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अपरा एकादशी ज्येष्ठ माह में आती है। इसका पौराणिक महत्व बताया गया है।
By Bharat Mandhanya
Publish Date: Sun, 02 Jun 2024 11:03:31 AM (IST)
Updated Date: Sun, 02 Jun 2024 12:49:33 PM (IST)

HighLights
- ज्येष्ठ माह में दो बार आती है अपरा एकादशी
- पौराणिक कथाओं में मिलता है जिक्र
- भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का होता है पूजन
Apara Ekadashi Katha धर्म डेस्क, इंदौर। ज्येष्ठ माह की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। वैसे तो हिंदू धर्म में प्रत्येक एकादशी महत्वपूर्ण है, लेकिन अपरा एकादशी का अपने आप में महत्व है। ज्येष्ठ माह में यह एकादशी दो बार आती है। जिसमें एक कृष्ण पक्ष की तो दूसरी शुक्ल पक्ष की एकादशी शामिल है।
मान्यता है कि अपरा एकादशी पर भगवान विष्णु (Lord Vidhnu) और मां लक्ष्मी (Maa Laxmi) का पूजन करना चाहिए। साथ ही एकादशी के पाठ को भी शुभ माना गया है। मान्यता है कि एकादशी की कथा का पाठ करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, साथ ही पूजा भी सफल मानी जाती है। आपको इस लेख में अपरा एकादशी की कथा बताते हैं।
श्रीकृष्ण ने समझाया अपरा एकादशी का महत्व
अपरा एकादशी के महत्व की कथा महाभारत काल में भी मिलती है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि इसके व्रत से प्रेत योनि, ब्रह्म हत्या और पाप से मुक्ति मिलती है।
ऐसी है पौराणिक कथा (Mythological story of Apara Ekadashi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में महीध्वज नामक राजा था और धर्म-कर्म में लीन रहता था। जबकि उसका छोटा वज्रध्वज राजा के बिल्कुल विपरीत था, वह अत्यंत क्रूर और अधर्म के कार्यों में रत था। एक दिन मौका पाकर वज्रध्वज ने द्वेष के चलते राजा महीध्वज की हत्या कर दी और प्रजा को इसके बारे में सूचन न मिले, इसलिए राजा के शव को जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया।
चूंकि राजा की अकाल मृत्यु हुई थी, ऐसे में उसकी आत्मा के मुक्ति नहीं मिली और वह प्रेतात्मा बन गया और उसी पीपल के पेड़ पर रहकर लोगों को परेशान करने लगा।
एक बार की बात है ऋषि धौम्य उसी वृक्ष के पास से गुजर रहे थे, तो राजा ने उन्हें भी परेशान करने का प्रयास किया, लेकिन ऋषि ने राजा की प्रतात्मा को अपने वश में कर लिया। जिसके बाद उन्हें राजा के साथ हुई घटना की जानकारी मिली।
बाद में राजा को मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी पर अपरा एकादशी का व्रत रखकर जप किया, जिसके बाद राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल सकी।
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