रिपोर्ट्स के अनुसार, जीएफजेड जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंस के रिसर्चर्स ने इस घटना से दो अलग-अलग भूकंपीय संकेतों की पहचान की। पहला सिग्नल एक हाई-एनर्जी सिग्नल था, जो सुनामी पैदा करने वाली प्रारंभिक चट्टान के खिसकने के कारण पैदा हुआ। इसके बाद एक लंबी लहर चली जो एक हफ्ते से ज्यादा वक्त तक बनी रही थी।
लंबी लहर के सिग्नल 5 हजार किलोमीटर दूर तक मिले। डिक्सन फजॉर्ड के तटों पर तो कई दिनों तक लहरें देखी गईं। खास बात यह है कि इस महासुनामी के बारे में वैज्ञानिकों से पहले आम लोगों को पता चल गया था। सोशल मीडिया पर लोगों ने पोस्ट शेयर किए थे।
रिसर्चर्स ने सैटेलाइट इमेजरी और सिस्मिक डेटा का इस्तेमाल करके भूस्खलन के रूट का पता लगाया। पता चला कि भूस्खलन में ग्लेशियर की बर्फ भी शामिल थी, जो चट्टान के साथ मिली और इलाके में भूस्खलन हुआ।
भूस्खलन के कारण बहुत बड़ी सुनामी आई। उसका एंट्री पॉइंट 200 मीटर से ज्यादा ऊंचा था। डिक्सन फजॉर्ड के इलाके में वह 60 मीटर ऊंची थी। हालांकि उससे जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ। रिसर्चर्स का कहना है कि ग्रीनलैंड के एक सुदूर इलाके में चट्टान के खिसकने से पैदा हुई लहर के सिग्नल दुनिया भर में मिलना और एक हफ्ते से ज्यादा समय तक बने रहना रोमांचक है।