सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मेडिकल प्रवेश में दिव्यांगों के अधिकारों का विस्तार


सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मेडिकल प्रवेश में दिव्यांगों के अधिकारों का विस्तार

स्रोत: HT 

सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त दिव्यांगता मानदंडों के आधार पर व्यक्तियों को शिक्षा के अवसरों से वंचित करने के खिलाफ फैसला सुनाया है। इसने दिव्यांगता मूल्यांकन बोर्डों को यह मूल्यांकन करने का निर्देश दिया कि क्या किसी व्यक्ति की दिव्यांगता वास्तव में उसे सफलतापूर्वक पाठ्यक्रम पूरा करने से रोकती है।

  • यह निर्णय वर्ष 1997 के ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन को दी गई चुनौतियों के बीच आया है, जिसके तहत पहले 40% या उससे अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को MBBS पाठ्यक्रमों से बाहर रखा गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि 40% या उससे अधिक की मानक दिव्यांगता (या दिव्यांगता के आधार पर अन्य निर्धारित प्रतिशत) होने मात्र से किसी अभ्यर्थी को आवेदित पाठ्यक्रम के लिये पात्र होने से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।
    • यह व्यक्तिगत मूल्यांकन के महत्व पर बल देता है तथा दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अंतर्गत समावेशी नीतियों की वकालत करता है।
      • वर्ष 2016 RPwD अधिनियम दिव्यांगता अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों का समर्थन करता है, जिसका उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के पूर्ण अधिकारों और स्वतंत्रता को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना है।

  • दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (DEPwD) दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिनियम के कार्यान्वयन की देखरेख करता है। दिव्यांगता मूल्यांकन बोर्ड (DAB ) एक नामित पैनल है जो व्यक्तियों में दिव्यांगता की सीमा का मूल्यांकन और प्रमाणन करने के लिये स्थापित किया गया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के अनुसार, DAB को यह सकारात्मक रूप से दर्ज करना चाहिये कि क्या अभ्यर्थी की दिव्यांगता, उसके संबंधित पाठ्यक्रम में आगे बढ़ने के मार्ग में बाधा बनेगी या नहीं, तथा यदि ऐसा प्रतीत होता है तो उसे कारण भी बताना चाहिये।

और पढ़ें: भारत में दिव्यांगजन, मेडिकल कॉलेज की सीटें और नए नियम   





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