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अपरा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और जगत के पालनहार प्रभु विष्णु के सामने व्रत का संकल्प लें। घर में पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें और वेदी पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
By Sandeep Chourey
Publish Date: Thu, 23 May 2024 12:15:00 PM (IST)
Updated Date: Thu, 23 May 2024 12:15:00 PM (IST)

HighLights
- अपरा एकादशी तिथि का आरंभ 02 जून को सुबह 5:05 बजे होगा।
- इस तिथि का समापन 03 जून को सुबह 2:41 बजे होगा।
- 2 जून को ही अपरा एकादशी व्रत रखना उचित होगा।
धर्म डेस्क, इंदौर। अपरा एकादशी व्रत हिंदुओं के लिए एक प्रमुख व्रत है, जो ‘ज्येष्ठ’ में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। अपरा एकादशी आमतौर पर मई माह के अंत में या जून माह के शुरुआत में मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता है कि अपरा एकादशी व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। देश में कुछ हिस्सों में ‘अपरा एकादशी’ को ‘अचला एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, अपरा एकादशी पर पूजा के दौरान भगवान विष्णु के त्रिविक्रम रूप की आराधना करना चाहिए।
जानें कब है अपरा एकादशी व्रत
हिंदू पंचांग के मुताबिक, अपरा एकादशी तिथि का आरंभ 02 जून को सुबह 5:05 बजे होगा और इस तिथि का समापन 03 जून को सुबह 2:41 बजे होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 2 जून को ही अपरा एकादशी व्रत रखना उचित होगा। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, अपरा एकादशी व्रत के पारण का समय 03 जून को सुबह 8:06 बजे से सुबह 8:24 बजे तक किया जा सकता है।
ऐसे करें भगवान विष्णु की पूजा
अपरा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और जगत के पालनहार प्रभु विष्णु के सामने व्रत का संकल्प लें। घर में पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें और वेदी पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा का पंचामृत से स्नान कराएं और पीले फूलों की माला अर्पित करें। पूजा के दौरान पीले फूल, हल्दी, गोपी चंदन अर्पित करें और पंचामृत का भोग लगाएं। भोग में तुलसी की पत्तियां डालना न भूलें। इसके भोग पूरा नहीं माना जाता है। अपरा एकादशी के दिन जरूरतमंदों और गरीबों को दान भी देना चाहिए।
इस मंत्र का करें पाठ
दन्ताभये चक्र दरो दधानं
कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया
लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
डिसक्लेमर
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