Jagannath Rath Yatra 2024: जयेष्ठ पूर्णिमा के दिन पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर रायपुर के मंदिरों में भी भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भैया बलभद्र के श्रीविग्रह को स्नान कराने की परंपरा निभाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से भगवान बीमार हो जाते हैं, अगले 15 दिनों तक काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाती है।
By Shravan Kumar Sharma
Publish Date: Sat, 22 Jun 2024 09:51:15 AM (IST)
Updated Date: Sat, 22 Jun 2024 09:51:15 AM (IST)
Jagannath Rath Yatra 2024: रायपुर। दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो बीमार न पड़ा हो। इंसान तो बीमार पड़ता ही है, धर्म ग्रंथों में उल्लेखित है कि भगवान जगन्नाथ भी ज्येष्ठ पूर्णिमा की भीषण गर्मी में अत्यधिक स्नान करने से बीमार हो गए थे। भगवान को बीमारी से राहत दिलाने के लिए औषधियुक्त काढ़ा पिलाया गया था। 15 दिनाें तक बीमार रहने के दौरान औषधियुक्त काढ़ा पिलाने से भगवान स्वस्थ हुए थे।
जयेष्ठ पूर्णिमा के दिन पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर राजधानी के मंदिरों में भी भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भैया बलभद्र के श्रीविग्रह को स्नान कराने की परंपरा निभाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से भगवान बीमार हो जाते हैं, अगले 15 दिनों तक काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाती है। इस परंपरा से मुख्य संदेश यह दिया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। निरोगी काया से बढ़कर दुनिया में कुछ नहीं है। यह राेचक जानकारी दे रहे हैं श्रवण शर्मा।
प्राचीन कुएं से 108 कलशों में जल भरकर कराएंगे स्नान
पुरानी बस्ती के टुरी हटरी इलाके में स्थित 400 साल से अधिक प्राचीन जगन्नाथ मंदिर में हर साल हिंदू पंचांग के ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान को स्नान कराने की परंपरा का पालन किया जा रहा है। ऐतिहासिक दूधाधारी मठ के अधीन संचालित जगन्नाथ मंदिर के पुजारी पं. तिलकदास बताते हैं कि मठ के महंत राजेश्री रामसुंदरदास के मार्गदर्शन में प्राचीन कुएं के जल से प्रतिमाओं को स्नान कराया जाएगा। गर्भगृह से प्रतिमाओं को बाहर निकालकर कुएं की समीप रखा जाता है।
महंतजी विधिविधान से मंत्रोच्चार के साथ पहले भगवान जगन्नाथ, फिर बहन सुभद्रा और भैया बलभद्र की प्रतिमाओं को स्नान कराते हैं। कलशों में गंगा, यमुना और अन्य नदियों का जल, गुलाब की पत्तियां, चंदन, सुगंधित द्रव्य का मिश्रण किया जाता है। भगवान को स्नान कराने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगता है। 108 कलशों से स्नान कराने के पश्चात पुन: प्रतिमाओं को गर्भगृह में विराजित कर श्रृंगार करके पूजन किया जाता है। आरती के पश्चात गर्भगृह के पट 15 दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
मंदिर के बाहर मत्था टेककर लेते हैं काढ़ा का प्रसाद
गर्भगृह के पट बंद रहने के दौरान श्रद्धालु भगवान के दर्शन नहीं कर सकते। भगवान का हालचाल जानने के लिए श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं और गर्भगृह के बाहर ही मत्था टेकते हैं। भगवान के स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हुए पुजारी औषधियुक्त काढ़ा का भोग अर्पित करते हैं। यह भोग पंचमी, नवमीं, एकादशी, अमावस्या तिथि पर लगाया जाता है। काढ़ा का प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो श्रद्धालु भगवान की अस्वस्थता के दौरान मंदिर बंद होने पर भी मत्था टेकने आते हैं और काढ़ा का प्रसाद ग्रहण करते हैं, उन पर भगवान जगन्नाथ की कृपा होती है और वे वर्षभर तक स्वस्थ रहते हैं।
इन औषधियों से बनेगा काढ़ा
भगवान को स्वस्थ करने के लिए पिलाए जाने वाले औषधियुक्त काढ़ा में स्वर्ण भस्म, केसर, इलायची, अदरक, आमी हल्दी, सौंठ, कालीमिर्च, जायफल, अजवाइन, करायत समेत अन्य औषधियों का उपयोग किया जाएगा। सभी औषधियों का चूर्ण बनाकर गंगाजल में उबालकर काढ़ा तैयार किया जाएगा।
इन मंदिरों में कराएंगे भगवान जगन्नाथ को स्नान
पुरानी बस्ती के टुरी हटरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के अलावा, 150 साल से अधिक पुराने सदरबाजार स्थित जगन्नाथ मंदिर और गायत्री नगर के प्रसिद्ध ओडिसा शैली में बने मंदिर में भी 108 कलशों से स्नान कराया जाएगा। इन तीन प्रमुख मंदिरों के अलावा अश्विनी नगर, कोटा, गुढ़ियारी, आमापारा, आकाशवाणी कालोनी, पुराना मंत्रालय के समीप स्थित मंदिरों में भी स्नान परंपरा निभाई जाएगी।
छह जुलाई को निभाई जाएगी नैनोत्सव की परंपरा
अस्वस्थता अवधि में काढ़ा पिलाने के 15वें दिन बाद भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होंगे। इस साल 6 जुलाई को सभी जगन्नाथ मंदिरों में नैनोत्सव की परंपरा निभाई जाएगी। सोने अथवा चांदी की सलाई से भगवान के नेत्र पर शुद्ध काजल लगाकर नेत्र खोलने की रस्म निभाई जाएगी।भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भैया बलभद्र के साथ स्वस्थ हो जाएंगे। शाम को महाआरती करके प्रसाद वितरण किया जाएगा।
सात को प्रजा से मिलने के लिए करेंगे नगर भ्रमण
नैनोत्सव पर भगवान पूरी तरह से स्वस्थ होने के बाद अगले दिन अपनी प्रजा को दर्शन देने रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करने निकलेंगे। इस साल 7 जुलाई को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाएगी। इस साल टुरी हटरी के मंदिर में नए रथ का निर्माण किया गया है। इस रथ को चलाने के लिए स्टेयरिंग और रथ को रोकने के लिए ब्रेक भी लगाया गया है। गायत्री नगर में तीन अलग-अलग रथ का निर्माण किया गया है। अलग-अलग रथ पर भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भैया बलभद्र को विराजित कर नगर भ्रमण कराया जाएगा।
देवशयनी पर मूल मंदिर में विराजित होंगे
रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के पश्चात भगवान अपनी मौसी के घर, जिसे गुंडिचा मंदिर कहते हैं, वहां निवास करेंगे। अलग-अलग इलाकों में मंदिर से कुछ दूरी पर भगवान विराजित होंगे। मंदिर से बाहर 10 दिनों तक पूजा-अर्चना की जाएगी। 10वें दिन देवशयनी एकादशी पर बहुड़ा यात्रा निकाली जाएगी। अर्थात, भगवान अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर से वापस अपने मूल मंदिर लौटकर विराजित होंगे। इस साल 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी पर बहुड़ा यात्रा निकाली जाएगी।