Bhagwan Jagannath Snan: 22 जून को भगवान जगन्नाथ करेंगे सहस्‍त्र धारा स्नान, फिर 14 दिनों तक नहीं देंगे दर्शन, जानें क्‍या है मान्‍यता


प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर देव स्नान पर्व मनाया जाता है। इस दिन पुरी में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को स्नान करवाने की परंपरा है। देवताओं को 108 घड़ों से स्नान करवाया जाता है, जिसके बाद 14 दिनों तक भगवान भक्तों को दर्शन नहीं देते और आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।

By Bharat Mandhanya

Publish Date: Tue, 18 Jun 2024 10:41:29 AM (IST)

Updated Date: Tue, 18 Jun 2024 10:50:50 AM (IST)

जगन्‍नाथ रथ यात्रा का प्रतीकात्मक फोटो।

HighLights

  1. मान्यता है कि पूर्णिमा स्नान के पश्चात भगवान अस्वस्थ हो जाते हैं।
  2. अस्वस्थता अवधि के दौरान मंदिर के पट 15 दिनों के लिए बंद रहते हैं।
  3. स्वस्थ होने के पश्चात भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर निकलेंगे।

Bhagwan Jagannath Snan धर्म डेस्‍क, इंदौर। पुरी में विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा की तैयारी की जा रही है। इससे पहले ज्‍येष्‍ठ माह की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को सहस्त्र धारा स्नान करवाया जाएगा। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा और की पूजा की जाती है। सहस्‍त्र धारा स्नान भगवान जगन्नाथ के प्रमुख अनुष्ठानों में से एक है। इस दिन को देव स्नान पूर्णिमा कहा गया है। इस वर्ष यह विशेष पूर्णिमा 22 जून को है।

क्या है मान्यता

प्रत्येक वर्ष ज्‍येष्‍ठ माह की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा को सहस्त्र धारा स्नान करवाया जाता है। इसके लिए देवताओं को स्नान मंडप तक लाया जाता है और जगन्नाथ मंदिर के अंदर मौजूद कुएं के जल से इन्हें स्नान करवाया जाता है। इस दौरान कई अनुष्ठान भी किए जाते हैं। स्नान के लिए 108 घड़ों का उपयोग किया जाता है। जल में फूल, चंदन, केसर और कस्तूरी भी मिलाया जाता है। सहस्त्र धारा स्नान पूर्ण होने पर भगवान को ‘सादा बेश’ बनाया जाता है। दोपहर में ‘हाथी बेश’ पहनकर भगवान गणेश के रूप में तैयार किया जाता है।

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14 दिन तक नहीं देंगे दर्शन

सहस्त्र धारा स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ 14 दिन तक भक्तों को दर्शन नहीं देते। माना जाता है कि ज्यादा नहाने से भगवान बीमार हो जाते हैं। इसलिए 14 दिनों तक भगवान का उपचार चलता है।ब वहीं 15वें यानी आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, जिसे नेत्र उत्सव कहा जाता है। नेत्र उत्सव के अगले दिन यानी आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा के शुरू हो जाती है, जिसमें दुनिया भर से लोग शामिल होने पहुंचते हैं।



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