेंट डिसऑर्डर के ट्रीटमेंट के तौर पर कई तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे-
- मरीज की साइकोथेरेपी की जाती है। इससे मरीज अपनी इनसिक्युरिटी से सही तरह से डील करना सीखता है।
- फैमिली थेरेपी की जाती है। इससे परिवार भी मरीज को समझने की कोशिश करता है और उसकी मदद करता है।
- अगर मरीज के साथ बचपन में कोई बुरी दुर्घटना घटी है, तो उसके बारे में बात की जाती है और पुरानी बातों को भूलने में मदद की जाती है।
- जरूरी हो, तो एक्सपर्ट की मदद से मरीज को मेडिसिन दी जाती है। खासकर, उन लोगों में जिनमें अटैचमेंट डिसऑर्डर के साथ-साथ डिप्रेशन, एंग्जाइटी आदि समस्याएं हों।
अंजली की तरह अगर आपके घर में भी ऐसा कोई है, जिसे ‘अटैचमेंट डिसऑर्डर’ से जुडी समस्या है, तो बिना देरी किए उन्हें डॉक्टर के पास ले जाएं। यहां हमें अटैचमेंट डिसऑर्डर से जुडी सभी जानकारी देने की कोशिश की है। अगर फिर भी आपके मन में कोई सवाल रह गए हैं, तो हमारी वेबसाइट www.onlymyhealth.com में Social Phobia से जुड़े दूसरे लेख पढ़ें या हमारे सोशल प्लेटफार्म से जुड़ें।
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