Zerodha Co-Founder Nikhil Kamath’s Major Concern About Startup Ecosystem | जीरोधा के को-फाउंडर ने स्टार्टअप इकोसिस्टम को लेकर चिंता जताई: कहा – ज्यादा रेगुलेशन से इस पर नेगेटिव प्रभाव की उम्मीद, ब्रोकिंग फर्म चलाना कठिन काम


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मुंबई45 मिनट पहले

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ब्रोकरेज फर्म जिरोधा के को फाउंडर नितिन कामथ और उनके भाई निखिल कामथ। (फाइल फोटो) - Dainik Bhaskar

ब्रोकरेज फर्म जिरोधा के को फाउंडर नितिन कामथ और उनके भाई निखिल कामथ। (फाइल फोटो)

जीरोधा के को फाउंडर नितिन कामथ और उनके भाई निखिल कामथ ने स्टार्टअप इकोसिस्टम को लेकर चिंताएं जताई हैं। कामथ ब्रदर्स ने कहा कि ज्यादा रेगुलेशन से ग्रोथ रुक सकती है और लंबे समय में इसका स्टार्टअप इकोसिस्टम पर प्रतिकूल (नेगेटिव) प्रभाव पड़ सकता है।

सीएनबीसी-टीवी18 के एक पॉडकास्ट में कामथ और उनके भाई ने कहा – हम उन रेगुलेटर्स के अधीन हैं जिन पर ना तो हमारा कोई असर हैं और ना उनके फैसलों तक हमारा एक्सेस, लेकिन अपने फैसलों से वो एक दिन में हमारे रेवेन्यू को 50% तक कम कर सकते हैं। वो हमारे बिजनेस को हमेशा के लिए बंद भी कर सकते हैं।

कामथ ने उदाहरण देते हुए कहा कि जहां 50 बच्चों की क्लास में टीचर नियम बनाता है और बच्चों को मर्जी से डांट और फटकार लगाता है। क्या उन बच्चों से इनोवेशन निकल सकता है, जो पहले से डर में जी रहे हैं, शायद नहीं। हालांकि, निखिल कामथ ने यह भी कहा कि भारतीय रेगुलेटर्स ने समय के साथ सिस्टम को काफी दुरुस्त किया है।

नितिन कामथ बोले – ब्रोकिंग फर्म चलाना एक कठिन काम नितिन कामथ ने कहा कि सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) की ओर से लागू किए गए नए नियमों के कारण जिरोधा का रेवेन्यू कम होने की उम्मीद है।

उन्होंने ट्रू-टू-लेबल सर्कुलर के रेगुलेशन का एक उदाहरण बताया जो कंपनी के मुनाफे को नुकसान पहुंचा सकता है। कामथ ने कहा कि ब्रोकिंग फर्म चलाना एक कठिन काम है। इन सभी बातों के बाद भी कामथ भविष्य के लिए काफी आशावादी बने हुए हैं।

जीरोधा को बैंक में बदलना चाहते हैं कामथ ब्रदर्स कामथ ब्रदर्स जीरोधा को बैंक में बदलना चाहते हैं। उन्होंने इस बात पर दुख जताया है कि पिछले कई सालों में किए गए सभी प्रयासों के बाद भी बैंकिंग लाइसेंस नहीं मिला है।

3 महीने पहले भी इस सर्कुलर पर बोले थे नितिन कामथ 3 महीने पहले नितिन कामथ ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर लिखा था- सेबी ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी किया है। उसमें कहा गया है कि स्टाक एक्सचेंज जैसी मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशंस (MII) को 2 अक्टूबर 2024 से लगाए जाने वाले चार्ज को ‘लेबल के अनुसार’ लगाना होगा।

इस सर्कुलर का असर न केवल ब्रोकर्स पर बल्कि ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स पर भी पड़ेगा। पूरी संभावना है कि जीरो ब्रोकरेज स्ट्रक्चर को छोड़ना होगा या फिर F&O ट्रेड के लिए ब्रोकरेज बढ़ाना होगा। पूरी इंडस्ट्री में ब्रोकर्स को भी अपनी कीमतों में बदलाव करना होगा।

सेबी ने नई गाइडलाइन क्यों जारी की थी?

  • सेबी ने MIIs की ओर से लगाई गई फीस में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नई गाइडलाइन जारी की थी। ये गाइडलाइन अब लागू हो चुकी है। स्टॉक एक्सचेंज, क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन्स और डिपॉजिटरी को MIIs कहते हैं।
  • पहले जिस प्रोसेस को फॉलो किया जाता है उसमें स्टॉक ब्रोकर की ओर से किए गए टोटल टर्नओवर के आधार पर स्टॉक एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस लेते थे। ब्रोकर कस्टमर्स से डेली बेसिस पर चार्ज वसूलते थे जबकि वो मंथली बेसिस पर स्टॉक एक्सचेंज को चार्ज पे करते थे।
  • पहले स्टॉक एक्सचेंज वॉल्यूम बेस्ड स्लैब वाइज चार्ज स्ट्रक्चर फॉलो करते थे। यानी, ब्रोकर का अगर टर्नओवर ज्यादा होता है तो वो स्टॉक एक्सचेंज के ऐसे स्लैब में आते है जिसमें चार्ज कम लगता था। वहीं अगर ब्रोककर का टर्नओवर कम है तो उसे ज्यादा चार्ज देना पड़ता था।
  • सेबी का कहना था कि स्लैब बेनिफिट के कारण MIIs को देने वाले चार्ज की तुलना में ब्रोकर अपने क्लाइंट से ज्यादा चार्ज वसूल सकते हैं। इसके कारण MIIs की ओर से लगाए गए एक्चुअल चार्ज के बारे में एंड क्लाइंट तक मिसलीडिंग जानकारी पहुंच सकती है।
  • स्लैब-वाइज चार्ज स्ट्रक्चर ट्रांसपेरेंसी को प्रभावित कर सकती है। अलग-अलग साइज के ब्रोकर्स के लिए अनइक्वल प्लेइंग फील्ड क्रिएट करता है। सेबी चाहता है कि ब्रोकर जितना चार्ज अपने क्लाइंट से वसूले, वो MIIs को ब्रोकर से रिसीव हुए चार्ज के बराबर हो।

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