मेनोपॉज एक ऐसी स्थिति है जब महिलाओं की सेहत में बहुत सारे बदलाव हो रहे होते हैं। ये बदलाव शारीरिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर हो रहा होता है। जिसका असर हृदय स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इसलिए इस दौरान आपको अपना विशेष ध्यान रखना होता है।
दशकों से, कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारियों (CVD) को पुरुषों की बीमारी माना जाता था। हालांकि, रिसर्च और क्लिनिकल अनुभवों से यह जानकारी मिली है कि अगर ज़्यादा नहीं, तो महिलाओं में भी यह बीमारी होने की पुरुषों जितनी ही आशंका होती है। जोखिम के अलग तरह के कारण, लक्षण और अन्य कारण, महिलाओं में होने वाले हृदय रोगों (Heart attack in women) को पुरुषों के हृदय रोगों से अलग करते हैं और इसे गंभीर बनाते हैं।
दिल की सेहत में लैंगिक अंतर को समझना (Difference between heart attack in women and men)
जब इस बात की चर्चा हो रही हो कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में हार्ट अटैक का खतरा ज़्यादा होता है। मगर यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण हो जाता है कि पुरुषों में कम उम्र में हार्ट अटैक का खतरा होता है। हालांकि, यह अंतर कम होता जाता है और महिलाओं के मामले में बिल्कुल उलटा हो जाता है।
रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजेन का स्तर कम हो जाता है और इस वजह से उनमें हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है। एस्ट्रोजेन ऐसा हार्मोन होता है जो हृदय की रक्षा करने के लिए जाना जाता है। महिलाओं में कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारियां पुरुषों के मुकाबले अधिक उम्र में होती हैं, लेकिन एक बार ऐसी बीमारी हो जाने पर उनके परिणाम काफी बुरे हो सकते हैं।
क्यों महिलाओं में बढ़ रहा है हार्ट अटैक का जोखिम (Causes of increasing heart attack risk in women)
1 हार्मोनल बदलाव :
रजोनिवृत्ति के बाद एस्ट्रोजेन की कमी होने से कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। एस्ट्रोजेन खून की नसों में लचीलापन बनाए रखने में मदद करती हैं, एथेरोस्केलेरॉसिस होने की आशंका कम होती है जो हार्ट अटैक के प्रमुख कारणों में से एक है।
2 गर्भावस्था से संबंधित जटिलताएं :
प्रीक्लेम्पसिया, जेस्टेशनल डायबिटीज़, और गर्भावस्था की वजह से होने वाली उच्च रक्तचाप संबंधी समस्या की वजह से महिलाओं में हृदय रोगों का लंबी अवधि का खतरा बढ़ सकता है। इन मुश्किलों की वजह से कार्डियोवैस्क्यूलर समस्याओं का शुरुआती लक्षण माना जा सकता है जो बाद में बड़ी समस्या बन सकती हैं।
3 ऑटोइम्यून बीमारियां :
लुपुस और रेमुटाइड ऑर्थराइटिस जैसी समस्याएं महिलाओं में बहुत सामान्य हैं और इनकी वजह से हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
4 मानसिक तनाव और डिप्रेशन :
मनोवैज्ञानिक कारणों का महिलाओं पर काफी बुरा असर पड़ता है। महिलाओं में तनाव से संबंधित हृदय रोगों जैसे कि स्ट्रेस कार्डियोमायोपैथी (जिसे ब्रोकेन हार्ट सिंड्रोम) होने की आशंका अधिक रहती है। इसके अलावा, डिप्रेशन महिलाओं में बहुत सामान्य है और हृदय रोगों से करीबी से जुड़ा है।
महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण (Symptoms of heart attack in women)
- गर्दन, जबड़े, पीठ के ऊपरी हिस्से या पेट में दर्द या बेचैनी
- सीने में तकलीफ के साथ या उसके बिना सांस लेने में समस्या होना
- मितली, उलटी या अपच
- बिना किसी वजह से थकान या चक्कर आना
- सर्दी जुकाम
चूंकि ये लक्षण कुछ खास नहीं हैं, ऐसे में संभावना अधिक होती है कि महिलाएं इन्हें इग्नोर कर दें या समझें कि ऐसे लक्षण किसी नॉन-कार्डिएक वजह से हो रहे हैं। इस वजह से चिकित्सकीय देखभाल में देरी होती है और परिणाम भी बुरे निकलते हैं।
बीमारी का पता लगाने और उपचार से जुड़ी चुनौतियां (Challenges of heart attack treatment in women)
महिलाओं में हृदय रोगों का पता लगाने में कई तरह की चुनौतियां आती हैं। ऐतिहासिक तौर पर, हृदय रोगों को लेकर ज़्यादातर रिसर्च और क्लिनिकल ट्रायल पुरुषों पर ही किए गए हैं। जिससे महिलाओं में हृदय रोगों के बारे में कम ही जानकारी मिल पाई है।
स्ट्रेस टेस्ट जैसे डायग्नॉस्टिक टूल के परिणाम भी महिलाओं के मामले में ज़्यादातर नकारात्मक ही होते हैं, अक्सर इनकी वजह से एंजियोग्राम जैसी गैर-ज़रूरी प्रक्रियाएं करनी पड़ती हैं। क्लासिकल एंजिना के लक्षणों के बावजूद, कई महिलाओं में कोरोनरी एंजियोग्राफी करने के बाद कोरोनरी आर्टरी बीमारी देखने को नहीं मिली।
इस स्थिति को माइक्रोवैस्क्यूलर बीमारी या सिंड्रोम एक्स के तौर पर जाना जाता है। इससे छोटी आर्टरियों में असामान्य स्थिति का पता चलता है, जिनका पारंपरिक कोरोनरी एंजियोग्राफी से पता नहीं चलता है, लेकिन लक्षण बने रहते हैं।
मेनोपॉज के बाद हार्ट हेल्थ के लिए आपको फॉलो करने चाहिए ये जरूरी टिप्स (How to take care of your heart after menopause)
1 अपनी सेहत के बारे में जानें :
ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल के स्तर और ब्लड शुगर की नियमित तौर पर निगरानी करें। डायबिटीज़ या उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं का सामना कर रही महिलाओं में हृदय रोगों का खतरा अधिक होता है और ऐसी स्थितियों को नियंत्रित करना बहुत ही ज़रूरी होता है।
2 सेहतमंद जीवनशैली अपनाएं :
फल, सब्जियों, मोटे अनाज और लीन प्रोटीन से भरपूर संतुलित खानपान से हृदय रोगों का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है। नियमित शारीरिक गतिविधि यानी हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट मध्यम एरोबिक एक्सरसाइज़ करने से कार्डियोवैस्क्यूलर सेहत को बनाए रखने में मदद मिलती है। धूम्रपान और एल्कोहॉल से बचना भी महत्वपूर्ण है।
3 तनाव से निपटें :
चूंकि मानसिक सेहत महिला के हृदय की सेहत को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, ऐसे में योग, मेडिटेशन और माइंडफुलनेस जैसी तनाव से निपटने की तकनीकों से हृदय रोगों से बचने में मदद मिल सकती है।
4 रजोनिवृत्ति के बाद डॉक्टर से बात करें :
महिलाओं को रजोनिवृत्ति के बाद अपने हृदय की सेहत का खास तौर पर खयाल रखना चाहिए। हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) को पहले अच्छा माना जाता था, लेकिन इसमें जोखिम होता है इसलिए इसे हृदय रोगों के लिए उपयोगी उपाय नहीं माना जा सकता है।
5 जानकारी रखें और अपनी तैयारी खुद करें :
जागरूकता सबसे महत्वपूर्ण हैं। महिलाओं को अपने हृदय की सेहत को लेकर अपने डॉक्टर से चर्चा करने के बारे में बढ़चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए। खास तौर पर अगर उन्हें गर्भावस्था संबंधी जटिलताएं या ऑटोइम्यून बीमारियों की शिकायत रही हो।
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