Menu
Call us
Whatsapp
Call us
Whatsapp
Menu
News
Bareilly Business
Add Post
Register
Login
Contact us
News
Bareilly Business
Add Post
Register
Login
Contact us
Home न्यूज़

Janiye kya hai parkinsonism aur iske different types.- यहां जानिए पार्किंसनिज़्म के बारे में सब कुछ।

bareillyonline.com by bareillyonline.com
12 April 2024
in न्यूज़
4 0
0
6
SHARES
35
VIEWS
WhatsappFacebookTwitterThreads

[ad_1]

पार्किंसंस रोग व्यक्ति की मस्तिष्क क्षमता और उसके फंक्शन्स को प्रभावित करता है। मगर पार्किंसनिज़्म एक ऐसी स्थिति है, जो अलग-अलग कारणों से हो सकती है। पार्किंसंस रोगी के उपचार के लिए यह समझना जरूरी है कि मरीज पार्किसनिज़्म के किसी प्रकार से तो पीड़ित नहीं है।

पार्किंसनिज़्म (Parkinsonism), जिसे आमतौर से एटिपिकल पार्किंसंस या पार्किंसंस-प्लस कहा जाता है, न्यूरोलॉजिकल रोगों का एक समूह है। पार्किंसंस रोग आमतौर से मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं के डिजेनरेशन के कारण होता है, लेकिन कई बार कुछ अन्य कारण भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। जैसे – सिर में चोट लगने पर दी जाने वाली दवाओं के साइड इफेक्ट, मेटोबॉलिक एब्नॉर्मेलिटीज़, टॉक्सिन्स और अन्य कई न्यूरोलॉजिकल कंडीशंस भी इसका कारण बन सकती हैं।

क्या होता है मस्तिष्क पर इस बीमारी का असर 

पार्किंसंस रोग में मस्तिष्क में डोपोमाइन बनाने वाली स्नायु कोशिकाएं धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं। जिसके चलते डोपामाइन की कमी हो जाती है, जो कि शरीर की मूवमेंट नियंत्रित करने, लर्निंग और इमोशनल रिस्पॉन्स के लिए जिम्मेदार होता है। पार्किंसनिज़्म (Parkinsonism) के साथ अन्य बहुत से लक्षण भी जुड़े होते हैं। जिनमें से कुछ पार्किंसंस के प्राइमरी मोटर लक्षणों से मेल खाते हैं, जिनमें कंपन, ब्रेडिकिनेसिया (मूवमेंट धीमी होना), और कठोरता तथा कुछ अन्य भी हो सकते हैं।

अलग हैं पार्किंसंस रोग और पार्किंसनिज़्म? (Parkinson’s Disease and Parkinsonism)

पार्किंसंस रोग और पार्किंसनिज़्म के मूल कारणों और उपचार में भिन्नता के चलते, इन दोनों के बीच अंतर को समझना महत्वपूर्ण होता है। जहां पार्किंसंस रोग को मुख्य रूप से ऐसी दवाओं से मैनेज किया जाता है, जो डोपामाइन लेवल बढ़ाती हैं- जैसे कि लेवोडोपा। वहीं पार्किंसनिज़्म के इलाज के लिए मूल कारण की पहचान कर उसका उपचार करना जरूरी होता है।

parkinson's disease me regular medicine lena jaroori hai.
तनाव प्रबंधन तकनीकों को लागू करना पार्किंसंस के मरीज के लिए सबसे अधिक जरूरी है। चित्र : अडोबीस्टॉक

उदाहरण के लिए, वास्क्युलर पार्किंसनिज़्म (Vascular parkinsonism) के उपचार के लिए, जो कि न्यूरोडिजेनरेशन की बजाय हल्के-फुल्के स्ट्रोक्स की वजह से होता है। पार्किंसंस के मानक उपचार से अलग मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी की जरूरत होती है।

पार्किंसंस डिज़ीज़ और पार्किंसनिज़्म के बीच अंतर को समझने से हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स के लिए सटीक डायग्नॉसिस और उसके हिसाब से इलाज की रूपरेखा तय करना आसान होता है। जो कि मरीज की देखभाल और इस प्रकार की जटिल न्यूरोलॉजिकल कंडीशंस के मैनेजमेंट में महत्वूपूर्ण भूमिका निभाता है।

यह भी पढ़ें

National Pet Day : पालतू जानवर आपकी मेंटल हेल्थ करते हैं बूस्ट, पर सेफ्टी के लिए याद रखें ये 5 जरूरी चीजें

पार्किंसनिज़्म में, पार्किंसंस डिज़ीज़ से भी अधिक कई तरह की कंडीशंस शामिल होती हैं, और हरेक के अपने खास लक्षण, कारण तथा उपचार होते हैं।

ये हैं पार्किंसनिज़्म के कुछ प्रमुख प्रकार और उनके लक्षण (Types of Parkinsonism and their symptoms)

1 वास्क्युलर पार्किंसनिज़्म (Vascular parkinsonism)

यह मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचने, जो कि अक्सर हल्के-फुल्के स्ट्रोक की वजह से होता है, के कारण होता है। इसके लक्षण पार्किंसन रोग से मिलते-जुलते हैं, जैसे कंपन, ब्रेडिकिनेसिया, और कठोरता, लेकन यह न्यूरोडिजेनरेशन के कारण नहीं होता। इसके उपचार के तहत वास्क्युलर रिस्क फैक्टर को मैनेज किया जाता है और वास्क्युलर पैथोलॉजी पर गौर करना जरूरी होता है।

2 दवाओं के सेवन से उत्पन्न पार्किंसनिज़्म (drug induced parkinsonism)

कई बार कुछ दवाओं जैसे कि एंटीसाइकॉटिक्स और एंटीमेटिक्स के सेवन की वजह से होने वाले साइड इफेक्ट से भी पार्किंसनिज़्म हो सकता है। इसके लक्षण आमतौर से उस दवा का प्रयोग बंद करने पर धीरे-धीरे कम होने लगते हैं। लेकिन, कई बार कुछ कंडीशंस के बने रहने पर उनका उपचार करने की जरूरत हो सकती है।

3 टॉक्सिन की वजह से उत्पन्न पार्किंसनिज़्म (toxin induced parkinsonism)

कुछ खास प्रकार के विषाक्त पदार्थों जैसे मैंगनीज़ या कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में आने पर भी पार्किंसनिज़्म हो सकता है। इसलिए इन विषाक्त पदार्थों को हटाना तथा अन्य लक्षणों के मुताबिक कदम उठाना जरूरी है।

Environment me mojud toxins bhi parkinson's disease ka karan bana sakte hain
बाहरी टॉक्सिन्स भी पार्किंसंस रोग का कारण बन सकते हैं। चित्र : अडोबीस्टॉक

4 पार्किंसनिज़्म-प्लस सिंड्रोम (parkinsonism-plus syndrome)

ये न्यूरोडिजेनरेटिव डिसऑर्डर का समूह है, जो पार्किंसन रोग के लक्षणों के अलावा अन्य कई ऐसे लक्षणों तथा संकेतों के साथ उभरते हैं, जो अमूमन पार्किंसन रोग में दिखायी नहीं देते। उदाहरण के तौर पर प्रोग्रेसिव सुपरान्युक्लियर पैल्सी (पीएसपी), मल्टीपल सिस्टम एट्रोफी (एमएसए) और कॉर्टिकोबेसल डिजेनरेशन (सीबीडी) शामिल हैं। इसके उपचार के लिए लक्षणों के मुताबिक इलाज और देखभाल की जाती है।

5 लेवी बॉडी डिमेंशिया (Dementia with Lewy bodies)

एलबीडी में मस्तिष्क में लेवी बॉडीज़ की मौजूदगी और प्रोटीन का असामान्य जमाव हो जाता है। यह पार्किंसनिज़्म के लक्षणों के अलावा संज्ञात्नात्मक बदलाव और हैल्यूसिनेशंस भी पैदा करता है। इसके इलाज के लिए लक्षणों को मैनेज किया जाता है और साथ ही, रोगी तथा उसकी देखभाल में जुटे लोगों को सपोर्ट दिया जाता है।

6 सेकंडरी पार्किंसनिज़्म (Secondary parkinsonism)

इसका कारण शरीर में मौजूद कुछ कंडीशंस जैसे कि हैड ट्रॉमा, ब्रेन ट्यूमर या अन्य मेटाबॉलिक डिसऑर्डर हो सकते हैं। इलाज के लिए प्रमुख कारणों तथा लक्षणों के मैनेजमेंट पर ध्यान दिया जाता है।

7 एटिपिकल पार्किंसनियन डिसऑर्डर (Atypical parkinsonism)

इस श्रेणी में ऐसी कंडीशंस शामिल हैं जो कुछ हद तक पार्किंसन रोग से मिलती-जुलती हैं, लेकिन क्लीनिकली और पैथौलॉजिकली एकदम अलग दिखायी देती हैं। ये रोग तेजी से बढ़ते हैं और पार्किंसन की मानक दवाओं का इन पर धीमा असर होता है। उदाहरण – PSP, MSA, तथा CBD.

प्रत्येक तरह के पार्किंसनिज़्म का गहन मूल्यांकन और रोगी के खास लक्षणों, बुनियादी कारणों तथा रोग की रफ्तार को ध्यान में रखकर मैनेजमेंट करना जरूरी होता है। उपचार के लिए न्यूरोलॉजिस्ट के अलावा मूवमेंट डिसऑर्डर स्पेशलिस्ट और अन्य हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की आवश्यकता होती है। ताकि मरीज की पूरी देखभाल सुनिश्चित की जा सके।

कैसे किया जाता है पार्किंसंस रोग का निदान (How to diagnose Parkinson’s Disease)

फिलहाल ऐसा कोई टेस्ट उपलब्ध नहीं है, जिससे पार्किंसन रोग का निदान हो सके। प्रायः तंत्रिका तंत्र से जुड़ी कंडीशंस में प्रशिक्षित डॉक्टर यानि न्यूरोलॉजिस्ट द्वारा रोग का निदान किया जाता है। पार्किंसन रोग के निदान के लिए मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, उनके लक्षणों की समीक्षा और न्यूरोलॉजिकल तथा शारीरिक जांच की जाती है।

इसके लिए इमेजिंग टेस्ट जैसे एमआरआई, ब्रेन सीटी आदि उपयोगी होते हैं जो ब्रेन डिसऑर्डर, पेट स्कैन तथा डोपामाइन आदि के डायग्नॉसिस में भी मददगार होते हैं तथा पार्किंसन की पुष्टि में इनसे मदद मिलती है।

पार्किंसन रोग का डायग्नॉसिस वाकई काफी जटिल होता है और आमतौर पर इसमें न्यूरोलॉजिस्ट या मूवमेंट डिसऑर्डर स्पेश्यलिस्ट द्वारा मरीज की जांच की जाती है। हालांकि, पार्किंसन रोग के निदान के लिए कोई एक टेस्ट नहीं है, लेकिन डायग्नॉसिस कई पहलुओं पर निर्भर होता हैः

मेडिकल हिस्ट्री

डॉक्टर द्वारा मरीज की मेडिकल हिस्ट्री की समीक्षा की जाती है और यहां तक कि इस बात की जांच भी की जाती है कि मरीज या उनके परिजनों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की कोई हिस्ट्री तो नहीं है।

लक्षणों का मूल्यांकन

पार्किंसन रोग में कुछ खास किस्म के मोटर लक्षण देखे जाते हैं, जैसे कंपन, ब्रेडिकिनेसिया, अकड़न और शारीरिक अस्थिरता। मरीज की बारीकी से जांच तथा उनके साथ बातचीत के आधार पर डॉक्टर इन लक्षणों की पहचान करते हैं।

symptoms ko dekhna aur unki pahchan karna sabse zyada zaruri hai
इस रोग की पहचान के लि लक्षणों को देखना सबसे ज्यादा जरूरी है। चित्र : अडोबीस्टॉक

न्यूरोलॉजिकल एवं शारीरिक जांच

मोटर फंक्शन, मांसपेशियों की ताकत, रिफ्लैक्स, कॉर्डिनेशन और संतुलन आदि के मूल्यांकन के लिए विस्तृत न्यूरोलॉजिकल जांच की जाती है। कुछ खास तरह के टेस्ट जैसे यूनिफाइड पार्किंसन डिज़ीज़ रेटिंग स्केल (UPDRS) की मदद से लक्षणों की गंभीरता का आकलन किया जाता है।

दवाओं के प्रति रिस्पॉन्स

डोपामिनेर्जिक दवाओं जैसे लेवाडोपा के प्रति रिस्पॉन्स से पार्किंसन का संकेत मिलता है। इन दवाओं के सेवन से लक्षणों में सुधार होना भी सही डायग्नॉसिस की पुष्टि करता है।

इमेजिंग टेस्ट

हर तरह के पार्किंसन रोग के डायग्नॉसिस और उनकी अलग-अलग पहचान के लिए इमेजिंग टेस्ट जैसे एमआरआई, अल्ट्रासाउंड तथा पेट स्कैन का इस्तेमाल किया जाता है।

फॉलो-अप एवं मॉनीटरिंग

पार्किंसन रोग धीरे-धीरे बढ़ता रहता है, इसलिए रैग्युलर फौलो-अप जरूरी होता है ताकि मरीज के लक्षणों को मॉनीटर किया जा सके और उपचार कितना प्रभावी साबित हो रहा है, इसका मूल्यांकन भी हो सके। इनके हिसाब से ही मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी को आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है।

कुल-मिलाकर, पार्किंसन रोग के डायग्नॉसिस के लिए एक विस्तृत रणनीति बनानान जरूरी होती है जिसमें मरीज की क्लीनिकल अवस्था, मेडिकल हिस्ट्री, जांच, और अन्य कोई कंडीशन तो नहीं है, इसकी पुष्टि करने के लिए अन्य टेस्ट आवश्यक होते हैं। शुरुआती स्तर पर सटीक डायग्नॉसिस सही उपचार शुरू करने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होता है जो कि मरीज की स्थति में सुधार और लाइफ क्वालिटी को बेहतर बनाने में मददगार होता है।

यह भी पढ़ें – World Parkinson’s Disease Day : पर्किंसंस डिजीज से ग्रस्त लोगों की लाइफ क्वालिटी में सुधार कर सकते हैं ये 4 टिप्स

[ad_2]

Source link

Advertisement Banner

Trending Now

edit post
सर्दियों में अपनी कार की कैसे करें देखभाल, ये 5 टिप्स कर सकते हैं आपकी मदद
ऑटोमोबाइल

सर्दियों में अपनी कार की कैसे करें देखभाल, ये 5 टिप्स कर सकते हैं आपकी मदद

5 months ago
edit post
RIP: नहीं रहे टेबल स्पेस के फाउंडर अमित बनर्जी, 44 वर्ष की उम्र में कहा अलविदा – rip table space founder amit banerji passes away at 44
न्यूज़

RIP: नहीं रहे टेबल स्पेस के फाउंडर अमित बनर्जी, 44 वर्ष की उम्र में कहा अलविदा – rip table space founder amit banerji passes away at 44

5 months ago
edit post
kanguva to swatantrya veer savarkar 5 films that made it to oscars 2025
एंटरटेनमेंट

kanguva to swatantrya veer savarkar 5 films that made it to oscars 2025

5 months ago
edit post
Delhi Election 2025: हर वोटर के फोन में होना चाहिए ये ऐप, फटाफट होंगे Voter ID से जुड़े सभी काम
गैजेट

Delhi Election 2025: हर वोटर के फोन में होना चाहिए ये ऐप, फटाफट होंगे Voter ID से जुड़े सभी काम

5 months ago
No Result
View All Result
  • न्यूज़
  • एंटरटेनमेंट
  • स्पोर्ट्स
  • व्रत त्यौहार
  • ऑटोमोबाइल
  • हैल्थ
  • ब्लॉग
  • बरेली बिज़नेस
  • Contact

© 2025 Bareilly Online bareillyonline.

Go to mobile version

Notifications