रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने क्लाउड ब्राइटनिंग (cloud brightening) तकनीक का इस्तेमाल किया। इस तकनीक में बादलों को ब्राइट यानी उज्ज्वल बनाया जाता है ताकि वो धूप के छोटे से हिस्से को रिफ्लेक्ट कर पाएं और उस इलाके के तापमान में कमी आए। प्रयोग सफल होता है तो भविष्य में समुद्र के बढ़ते तापमान को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
ऐसे किया गया प्रयोग
रिपोर्ट के अनुसार, 2 अप्रैल को वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने सैन फ्रांसिस्को में एक रिटायर्ड एयरक्राफ्ट करियर पर बर्फ-मशीन जैसी डिवाइस को इस्तेमाल किया। उसकी मदद से आसमान में तेज स्पीड के साथ नमक के कणों की धुंध (mist) छोड़ी गई।
यह प्रयोग CAARE नाम के एक सीक्रेट प्रोजेक्ट का हिस्सा था। एक्सपेरिमेंट का मकसद बादलों को ब्राइट बनाकर मिरर की तरह इस्तेमाल करना था, ताकि धरती पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी वापस स्पेस में रिफ्लेक्ट हो जाए।
हालांकि सबसे बड़ा सवाल है कि क्या यह ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने में कारगर है। कुछ का दावा है कि यह प्रोसेस C02 के बढ़ने से होने वाली ग्लोबल वार्मिंग को बैलेंस कर सकती है। कई वैज्ञानिक मानते हैं कि इसके रिजल्ट्स की अभी से भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा। अमेरिकी साइंटिस्टों ने जो किया वह सिर्फ एक प्रयोग है, लेकिन भविष्य के लिए नई संभावनाएं खोलता है।