Paytm Payments Bank (PPBL) की क्राइसिस RBI के लिए एक बड़ी चुनौती रही। फिनटेक कंपनियों के रेगुलेशन के लिहाज से आरबीई को पहली बार सख्त फैसले लेने पड़े। फिनटेक के लिए नियम और कानून बनाने के लिहाज से आरबीआई दुनिया के दूसरे केंद्रीय बैंकों के मुकाबले पीछे रहा है। आरबीआई ने तेजी से बढ़ते फिनटेक सेक्टर के लिए जनवरी 2022 में एक अलग डिपार्टमेंट बनाया। तब से केंद्रीय बैंक ने इस सेक्टर के लिए कई पहल की है। उसने इस सेक्टर में इनोवेशन और कॉम्पिटिशन को बढ़ावा देने के लिए कई डिवीजंस बनाए हैं। पेमेंट्स बैंक भी इंडियन बैंकिंग सेक्टर के लिए पुराने नहीं हैं। RBI ने पेमेंट्स बैंक की कैटेगरी नवंबर 2014 में बनाई थी। इससे फिनटेक कंपनियों, मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर्स और रिटेल चेंस को बैंकिंग में उतरने के मौके दिखे।
2014 के बजट में छोटे बैंकों को लाइसेंस देने का ऐलान
छोटी वित्तीय संस्थाओं को इंडियन फाइनेंशियल सिस्टम में ऑपरेट करने का मौका देने के मकसद से पेमेंट्स बैंक की शुरुआत हुई। रैंकिंग के लिहाज से पेमेंट्स बैंक स्मॉल फाइनेंस बैंक (SFB) से नीचे आते हैं। 2014 में यूनियन बजट में छोटे बैंकों को लाइसेंस देने का ऐलान हुआ। उसके बाद आरबीआई ने पेमेंट्स बैंकों के लिए फ्रेमवर्क पेश किया। यह माना गया कि ये छोटे बिजनेसेज, असंगठित सेक्टर, कम इनकम वाले परिवार, किसान और प्रवासी मजदूरों की जरूरतें पूरी करेंगे। इससे पहले 2009 में रघुराम राजन की अगुवाई वाली फाइनेंशियल सेक्टर रिफॉर्म्स कमेटी ने छोटे बैंकों को लाइसेंस देने की सिफारिश की थी।
पेमेंट्स बैंकों के लिए यह सेवाएं तय की गईं
पेमेंट्स बैंक को खास बैंकिंग सेवाएं देने की इजाजत है। इनमें डिपॉजिट लेना, एटीएम या डेबिट कार्ड जारी करना, पेमेंट और रेमिटेंस सर्विसेज देना, दूसरे बैंकों के लिए बिजनेस कॉरेसपॉन्डेंट्स का काम करना, म्यूचुअल फंड्स और इंश्योरेंस पॉलिसीज जैसे प्रोडक्ट्स ग्राहकों को ऑफर करना शामिल है। पेटीएम ने अपना प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट (PPI) लाइसेंस सरेंडर कर पेमेंट्स बैंक का लाइसेंस हासिल किया।
2017 में PPBL ने शुरू किया ऑपरेशंस
PPBL ने 23 मई, 2017 को ऑपरेशन शुरू किया। यह उन 11 आवेदकों में से एक था, जिन्हें पेमेंट्स बैंक शुरू करने का इन-प्रिंसिपल एप्रूवल मिला था। पीपीबीएल को जनवरी 2027 में आरबीआई से बैंकिंग लाइसेंस मिला था। वॉलेट, सेविंग अकाउंट, प्रीपेड इंस्ट्रूमेंट्स और नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड इसके ऑपरेशन में शामिल थे। जल्द पेटीएम पेमेंट्स बैंक के कामकाज को लेकर रेगुलेटर के लेवल पर चिंताए दिखनी शुरू हो गईं।
पेटीएम के मैजमेंट ने RBI की चेतावनी की अनदेखी की
पीपीबीएल पर लाइसेंस की शर्तों के उल्लंघन का आरोप लगा। इनमें दिन के अंत में बैंलेंस रिक्वायरमेंट से जुड़ा नॉन-कंप्लायंस शामिल था। उसने खुद से जुड़ी दूसरी कंपनियों के साथ दूरी रखने की शर्त का उल्ल्घंन किया। KYC के मामले में नियमें के उल्लंघन के गंभीर मामले सामने आए। PPBL इन सभी मसलों को ठीक करने में नाकाम रहा। उसके बाद आरबीआई को कड़े फैसले लेने को मजबूर होना पड़ा।
बहुत देर से खुली पेटीएम की नींद
RBI के 31 जनवरी के फैसले के बाद पीपीबीएल ने चीजों को ठीक करने की कोशिश शुरू की। इनमें फाउंडर विजय शेखर शर्मा के इस्तीफे के बाद बोर्ड का पुनर्गठन शामिल है। इनमें सेबी के पूर्व चेयरमैन एम दामोदरन की अध्यक्षता वाले एडवायजरी पैनल का गठन शामिल है। लेकिन, पीपीबीएल ने ये कदम बहुत देर से उठाए। कंप्लायंस से जुड़े गंभीर मसलों को देखते हुए इन्हें नाकाफी कहा जा सकता है। ऐसा लगता है कि पीपीबीएल मैनेजमेंट और उसका बोर्ड आरबीआई की चेतावनी की गंभीरता को समझने में नाकाम रहा।
पेटीएम पेमेंट्स बैंक के लिए खुद को बचाना मुश्किल
पीपीबीएल का कंट्रोल अपने हाथ में लेने के लिए किसी बैंक का तैयार होना आसान नहीं है। इसकी बड़ी वजह केवायसी से जुड़े गंभीर मसले हैं। ऐसे में पेटीएम के फाउंडर विजय शेखर शर्मा की बैंकिंग सेवाओं की हसरत का संभवत: अंत हो सकता है। पीपीबीएल का पूरा मामला फिनटेक कंपनियों के रेगुलेशन के महत्व को उजागर करता है।
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