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- SEBI Hindenburg Report Controversy; Mauritius Financial Commission | Madhabi Puri Buch
नई दिल्ली8 घंटे पहले
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सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (Sebi) की चीफ माधबी पुरी बुच (फाइल फोटो)।
मॉरीशस के फाइनेंशियल सर्विसेज कमिशन (FSC) ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों का जवाब दिया है। FSC ने स्टेटमेंट में कहा कि मॉरीशस शेल कंपनियों को बनाने की अनुमति नहीं देता है। इतना ही नहीं इसे ‘टैक्स हेवन’ के रूप में लेबल भी नहीं किया जाना चाहिए।
मॉरीशस में नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल सर्विसेज सेक्टर और ग्लोबल बिजनेस के लिए बनाए गए रेगुलेटर के रूप में FSC ने अपने लेजिसलेटिव फ्रेमवर्क की मजबूती पर भी जोर दिया। FSC ने कहा, ‘मॉरीशस में ग्लोबल बिजनेस कंपनियों के लिए एक मजबूत फ्रेमवर्क है।’
मॉरीशस इंटरनेशनल बेस्ट प्रैक्टिसेज का पालन करता है
FSC से लाइसेंस प्राप्त सभी ग्लोबल बिजनेस कंपनियों को फाइनेंशियल सर्विसेज एक्ट की सभी रिक्वायरमेंट्स को पूरा करना आवश्यक है। इस कंप्लायंस की FSC द्वारा बारीकी से निगरानी की जाती है, जो सुनिश्चित करता है कि मॉरीशस इंटरनेशनल बेस्ट प्रैक्टिसेज का पालन करता है।
FSC ने बयान में यह भी बताया कि मॉरीशस को इकोनॉमिक कॉरपोरेशन एंड डेवलपमेंट यानी OECD के निर्धारित स्टैंडर्ड्स के तहत दर्जा दिया गया है।
IPE प्लस फंड और IPE प्लस फंड-1, मॉरीशस में बेस्ड नहीं
हिंडेनबर्ग रिपोर्ट में किए गए दावों पर FSC ने कहा कि ‘IPE प्लस फंड और IPE प्लस फंड-1, जिनके नाम अमेरिकी शॉर्ट सेलर ने अपनी रिपोर्ट में दिए हैं। यह दोनों फंड FSC के लाइसेंसधारी नहीं है और मॉरीशस में बेस्ड भी नहीं है।
हिंडनबर्ग बोला- SEBI चीफ ने सफाई में आरोप स्वीकारे
2 दिन पहले अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग ने कहा था कि हमारी रिपोर्ट पर SEBI चेयरपर्सन माधबी बुच ने प्रतिक्रिया देते हुए कई चीजें स्वीकार की हैं, जिससे कई नए सवाल खड़े हो गए हैं।
हिंडनबर्ग ने कहा था- बुच के जवाब से ये पुष्टि होती है कि उनका निवेश बरमुडा/मॉरिशस के फंड में था। ये वही फंड है जिसका इस्तेमाल गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी करते थे। आरोप है कि विनोद अडाणी इन फंड्स के जरिए अपने ग्रुप के शेयरों की कीमत बढ़ाते थे।
हिंडनबर्ग रिसर्च ने ये भी कहा था कि मार्केट रेगुलेटर SEBI को अडाणी मामले से संबंधित इन्हीं ऑफशोर फंडों की जांच करने का काम सौंपा गया था, जिसमें माधबी पुरी बुच की ओर से निवेश किया गया था। यह स्पष्ट रूप से हितों के टकराव का एक बड़ा मामला है।
हिंडनबर्ग ने शनिवार को पब्लिश अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की अडाणी ग्रुप से जुड़ी ऑफशोर कंपनी में हिस्सेदारी है।
पार्ट 1: 10 अगस्त को हिंडनबर्ग ने रिपोर्ट जारी कर सेबी चेयरपर्सन पर आरोप लगाए
- एक फंड है ग्लोबल डायनमिक अपॉर्चुनिटी फंड (GDOF) जिसे गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी ऑपरेट करते हैं और इस फंड की मदद से वो अडाणी ग्रुप के शेयरों के दाम बढ़ाते थे। GDOF अपना पैसा एक और फंड IPE प्लस फंड 1 में डालता था।
- IPE प्लस फंड 1 भी अडाणी के स्टॉक्स में ट्रेड करता था। आरोप है कि सेबी चीफ माधबी और उनके पति धवल ने इन दोनों फंड में इन्वेस्टमेंट किया है। हिंडनबर्ग ने कहा सेबी ने इन फंड्स की जांच अच्छे से नहीं की क्योंकि इसमें माधबी का निवेश था।
- IPE प्लस फंड’ मॉरीशस बेस्ड है, जिसे अडाणी डायरेक्टर ने इंडिया इंफोलाइन (IIFL) के जरिए स्थापित किया है। अब IIFL का नाम 360 वन हो गया है। IIFL वही कंपनी है जिस पर वायरकार्ड फ्रॉड के समय भी आरोप लगे थे। वायरकार्ड एक जर्मन कंपनी है।
- बुच 16 मार्च 2022 तक एगोरा पार्टनर्स सिंगापुर की 100% शेयरधारक बनी रहीं और सेबी के मेंबर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वह इसकी मालिक रहीं। सेबी चेयरपर्सन के रूप में नियुक्ति के 2 हफ्ते बाद उन्होंने अपने शेयर अपने पति के नाम ट्रांसफर किए।
- अप्रैल 2019 में भारत में लॉन्च हुए सबसे पहले REIT ‘एम्बेसी’ को ब्लैकस्टोन ने स्पॉन्सर किया था। ब्लैकस्टोन को धवल बुच ने इस सेक्टर में बिना किसी एक्सपीरियंस के 3 महीने बाद सीनियर एडवाइजर के तौर पर जॉइन किया। तब माधबी बुच सेबी मेंबर थीं।
- ब्लैकस्टोन के सलाहकार के रूप में धवल के कार्यकाल के दौरान, सेबी ने REIT के रेगुलेशन में बड़े बदलाव किए। ब्लैकस्टोन दुनिया की बड़ी रियल एस्टेट कंपनी है। सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या माधबी ने उस कंपनी को मदद पहुंचाई जिसमें उनके पति सलाहकार थे।
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अडाणी समूह को लेकर जनवरी 2023 में किए गए खुलासों के बावजूद SEBI ने अडाणी ग्रुप के खिलाफ कोई पब्लिक एक्शन नहीं लिया।
पार्ट 2: हिंडनबर्ग के आरोपों के बाद सेबी चीफ और उनके पति ने सफाई पेश की
- धवल 2010 से 2019 के बीच यूनिलीवर में काम करते हुए लंदन और सिंगापुर में रहे। माधबी 2011 से 2017 के बीच सिंगापुर में एक प्राइवेट इक्विटी फंड, फिर स्वतंत्र कंसल्टेंट रहीं। हिंडनबर्ग ने जिस निवेश की बात की है, वह दंपती ने 2015 में किया था।
- 2017 में माधबी SEBI में आईं। यह निवेश धवल ने बचपन के दोस्त अनिल आहूजा की सलाह पर किया, जो उसके CIO थे। 2018 में आहूजा ने यह फंड छोड़ दिया। तब तक इस फंड ने अडाणी समूह की किसी कंपनी के बॉन्ड, इक्विटी में निवेश नहीं किया था।
- धवल 2019 में ब्लैकस्टोन से जुड़े। वे फंड की रियल एस्टेट विंग में नहीं थे। तब तक माधबी SEBI की चेयरमैन नहीं बनी थीं। धवल ने जब सिंगापुर स्थित फंड की संयुक्त हिस्सेदारी को अपने नाम किया, तो जानकारी SEBI के साथ सरकार को दी थी।
पार्ट 3: सेबी चेयरपर्सन के जवाब के बाद हिंडनबर्ग के नए सवाल
- बुच के अनुसार वे दोनों कंल्सटिंग कंपनियों (एक भारतीय यूनिट और एक सिंगापुरी युनिट) से 2017 में SEBI में नियुक्त होते ही हट गई थीं, लेकिन मार्च 2024 की शेयरहोल्डिंग बताती है कि अगोरा एडवाइजरी (इंडिया) में माधबी की 99% हिस्सेदारी है।
- बुच 16 मार्च 2022 तक अगोरा पार्टनर्स सिंगापुर की 100% शेयरधारक बनी रहीं और सेबी के मेंबर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वह इसकी मालिक रहीं। सेबी चेयरपर्सन के रूप में नियुक्ति के 2 हफ्ते बाद उन्होंने अपने शेयर अपने पति के नाम ट्रांसफर किए।
- बुच ने जिस सिंगापुर की कंसल्टिंग यूनिट की स्थापना की थी, वह सार्वजनिक रूप से रेवेन्यू या प्रॉफिट जैसी अपनी वित्तीय रिपोर्ट नहीं देती है, इसलिए यह देखना असंभव है कि सेबी में उनके कार्यकाल के दौरान इस यूनिट ने कितना पैसा कमाया है।
- फाइनेंशियल स्टेटमेंट के अनुसार माधबी की 99% हिस्सेदारी वाली अगोरा एडवाइजरी इंडिया ने वित्त वर्ष (2022, 2023, और 2024) के दौरान 2.39 करोड़ रुपए का रेवेन्यू जनरेट किया। ये रेवेन्यू माधबी के चेयरपर्सन रहते जनरेट किया गया है।
- बुच ने सेबी के मेंबर के रूप में सर्विस करते समय अपने पति के नाम का उपयोग करके बिजनेस करने के लिए अपने पर्सनल ईमेल का उपयोग किया था। सवाल उठता है कि SEBI चेयरपर्सन ने पद पर रहते हुए अपने पति के नाम से कौन से निवेश और बिजनेस किए?
जिस फंड का जिक्र उसमें SEBI चेयरपर्सन ने 2015 में निवेश किया था
माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने रविवार (11 अगस्त) को बयान जारी कर हिंडनबर्ग के आरोपों का खंडन किया था। SEBI चेयरपर्सन ने कहा – जिस फंड का जिक्र किया गया है उसे उन्होंने 2015 में लिया था। तब उनका SEBI से कोई संबंध नहीं था।
उन्होंने हिंडनबर्ग पर आरोप लगाया कि भारत में अलग-अलग मामलों में हिंडनबर्ग को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नोटिस का जवाब देने के बजाय उन्होंने SEBI की विश्वसनीयता पर हमला करने और SEBI चीफ के चरित्र हनन करने का विकल्प चुना है।
अडाणी समूह ने कहा- हिंडनबर्ग ने जिनके नाम लिए, उनसे कारोबारी रिश्ते नहीं
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर अडाणी समूह ने कहा है, SEBI प्रमुख से ग्रुप के कारोबारी रिश्ते नहीं हैं। SEBI प्रमुख के साथ जिन लोगों के नाम लिए गए हैं, उनसे भी समूह का लेनदेन नहीं है। विदेशी होल्डिंग पर उठाए गए सवाल बेबुनियाद हैं। समूह की विदेशी होल्डिंग का स्ट्रक्चर पूरी तरह पारदर्शी है। इसका इस्तेमाल धन के हेरफेर के लिए नहीं किया गया।
ग्रुप ने कहा- हिंडनबर्ग ने अपने फायदे के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी का गलत इस्तेमाल किया। अडाणी ग्रुप पर लगाए आरोप पहले ही निराधार साबित हो चुके हैं। गहन जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2024 में हिंडनबर्ग के आरोपों को खारिज कर दिया था।
अडाणी ग्रुप पर लगाए थे मनी लॉन्ड्रिंग, शेयर मैनिपुलेशन जैसे आरोप
24 जनवरी 2023 को हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी ग्रुप को लेकर एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। रिपोर्ट के बाद ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली थी। हालांकि, बाद में इसमें रिकवरी आई। इस रिपोर्ट को लेकर भारतीय शेयर बाजार रेगुलेटर सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने हिंडनबर्ग को 46 पेज का कारण बताओ नोटिस भी भेजा था।
1 जुलाई 2024 को पब्लिश किए अपने एक ब्लॉग पोस्ट में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा कि नोटिस में बताया गया है कि उसने नियमों उल्लंघन किया है। कंपनी ने कहा, SEBI ने आरोप लगाया है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में पाठकों को गुमराह करने के लिए कुछ गलत बयान शामिल हैं। इसका जवाब देते हुए हिंडनबर्ग ने SEBI पर ही कई तरह के आरोप लगाए थे।
रिपोर्ट के बाद अडाणी एंटरप्राइजेज का शेयर 59% गिरा था
24 जनवरी 2023 (भारतीय समय के अनुसार 25 जनवरी) को अडाणी एंटरप्राइजेज के शेयर का प्राइस 3442 रुपए था। 25 जनवरी को ये 1.54% गिरकर 3388 रुपए पर बंद हुआ था। 27 जनवरी को शेयर के भाव 18% गिरकर 2761 रुपए पर आ गए थे। 22 फरवरी तक ये 59% गिरकर 1404 रुपए तक पहुंच गए थे। हालांकि, बाद में शेयर में रिकवरी देखने को मिली।
शॉर्ट सेलिंग यानी, पहले शेयरों को बेचना और बाद में खरीदना
शॉर्ट सेलिंग का मतलब उन शेयरों को बेचने से है जो ट्रेड के समय ट्रेडर के पास होते ही नहीं हैं। इन शेयरों को बाद में खरीद कर पोजीशन को स्क्वायर ऑफ किया जाता है। शॉर्ट सेलिंग से पहले शेयरों को उधार लेने या उधार लेने की व्यवस्था जरूरी होती है।
आसान भाषा में कहे तो जिस तरह आप पहले शेयर खरीदते हैं और फिर उसे बेचते हैं, उसी तरह शॉर्ट सेलिंग में पहले शेयर बेचे जाते हैं और फिर उन्हें खरीदा जाता है। इस तरह बीच का जो भी अंतर आता है, वही आपका प्रॉफिट या लॉस होता है।