केवल दशहरा के दिन खुलता है कंकाली मंदिर, यहां रखे हैं प्राचीन शस्त्र, जानें कहां है यह मंदिर और क्‍या है यहां का इतिहास


700 वर्ष पूर्व नागा साधुओं ने श्मशान घाट में देवी की पूजा की, जिससे देवी का नाम मां कंकाली पड़ा। यह शहर का दूसरा ऐतिहासिक देवी मंदिर है, जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ। मठ में स्थापित प्रतिमा को 400 वर्ष पहले तालाब के ऊपर बने टीले पर स्थानांतरित किया गया था। मठ में प्राचीन शस्त्र रखे हैं, जिन्हें दशहरा के दिन पूजा के लिए निकाला जाता है।

By Shravan Kumar Sharma

Publish Date: Sat, 12 Oct 2024 08:57:36 AM (IST)

Updated Date: Sat, 12 Oct 2024 11:38:06 AM (IST)

छत्‍तीसगढ़ का अद्भुत कंकाली मंदिर। फाइल फोटो

HighLights

  1. कंकालों के बीच नागा साधु करते थे पूजा, इसलिए कंकाली नाम पड़ा।
  2. 700 वर्ष पहले नागा साधुओं ने कंकाली मंदिर की स्थापना की थी।
  3. कंकाली मठ के महंत ने देवी के दर्शन के बाद जीवित समाधि ली।

रायपुर। नागा साधु 700 वर्ष पहले श्मशानघाट में कंकालों के बीच रहकर देवी की पूजा करते थे, इसलिए देवी का नाम मां कंकाली पड़ गया। यह शहर का दूसरा ऐतिहासिक देवी मंदिर है, मां कंकाली की प्रतिमा के बारे में अनुमान लगाया जाता है कि इसका निर्माण 14वीं शताब्दी में किया गया था। वर्तमान के ब्राह्मणपारा इलाके में जिस जगह पर माता की प्रतिमा है, वह इलाका पहले घनघोर जंगल और श्मशान हुआ करता था। जहां नागा साधुओं ने प्रतिमा की स्थापना की थी, उसे कंकाली मठ कहा जाता है।

इस मठ की प्रतिमा को लगभग 400 वर्ष पहले तालाब के ऊपर बने टीले पर मंदिर बनवाकर स्थानांतरित किया गया था। पुराने मठ में आज भी नागा साधुओं के प्राचीन शस्त्र रखे हुए हैं। यह मठ वर्ष में एक बार केवल दशहरा के दिन खोला जाता है। यह जानकारी दे रहे हैं श्रवण शर्मा

औषधियुक्त है तालाब का पानी

मठ से स्थानांतरित की गई प्रतिमा जिस मंदिर में विराजित की गई है, इस मंदिर के नीचे जो तालाब है, उस तालाब के पानी को चमत्कारी मानकर चर्म रोगों से पीड़ित लोग तालाब में स्नान करते हैं। इस तालाब में नवरात्र के दिनों में घर-घर में बोए जाने वाले जंवारा अर्थात साबुत गेहूं को रोपने से उगे घास, दूब का विसर्जन किया जाता है।

यह जंवारा औषधि के रूप में तालाब में घुलमिलकर जल को औषधियुक्त जल बनाने में सहयोग करता है। यह भी कहा जाता है कि इस तालाब में गंधक तत्व की मात्रा अधिक है, जो औषधि का काम करती है, जिसके चलते तालाब में स्नान करने से चर्मरोग की छोटी बीमारियों में राहत मिलती है।

एक हजार वर्ष से अधिक प्राचीन शस्त्र

– मठ में निवास करने वाले नागा साधु अपनी रक्षा के लिए शस्त्र रखते थे।

– मठ में तीर, धनुष और त्रिशूल जैसे शस्त्र रखे हैं, जो 1000 वर्ष से अधिक पुराने हैं।

– दशहरा के दिन सभी शस्त्रों को मठ से निकालकर पूजा-अर्चना की जाती है।

– दशहरा के दिन सभी शस्त्रों को श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए रखे जाते हैं।

– दर्शन के बाद एकादशी के दिन फिर से पूजा करके मठ को बंद कर दिया जाता है।

अनेक महंतों ने दी सेवा

13वीं शताब्दी में स्थापित कंकाली मठ में 17वीं शताब्दी तक नागा साधुओं का निवास था। 17वीं शताब्दी में मठ के पहले महंत कृपालु गिरी महाराज हुए। ऐसी मान्यता है कि मठ के महंत कृपालु गिरी को माता ने स्वप्न में दर्शन देकर मठ में स्थापित प्रतिमा को मंदिर बनवाकर स्थानांतरित करने का आदेश दिया। इसके पश्चात मठ के समीप एक टीले पर कंकाली मंदिर का निर्माण करवाया गया।

पूर्व के महंतों में भभूता गिरी, शंकर गिरी महंत रहे। वे निहंग संन्यासी थे। उन्होंने विवाह नहीं रचाया। महंत शंकर गिरी ने निहंग परंपरा को खत्म करके अपने शिष्य सोमार गिरी का विवाह संपन्न कराया। उनके कोई संतान नहीं हुई। इसके पश्चात शिष्य शंभू गिरी को महंत बनाया गया। वर्तमान में शंभू गिरी के पड़पोते रामेश्वर गिरी के वंशज महंत हरभूषण गिरी मठ के सेवादार हैं।

तालाब के बीच 25 फीट तक डूबा है शिव मंदिर

कंकाली तालाब के बीचोबीच एक शिव मंदिर है, जिसका केवल शिखर कलश ही दिखाई देता है। पूरा मंदिर लगभग 25 फीट तक पानी में डूबा हुआ है। वर्ष 2014 में जब तालाब की सफाई की गई थी, तब ब्राह्मणपारा निवासियों ने पूरे मंदिर का दर्शन किया था।

जंवारा विसर्जन में उमड़ते हैं श्रद्धालु

कंकाली तालाब में चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र की नवमीं तिथि पर जोत जंवारा का विसर्जन किया जाता है। इस तालाब के आसपास पांच किलोमीटर दूर तक बसे मोहल्ले के लोग सिर पर जंवारा थामकर तालाब के किनारे पहुंचते हैं। जंवारा यात्रा में तालाब के किनारे श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है।



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