वाशिंगटन24 मिनट पहले
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अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 18 सितंबर को ब्याज दरों में चार साल बाद कटौती की है। 50 बेसिस पॉइंट (0.5%) की कटौती एक्सपर्ट्स की उम्मीदों से ज्यादा है। अब ब्याज दरें 4.75% से 5.25% के बीच रहेंगी। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी है, ऐसे में इसके सेंट्रल बैंक के हर बड़े फैसले का असर दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ता है।
कटौती का इम्पैक्ट: भारत में भी ब्याज दरें कम हो सकती है, लोन सस्ता मिलेगा
- अमेरिका में ब्याज दरें घटने के बाद भारत का रिजर्व बैंक भी दर घटा सकता है। इस कटौती से बैंकिंग सेक्टर पर दबाव पड़ सकता है। जैसे-जैसे ब्याज दरें गिरती हैं, बैंक जमा ग्राहकों के लिए कम अट्रैक्टिव हो जाता है। इससे मीडियम टर्म में बैंकिंग प्रोफिटेबिलिटी प्रभावित होगी। हालांकि लोन की कम दरों का फायदा रियल एस्टेट सेक्टर को मिल सकता है।
- दरों में कटौती से अमेरिका और अन्य देशों की ब्याज दरों के बीच अंतर बढ़ गया है। यह भारत जैसे देशों को करेंसी कैरी ट्रेड के लिए ज्यादा अट्रैक्टिव बनाता है। अमेरिका में ब्याज दर जितनी कम होगी, आर्बिट्रेज अपॉर्च्यूनिटी उतनी ही ज्यादा होगी। आर्बिट्रेज अपॉर्च्यूनिटी एक ऐसी स्थिति है जहां विभिन्न बाजारों में एक ही एसेट के मूल्य में अंतर होता है।
- कम अमेरिकी दर से भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे करेंसी और इक्विटी मार्केट मजबूत होंगे। अमेरिका और भारत के बाजर पर इसका असर दिखा भी है। 19 सितंबर को अमेरिकी बाजार का डाओ जोंस1.26% बढ़कर 42,025 के स्तर पर बंद हुआ। वहीं आज यानी 20 सितंबर को सेंसेक्स 84,694 का और निफ्टी ने 25,849 का हाई बनाया।
- दर में कटौती से अक्सर अमेरिकी डॉलर का डेप्रिसिएशन होता है, जिससे ग्लोबल ट्रेड बैलेंस और एक्सचेंज रेट प्रभावित होते हैं। कमजोर डॉलर से तेल और सोने जैसी वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, क्योंकि आम तौर पर इनकी कीमत डॉलर में होती है। भारत में सोना आज ₹220 बढ़कर ₹73,202 पर पहुंच गया है। चांदी ₹88,612 रुपए प्रति किलो बिक रही है।
भारत में मार्च 2025 तक 0.25% की कटौती हो सकती है
- जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजिस्ट डॉ. वी के विजयकुमार ने कहा कि भारत में मार्च 2025 तक 0.25% की कटौती हो सकती है। RBI ने 8 फरवरी 2023 के बाद से ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। अभी रेपो रेट 6.50% है।
- वॉलफोर्ट फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड के फाउंडर विजय भराड़िया ने कहा की कि दर में कटौती एक साहसिक कदम है जो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) सहित अन्य वैश्विक केंद्रीय बैंकों को सॉफ्टर मॉनेटरी स्टांस अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
महंगाई से लड़ने का शक्तिशाली टूल है पॉलिसी रेट किसी भी सेंट्रल बैंक के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है।
पॉलिसी रेट ज्यादा होगी तो बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है।
इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है।