Diwali 2024: दीवाली पर अपनी राशि के अनुसार करें मां लक्ष्मी को करें प्रसन्न, ज्योतिषाचार्य ने बताए मंत्र और पूजन विधि


इस वर्ष दीवाली का उत्सव 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को मनाया जाएगा, जिसमें लक्ष्मी पूजन विशेष महत्व रखता है। भक्तों को सही समय और पूजा विधि के बारे में जानना आवश्यक है ताकि मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके। इस अवसर पर पूजा के लिए आवश्यक सामग्रियों की तैयारी करें और विशेष मंत्रों का जाप करें।

By Shravan Kumar Sharma

Publish Date: Thu, 31 Oct 2024 08:57:44 AM (IST)

Updated Date: Thu, 31 Oct 2024 10:36:32 AM (IST)

छत्‍तीसगढ़ में दो दिनों तक दीवाली की धूम। प्रतीकात्‍मक फोटो

HighLights

  1. आज दीवाली पर चर योग, प्रीति योग, नीच भंग राज योग का संयोग।
  2. 10.52 से 1.31 बजे के मध्य मंत्र जाप करने से लक्ष्मी स्थिर होगी।
  3. दोपहर बाद ही अमावस्या तिथि शुरू होगी, शाम को पूजन होगा।

नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। इस वर्ष दो दिनों तक अमावस्या का संयोग होने से दो दिनों तक दीवाली की धूम मचेगी। ज्योतिषों के अनुसार 31 अक्टूबर को चर योग के साथ प्रीति योग है। साथ ही मंगल प्रधान चित्रा नक्षत्र और मंगल, चंद्र का नीच भंग राज योग भी है। गुरुवार को दोपहर बाद अमावस्या तिथि प्रारंभ होगी। रात्रि में लक्ष्मी पूजा की जाएगी। वहीं 1 नवंबर को अमावस्या तिथि शाम तक है। शाम को वृषभ लग्न और प्रदोष है, इस दिन भी लक्ष्मी पूजन किया जाएगा।

ज्योतिषाचार्य डा.दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार 31 अक्टूबर को दोपहर 3.52 के पश्चात अमावस्या तिथि प्रारंभ होकर 1 नवंबर को शाम 6.16 बजे तक विद्यमान रहेगी। सूर्यास्त शाम 5.23 बजे होगा। सूर्य अस्त होने बाद 2 घड़ी से ज्यादा अमावस्या है।naidunia_image

जिस दिन अमावस्या उसी दिन मनाएं दीवाली

शास्त्रों में वर्णित है कि यदि उदयकालीन अमावस्या हो और सूर्यास्त के बाद एक घड़ी भी अमावस्या हो तो उसी दिन दीवाली मनाएं। चूंकि, 31 अक्टूबर को पूरी रात अमावस्या है और प्रदोषकालीन, वृषभ लग्न युक्त अमावस्या है, इसलिए 31 अक्टूबर और 1 नवंबर दोनों दिन दीवाली मनाई जा सकती है। धर्मसिंधु ग्रंथ में उल्लेखित है कि चतुर्दशी युक्त अमावस्या की अपेक्षा प्रतिपदा युक्त अमावस्या पर लक्ष्मी, कुबेर पूजन ज्यादा श्रेष्ठ होता है।

मुहूर्त

परिवार की सुख, समृद्धि के लिए

वृषभ लग्न – शाम 6.17 से 8.16 बजे

विद्यार्थियों, शिक्षकों, पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए

मिथुन लग्न – रात्रि 8.16 से 10.29 बजे

व्यापारियाें के लिए

सिंह लग्न – रात्रि 12.44 से 2.54 बजे

निशिथ काल – रात्रि 8.14 से 10.52 बजे

महानिशिथ काल – रात्रि 10.52 से 1.31 बजे

चौघड़िया अनुसार

शुभ, अमृत और चर – शाम 5.22 से रात्रि 10.11 बजे

1 नवंबर को लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त

वृषभ लग्न – शाम 6.14 से 8.13 बजे

स्थिर लक्ष्मी के लिए मंत्र

दीवाली की रात्रि महानिशिथ काल में 10.52 से 1.31 बजे के मध्य मंत्र जाप करने से लक्ष्मी स्थिर होगी।

मंत्र

त्रैलोक्य पूजिते देवी कमले विष्णु वल्लभे।

यथा त्वमेचला कृष्णे, तथा भव मयी स्थिरा॥

कमला चंचला लक्ष्मीश्चला भूतिर्हरिप्रिया।

पद्मा पद्मालया सम्य गुच्चै: श्री: पद्मधारिणी।।

द्वादशैतानि नामानि लक्ष्मी संपूज्य यथ पठेत्।

स्थिरा लक्ष्मीर्भवेत्तस्य पुत्र दारादि भिथ सहो।।

अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए कुबेर पूजन

पूजा सुपारी को इत्र में डुबोकर लाल कुंकुम से बने स्वस्तिक पर स्थापित करें। धूप, दीप, आरती से पूजन करें। भोग लगाकर कमल के फूल या सुगंधित पुष्प अर्पित करके ‘ ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रणवाय धनधान्यादि पतये धनधान्य समृद्धि में देहि देहि दापय दापय स्वाहा’ मंत्र पढ़ें। यह मंत्र महानिशिथ काल रात्रि 10.52 से 1.31 के मध्य जाप करें।

राशि अनुसार करें लक्ष्मी को करें प्रसन्न

  • मेष : पांच गोमती चक्र गुलाब जल में रख कर श्री सूक्त या लक्ष्मी जी के मंत्र शंख चक्र गदा हस्ते श्रीं महा लक्ष्म्यै नम: का जाप करें।
  • वृष : केसर के दूध से लक्ष्मी जी का मंत्र, ‘मांगल्यदास्तु श्रीं लक्ष्मी देव्यै नम:’ से अभिषेक करें।
  • मिथुन : लक्ष्मी जी का पूजन कर हरे फलों का भोग लगा कर पान अर्पित करें।
  • कर्क : लक्ष्मी जी का विधिवत पूजन कर के द्यह्रीं ह्रीं त्रिपुरारेश्वरी लक्ष्मी देव्यै ह्रीं ह्रींद्ग मंत्र का जाप करें।
  • सिंह : अनार के रस से भगवती लक्ष्मी जी का अभिषेक करें।
  • कन्या : गाय के दूध से खीर बनाकर लक्ष्मी जी को भोग लगाएं।
  • वृश्चिक : किसी गाय को पांच केले खिला कर लक्ष्मी जी को लाल पुष्प अर्पित करें।
  • धनु : लक्ष्मी जी की प्रतिमा को हल्दी वाले सुगंधित जल से स्नान कराएं।
  • मकर : ‘ह्रीं श्रींद्ग हिरण्यवर्णा लक्ष्मी देव्यै नम: मंत्र से लक्ष्मी जी का अभिषेक करें।
  • कुंभ : लक्ष्मी जी का केसर दूध से अभिषेक कर दवात की शीशी की पूजा करें।
  • मीन : लक्ष्मी पूजा कर पांच कमल के गट्टॆ अर्पित करें। मंत्र ‘ह्रीं श्रीं ह्रीं ‘ का उच्चारण करते हुए हल्दी युक्त जल से अभिषेक करें।



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