पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को यम पूजा करके यमुना स्नान करने से मानव को यमलोक की नारकीय यातनाएं नहीं भोगना पड़ती है और उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है। तिथि की घट-बढ़ के कारण इस बार भाई-दूज दो दिन यानी 2 और 3 नवंबर को मनाई जा रही है।
By Nai Dunia News Network
Edited By: Nai Dunia News Network
Publish Date: Fri, 25 Oct 2019 04:45:07 PM (IST)
Updated Date: Sat, 02 Nov 2024 07:39:47 AM (IST)
मल्टीमीडिया डेस्क। दीपोत्सव पर्व सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला पर्व है। दिपावली का प्रारंभ धनतेरस से होता है और भाईदूज के दिन इसका समापन होता है। भाईदूज का पर्व भाई-बहन के स्नेह को समर्पित है। इस दिन बहन भाई के मस्तक पर तिलक लगाती है और भाई उसको स्नेहभरी भेंट देता है।
भाईदूज की पौराणिक मान्यता
शास्त्रोक्त मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को बहन यमुना ने अपने भाई यमदेव को घर पर आमंत्रित किया था और सत्कारपूर्वक भोजन करवाया था। इस आयोजन से नारकीय जीवन जी रहे जीवों को यातना से छुटकारा मिला था और वे तृप्त हो गए थे।
पाप मुक्त होने के साथ ही वह सभी सांसारिक बंधनों से भी मुक्त हो गए थे| उन सभी जीवों ने मिलकर एक महोत्सव का आयोजन किया, जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इस कारण यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध हुई।
भाईदूज को बहन यमुना ने भाई यम को अपने घर पर भोजन करवाया था। इसलिए मान्यता है कि इस दिन यदि भाई अपनी बहन के हाथों से बना भोजन ग्रहण करे तो उसको स्वादिष्ट और उत्तम भोजन के साथ धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
भाई दूज तिलक विधि
भाईदूज के विधि-विधान के अनुसार सबसे पहले एक पाट बिछाकर उसके ऊपर चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृति बनाएं। आकृतियों के बीचोबीच सिंदूर लगा दें। पाट के आग स्वच्छ जल से भरा हुआ कलश , 6 कुम्हरे के फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलाइची, हर्रे, जायफल इत्यादि रखें।
कुम्हरे के फूल के स्थान पर गेंदे का फूल प्रयोग में लाया जा सकता है। बहन भाई को आदरपूर्वक पाट पर बिठाती है। भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगाती है।
उसके बाद भाई के हाथ में शहद, गाय का घी और चंदन लगाती है। भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हरे या गेंदे का फूल, जायफल इत्यादि देकर कहती है – “यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को; जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु।”
यह कहकर अंजलि में सारी सामग्री डाल देती है। इस तरह इसका तीन बार उच्चारण करती है, अब भाई के जल से हाथ-पैर धो देती है और कपड़े से पोंछ देती है। बहन भाई का तिलक करती है। भुना हुआ मखाना खिलाती है। भाई बहन को उपहार देता है। अब बहन घर आए भाई को भोजन करवाती है।