पार्किंसंस बीमारी मस्तिष्क के फंक्शन को प्रभावित कर देती है। इससे रोजमर्रा के क्रिया कलापों को निपटाना कठिन हो जाता है। वर्ल्ड पार्किंसंस डिजीज डे पर एक्सपर्ट से जानें डेली लाइफ में पार्किंसंस को मैनेज करने के 4 टिप्स।
उम्र बढ़ने के साथ शरीर के साथ-साथ मस्तिष्क में भी बीमारियां होने का जोखिम बढ़ जाता है। उनमें से एक है पार्किंसंस रोग। इस रोग के विकसित होने का जोखिम स्वाभाविक रूप से उम्र के साथ बढ़ता है। जानकारी के अभाव में यह लोगों को अधिक प्रभावित करता है। इस रोग के प्रति जागरूकता जरूरी है। अप्रैल का महीना पार्किंसंस डिजीज अवेयरनेस मंथ के रूप में जाना जाता है।पार्किंसंस के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 11 अप्रैल को वर्ल्ड पार्किंसंस डिजीज डे ((World Parkinson’s disease Day) मनाया जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि कुछ उपाय अपनाकर इसके मरीज डे टू डे लाइफ को मैनेज कर सकते हैं।
कब हो सकता है पार्किंसंस रोग (Parkinson’s disease)
रोग की शुरुआत की औसत आयु 60 वर्ष है। यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में थोड़ा अधिक आम है। पार्किंसंस रोग आमतौर पर उम्र से संबंधित होता है। यह 20 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों में भी हो सकता है। हालांकि यह बेहद दुर्लभ है। अक्सर जिन लोगों के माता-पिता को यह रोग होता है, तो बच्चे को भी यह हो सकता है।
कैसे मस्तिष्क को करता है प्रभावित (Parkinson’s affect brain)
पार्किंसंस रोग उम्र से संबंधित ब्रेन डीजेनरेशन का मामला है। यह मस्तिष्क के कुछ हिस्सों को ख़राब कर देता है। यह स्लो मूवमेंट, कंपकंपी, संतुलन संबंधी समस्याएं पैदा करने के लिए जाना जाता है। ज्यादातर मामले अज्ञात कारणों से होते हैं। कुछ के लिए जीन जिम्मेदार होते हैं। इसे पूर्ण रूप से ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन उपचार के कई अलग-अलग विकल्प हैं।
वर्ल्ड पार्किंसंस डिजीज डे (World Parkinson’s disease Day)
वर्ल्ड पार्किंसंस डिजीज डे प्रतिवर्ष 11 अप्रैल को डॉ. जेम्स पार्किंसन के जन्मदिन के दिन मनाया जाता है। उन्होंने पार्किंसंस को एक चिकित्सीय स्थिति के रूप में पहचाना। 1817 में उन्होंने अपने एक लेख ‘एन एसे ऑन द शेकिंग पाल्सी’ में पार्किंसंस के बारे में बताया। अप्रैल माह को पार्किंसंस जागरूकता माह (Parkinson’s disease Awareness Month) के रूप में भी मनाया जाता है।
डेली लाइफ में रोग को मैनेज करने के 4 टिप्स (tips to manage Parkinson’s in daily life)
1 लेवोडोपा और डोपामाइन एगोनिस्ट दवाएं (levodopa and dopamine agonists medicine)
बंगलुरू के सुकिनो हेल्थकेयर सॉल्यूशंस के थेरेपी प्रमुख डॉ. कार्तिक जनार्थनन बताते हैं, ‘ दैनिक जीवन में पार्किंसंस डिजीज का प्रबंधन करना चाहिए। इसके लिए के लिए व्यापक और सक्रिय दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। सबसे अधिक जरूरी है नियमित दवा लेना। लेवोडोपा और डोपामाइन एगोनिस्ट जैसी दवाएं पार्किंसंस के लक्षण को नियंत्रित करने के लिए जरूरी हैं।
2 फिजिकल थेरेपी इंटरवेंशन (Physical therapy intervention)
इसके मरीज को नियमित व्यायाम, एरोबिक वर्कआउट से लेकर पावर ट्रेनिंग तक कराना चाहिए। इससे गतिशीलता, संतुलन और समग्र शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में जरूरी मदद मिलती है। मूवमेंट क्षमताओं को बढ़ाने के लिए दोहरी कार्य चिकित्सा (dual task therapy), बाधा प्रशिक्षण (obstacle training) है। संतुलन प्रशिक्षण (balance training) के लिए आभासी वास्तविकता (virtual reality) है। समन्वय और चाल प्रशिक्षण (coordination and gait training) जैसे फिजिकल थेरेपी इंटरवेंशन को तैयार किया गया है। इस तरह की प्रोफेशनल ट्रीटमेंट दैनिक जीवन के कामकाज को करने में सहूलियत देती है। स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है।
3 स्पीच थेरेपी (speech therapy)
किसी भी चीज को रोगी को निगलने में दिक्क्त होती है। स्पीच थेरेपी कम्युनिकेशन के साथ-साथ निगलने की कठिनाइयों को मैनेज करने में भी मदद करती है। इससे व्यक्ति के दैनिक जीवन के जरूरी कार्यों को करने में मदद मिलती है। मूवमेंट हेल्प से लेकर विशेष बर्तन और अन्य सहायक उपकरण दैनिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाते हैं।
आहार विशेषज्ञ से जरूर कंसल्ट करना चाहिए। संतुलित आहार रोगी के ओवरऑल हेल्थ को बढ़ावा देता है। इमोशनल हेल्थ में भी मदद मिलती है। इससे सामान्य स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है।
4 स्ट्रेस मैनेजमेंट (Stress management)
तनाव प्रबंधन तकनीकों को लागू करना पार्किंसंस के मरीज के लिए सबसे अधिक जरूरी है। माइंडफुलनेस और रिलैक्सेशन टेक्नीक तनाव के कारण बढ़े हुए लक्षणों को कम कर सकते हैं। इमोशनल वेलबीइंग को बढ़ा सकते हैं। रोग की प्रगति की निगरानी करने, उपचार योजनाओं को समायोजित करना चाहिए। एंग्जायटी को तुरंत मैनेज करने के लिए विशेषज्ञों के साथ नियमित चिकित्सा जांच आवश्यक है।
अंत में
हेल्थकेयर टीम, देखभाल करने वालों और सामाजिक नेटवर्क की मदद से पार्किंसंस से पीड़ित व्यक्ति रोग की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना कर सकते हैं। दवा प्रबंधन, उपचार, जीवनशैली में बदलाव और सामाजिक समर्थन से व्यक्ति अपने जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है। इससे रोग के प्रबंधन में मदद मिल सकती है।
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