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कान पर यदि रोज जनेऊ बांधते हैं तो स्मरण शक्ति में बढ़ोतरी होती है। जनेऊ पहनने से आध्यात्मिकता का विकास होता है।
By Sandeep Chourey
Publish Date: Mon, 29 Apr 2024 02:23 PM (IST)
Updated Date: Mon, 29 Apr 2024 02:23 PM (IST)

HighLights
- हिंदू धर्म ग्रंथों में उपनयन या यज्ञोपवीत संस्कार के बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है।
- जनेऊ धारण करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है।
- व्यक्ति से नकारात्मकता दूर हो जाती है। जनेऊ धारण करने से कभी भी बुरे सपने नहीं आते हैं।
धर्म डेस्क, इंदौर। सनातन धर्म में उपनयन संस्कार का विशेष महत्व है। इस यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि उपनयन संस्कार के बाद जनेऊ धारण करने से बच्चे को ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ नैतिक मूल्यों को बनाए रखने की शक्ति मिलती है। पंडित आशीष शर्मा के मुताबिक, यदि विधि-विधान के साथ जनेऊ धारण की जाए तो शरीर के पास कभी भी बुरी शक्तियां नहीं आती है।
यज्ञोपवीत संस्कार का महत्व
हिंदू धर्म ग्रंथों में उपनयन या यज्ञोपवीत संस्कार के बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। जनेऊ धारण करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है। व्यक्ति से नकारात्मकता दूर हो जाती है। जनेऊ धारण करने से कभी भी बुरे सपने नहीं आते हैं। इसके अलावा हृदय रोग और ब्लड प्रेशर की आशंका कम होती है। शरीर में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार होता है। कान पर यदि रोज जनेऊ बांधते हैं तो स्मरण शक्ति में बढ़ोतरी होती है। जनेऊ पहनने से आध्यात्मिकता का विकास होता है। धार्मिक मान्यता है कि जनेऊ के धागों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है।
जनेऊ धारण करते समय सावधानी
जनेऊ को शौचालय जाते समय दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए। हाथों को साफ करने के बाद ही कान से उतारना चाहिए। जनेऊ का कोई धामा टूट जाए या खंडित हो जाए तो जनेऊ बदल लेना चाहिए और अभिमंत्रित करने से बाद ही दूसरी जनेऊ धारण करना चाहिए। स्नान के दौरान भी जनेऊ को कभी नहीं उतारना चाहिए।
डिसक्लेमर
‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’
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