ओडिशा में स्थित जगन्नाथ मंदिर में हर साल रथयात्रा निकाली जाती है। इसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। भव्य जगन्नाथ यात्रा के लिए भगवान श्री कृष्ण, बलराम और देवी सुभद्रा के तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं। भगवान अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। रथ यात्रा निकालने से पहले कई तरह की प्रक्रिया की जाती है, जिसमें सबसे पहले स्नान यात्रा होती है।
By Ekta Sharma
Publish Date: Sat, 22 Jun 2024 08:16:16 AM (IST)
Updated Date: Sat, 22 Jun 2024 09:45:46 AM (IST)
HighLights
- 7 जुलाई से शुरू होगी जगन्नाथ रथ यात्रा
- रथ यात्रा से पहले निकाली जाती है स्नान यात्रा
- फिर 14 दिन के लिए बीमार पड़ जाएंगे भगवान
धर्म डेस्क, इंदौर। Snan Yatra 2024: आज यानी 22 जून को देव स्नान पूर्णिमा मनाई जा रही है। यह दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए विशेष माना जाता है। देव स्नान पूर्णिमा पर ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों की मूर्तियों को विशेष स्नान कराया जाता है। स्नान से पहले भव्य यात्रा निकाली जाती है, इसलिए इसे स्नान यात्रा कहा जाता है। कहा जाता है कि रथयात्रा से पहले यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाती है। स्नान यात्रा से जुड़े कुछ वीडियो न्यूज एजेंसी एएनआई ने अपने एक्स हैंडल पर शेयर किए हैं।
स्नान यात्रा की प्रक्रिया
देव स्नान पूर्णिमा के अवसर पर, हजारों भक्त भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों की ‘स्नान यात्रा’ देखने के लिए पुरी पहुंचे हैं। इस त्योहार को कुछ लोग भगवान जगन्नाथ के जन्मदिन के रूप में भी मनाते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन, भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को सुबह के समय मंदिर के ‘रत्न सिंहासन’ से बाहर निकाला जाता है। इसके बाद मंत्रोच्चार और घंटा, ढोल, बिगुल और झांझ की ध्वनि के साथ जुलूस निकालकर स्नान वेदी तक लाया जाता है। इसे ‘पहांडी’ जुलूस कहा जाता है। फिर तीनों देवताओं को स्नान कराया जाता है।
जड़ी-बूटी और सुगंधित पानी से स्नान
भगवान के स्नान में जिस पानी का उपयोग किया जाता है, वह जगन्नाथ मंदिर के अंदर मौजूद विशेष कुएं से लिया जाता है। पानी में जड़ी-बूटी और सुगंधित चीजें मिलाई जाती हैं। स्नान के लिए 108 घड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद तीनों देवताओं को विशेष परिधान पहनाया जाता है। इसे सादा बेशा कहा जाता है। दोपहर के बाद भगवान को गणेश जी के रूप में सजाया जाता है, जिसे हाथी बेशा कहा जाता है। शाम के समय भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, श्रद्धालुओं को दर्शन देने के लिए प्रकट होते हैं, जिसे सहनामेला कहते हैं।
रात के समय आवास में चले जाते हैं भगवान
रात के समय भगवान जगन्नाथ, मंदिर में स्थित एक विशेष आवास में चले जाते हैं। इसे अनासर कहा जाता है। इसके बाद भगवान 14 दिन के लिए बीमार पड़ जाते हैं और अनासर में अपने भक्तों से दूर रहते हैं। फिर 15 दिन बाद भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र रथ यात्रा ये पहले भक्तों को दर्शन देने के लिए प्रकट होते हैं। इस साल रथ यात्रा 7 जुलाई 2024 से शुरू होकर 16 जुलाई 2024 को समाप्त होगी।