पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन की अमावस्या तक चलते हैं। इस बार 17 सितंबर 2024 से दो अक्टूबर 2024 तक पितृपक्ष रहेगा। इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास से जानिए पितृपक्ष में किस समय पर करना चाहिए तर्पण और इससे क्या मिलता है लाभ।
By Shashank Shekhar Bajpai
Edited By: Shashank Shekhar Bajpai
Publish Date: Mon, 09 Sep 2024 01:37:19 PM (IST)
Updated Date: Mon, 09 Sep 2024 01:37:19 PM (IST)
HighLights
- श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों के लिए धरती पर आते हैं पितर।
- तर्पण और दान से पितरों की आत्मा को मिलती है शांति।
- पितरों की कृपा न हो, तो कुंडली में दिखता है पितृ दोष।
शशांक शेखर बाजपेई, धर्म डेस्क। Pitru Paksha 2024 Tithi Kab Hai: देवी-देवताओं के अलावा पितर भी हमारे जीवन के लिए, मंगलकार्यों के लिए बहुत जरूरी हैं। हमारे ये पूर्वज पितृ लोक में वास करते हैं और श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों के लिए वे धरती पर आते हैं। इसीलिए उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण, अर्पण और दान देने की परंपरा है।
ऐसा करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और उन्हें मोक्ष मिलता है। वह हमें आशीर्वाद देकर जाते हैं। इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास बताते हैं कि पितरों की कृपा नहीं हो, तो जातक की कुंडली में पितृ दोष लगता है। ऐसे लोगों का जीवन दुखों और परेशानियों से भर जाता है।
घर परिवार में सुख-शांति नहीं रहती है। आकस्मिक दुर्घटनाएं होती हैं। वैवाहिक जीवन में भी परेशानियां होने लगती हैं। लिहाजा, पितरों की शांति के लिए श्राद्धपक्ष के ये 15 दिन बहुत विशेष होते हैं।
17 सितंबर से शुरू हो रहे हैं पितृपक्ष
इस बार पितृपक्ष में कुल 16 तिथियां रहेंगी। पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन की अमावस्या तक चलते हैं। इस बार 17 सितंबर 2024 से दो अक्टूबर 2024 तक पितृपक्ष रहेगा।
17 सितंबर – पूर्णिमा का श्राद्ध
18 सितंबर – प्रतिपदा का श्राद्ध
19 सितंबर – द्वितीय का श्राद्ध
20 सितंबर – तृतीया का श्राद्ध
21 सितंबर – चतुर्थी का श्राद्ध
21 सितंबर – महा भरणी श्राद्ध
22 सितंबर – पंचमी का श्राद्ध
23 सितंबर – षष्ठी का श्राद्ध
23 सितंबर – सप्तमी का श्राद्ध
24 सितंबर – अष्टमी का श्राद्ध
25 सितंबर – नवमी का श्राद्ध
26 सितंबर – दशमी का श्राद्ध
27 सितंबर – एकादशी का श्राद्ध
29 सितंबर – द्वादशी का श्राद्ध
29 सितंबर – माघ श्रद्धा
30 सितंबर – त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्टूबर – चतुर्दशी का श्राद्ध
2 अक्टूबर – सर्वपितृ अमावस्या
नोट- जिन लोगों को अपने पितरों के निधन की तिथि ज्ञात नहीं हो, वो सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।
दोपहर में करना चाहिए तर्पण-अर्पण
पंडित गिरीश व्यास बताते हैं कि देवी-देवताओं की पूजा-पाठ सुबह और शाम को की जाती है। पितरों के लिए दोपहर का समय होता है. दोपहर में करीब 12:00 बजे श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। सुबह नित्यकर्म और स्नान आदि के बाद पितरों का तर्पण करना चाहिए।
श्राद्ध के दिन कौवे, चींटी, गाय, देव, कुत्ते और पंचबलि भोग देना चाहिए। इसके बाद यथा शक्ति-सामर्थ्य ब्राह्मणों को भोज और दान देना चाहिए। इस श्राद्ध में खिरान्न का विशेष महत्व है, जिसमें महामारी से लड़ने की शक्ति होती है। मलेरिया, टाइफाइट आदि से रोकथाम भी होती है। जो भी व्यक्ति इस महालय श्राद्ध को सही तरह से करता है, पितृ उसे पुत्र लाभ के साथ धन लाभ भी देते हैं।