भारत में सात फीसदी से ज्यादा महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें एक से ज्यादा बार गर्भपात का सामना करना पड़ता है। इसमें क्रोमोसोम की बड़ी भूमिका होती है। इस नए अध्ययन में क्रोमोसोम की अदला-बदली पर भी ध्यान दिए जाने की सिफारिश की गई है।
बार-बार गर्भपात होना (Recurrent pregnancy loss) एक आम समस्या है। इससे जूझने वाली आप अकेली महिला नहीं हैं। आंकड़े बताते हैं कि 70% महिलाएं अपना गर्भावस्था काल पूरा नहीं कर पाती हैं। इनमें से 15-20% महिलाओं को 20 हफ्ते से पहले ही कई बार गर्भपात का सामना करना पड़ता है। आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो भारत में, आरपीएल यानी बार-बार गर्भपात होने की दर 7.4% है, जो कि काफी ज्यादा है। इसके कारणों पर अब भी लगातार शोध किए जा रहे हैं। ऐसा ही एक नया शोध है जो गर्भपात के कारणों (Causes of recurrent pregnancy loss) में क्रोमोसोम पॉलीमॉर्फिज्म की भूमिका पर प्रकाश डाल रहा है।
हालांकि, यह जानकर राहत मिल सकती है कि रिकरेंट प्रेगनेंसी लॉस अथवा आरपीएल के पीछे के कारणों का पता लगाने और उपचार के लिए वैज्ञानिक अध्ययनों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय सुझाव उपलब्ध हैं।
क्या हैं बार-बार गर्भपात होने के कारण (Causes of recurrent pregnancy loss)
बार-बार गर्भपात के लिए जिम्मेदार कारणों में एंटीफॉस्फोलिपिड सिंड्रोम, एंडोक्राइनल या मेटाबॉलिक डिसऑर्डर, गर्भाशय संबंधी समस्याएं, और क्रोमोसोम की असामान्यताओं के आनुवांशिक कारण शामिल हैं। इन दिशानिर्देशों के अनुसार, केवल आधे मरीजों को ही मौजूदा उपचार मिल पाता है। इसके विपरीत, डॉक्टरों को हमेशा आरपीएल (Recurrent pregnancy loss) का कारण पता नहीं चल पाता है और लगभग आधे मामलों में, कारण अज्ञात रह जाता है।
क्रोमोसोम सेगमेंट की अदला-बदली
संतुलित स्थानांतरण (क्रोमोसोम सेगमेंट की अदला-बदली) का पता लगाने के लिए पूरी दुनिया में पेरेंटल कैरियोटाइप की सलाह दी जाती है। बार-बार गर्भपात का अनुभव करने वाले दंपतियों में जांच का मूल्यांकन तथा उपचार के लिए इसे एक स्वर्ण-मानक माना जाता है।
कैसे की जाती है जांच
क्रोमोसोम की असमान्यताओं की जांच के अलावा मूल्यांकन के लिए बीते कुछ वर्षों में कई साक्ष्य सामने उभरकर आए हैं। इसमें क्रोमोसोम के शॉर्ट आर्म एवं न्यूक्लियोलर ऑर्गनाइजिंग (एनओआर) रीजन में वैरिएशन, जिन्हें क्रोमोसोम पॉलीमॉर्फिज्म अथवा गुणसूत्र बहुरूपता (CPM) के रूप में जाना जाता है, का बार-बार गर्भपात, अस्पष्ट बांझपन और अन्य प्रजनन समस्याओं से संबंध हो सकता है।
सामान्य व्यक्ति की तुलना में क्रोमोसोमल पॉलीमॉर्फिज्म में आनुवांशिक तत्व भिन्न तरीके से व्यवस्थित रहते हैं। आमतौर पर बांझपन (Infertility) की समस्या से गुजर रहे दंपतियों में इस तरह की व्यवस्था पाई जाती है।
क्या क्रोमोसोम पॉलीमॉर्फिज्म भी है प्रेगनेंसी लॉस का कारण?
आरपीएल मरीजों पर किए गए कई सारे अध्ययनों में क्रोमोसोमल पॉलीमॉर्फिज्म के मामले ज्यादा दर्ज किए गए। यानी 8% और 15% के बीच दंपतियों में अल्पप्रजनन क्षमता तथा गर्भपात की समस्या पाई गई। इंसानों में आनुवांशिकी पर क्रोमोसोमल पॉलीमॉर्फिज्म या सामान्य वैरिएंट्स का वास्तविक प्रभाव, विवाद का विषय बना हुआ है।
इसे अभी भी सामान्य, सामान्य कैरियोटाइप माना जाता है। दरअसल, इससे जुड़ा कोई भी फेनोटाइपिक और कार्यात्मक प्रभाव नहीं पाया गया है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि क्रोमेटिन भिन्नताएं, सेंट्रोमियर कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकती हैं। यह किनेटोकोर के माध्यम से माइक्रोट्यूबल बाइंडिंग के जरिए क्रोमोसोम के पृथक होने को प्रभावित कर सकता है। इससे सिस्टर क्रोमेटिडस के बीच मेल की जगह बन सकती है।
क्या हो सकती है परेशानी
क्रोमोसोम बायोरिएंटेशन से समजातीय क्रोमोसोम के युग्म बनने में भी परेशानी खड़ी हो सकती है और इसलिए गेमेटोजेनेसिस या युग्मकजनन के दौरान कोशिकाओं का विभाजन हो सकता है। ऐसा भी माना गया है कि क्रोमोसोम में मौजूद हेटरोक्रोमैटिन क्षेत्र में स्पिंडल के जुड़ाव, क्रोमोसोम की गति और सिस्टर क्रोमैटिड के मेल में भी यह अहम भूमिका निभाता है।
आरपीएल से पीड़ित इडियोपैथिक श्रेणी में वर्गीकृत किए दंपतियों के उपचार को लेकर भी एक बहुत बड़ी दुविधा है। स्त्रीरोग विशेषज्ञों के लिए ऐसे मरीजों की काउंसलिंग जटिल तथा चुनौतीपूर्ण होती है। इतना ही नहीं, आरपीएल की सामान्य जांच के बाद भी क्रोमोसोम में किसी प्रकार की असामान्यताओं का पता नहीं चलता है।
महत्वपूर्ण है क्रोमोसोम की असामान्यताओं पर किया गया यह नया अध्ययन
डॉ. आशीष फौजदार, हेड, साइटोजेनेटिक्स, रेडक्लिफ लैब्स के नेतृत्व में किए गए मौजूदा अध्ययन में सिंगल-सेंटर केस-कंट्रोल के माध्यम से पहले से मौजूद, आनुवांशिक कारणों का पता लगाया गया। इस अध्ययन में उन मरीजों पर ध्यान केंद्रित किया गया जोकि क्रोमोसोम की असामान्यताओं का पता लगाने के लिए पारंपरिक साइटोजेनेटिक्स कल्चर तकनीक की मदद ले रहे थे। अध्ययन किए गए समूह में 1400 लोग शामिल थे। उनमें 700 ऐसे दंपति शामिल थे, जिनमें बार-बार गर्भपात होने की समस्या पाई गई थी।
जांची गई क्रोमोसोम पॉलीमॉर्फिक की मौजूदगी
पहली बार किसी अध्ययन में क्रोमोसोम पॉलीमॉर्फिक की व्यापकता को सामने रखा गया गया, जोकि लगभग 33.7% है। यह अल्प प्रजनन वाले दंपतियों मे बार-बार गर्भपात तथा प्राथमिक बांझपन को लेकर उपमहाद्वीप में पहले कराए गए अध्ययनों की तुलना में काफी ज्यादा हैं।
पिछले अध्ययनों की तुलना में क्रोमोसोम पॉलीमॉर्फिज्म की समस्या काफी ज्यादा पाई गई। नियंत्रित समूह की तुलना में अध्ययन समूह के मरीजों में डी/जी क्रोमोसोम समूह वाले पॉलीमॉर्फिज्म काफी ज्यादा थे।
केस स्टडी का आधार बन सकता है यह अध्ययन
यह अध्ययन क्रोमोसोम पॉलीमॉर्फिज्म की व्यापकता को पेश करता है और पुख्ता साक्ष्यों के उपलब्ध होने तक इसकी व्याख्या की जानी चाहिए। तब तक केस-दर-केस के आधार पर मरीजों को सलाह दी जानी चाहिए। भविष्य में, सीपीएम अस्पष्ट आरपीएल समूह के लिए, रोग की पहचान तथा प्रबंधन में अहम भूमिका निभा सकता है।
कुल मिलाकर, बार-बार गर्भपात वाले मरीजों में सामान्य वैरिएंट की बड़ी ही सावधानी से व्याख्या की जानी चाहिए। इसका उपचार किया जाना चाहिए, क्योंकि रोग की पहचान करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता। साथ ही जब तक पुख्ता सबूत उपलब्ध नहीं हो जाते, तब तक केस-दर-केस आधार पर उपचार किया जाना चाहिए।
उपचार और काउंसलिंग दोनों हैं जरूरी
डॉ. आशीष फौजदार कहते हैं, “तब तक जिन मरीजों को अस्पष्ट आरपीएल की श्रेणी में रखा गया है, चिकित्सक उन दंपतियों को भविष्य में गर्भधारण करने की योजना के लिए काउंसलिंग तथा समय पर उपचार देने में मदद कर सकते हैं। अस्सिटेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजिस के माध्यम से पॉलीमॉर्फिज्म पीड़ित पुरुषों-महिलाओं के साथ आगे केस-कंट्रोल फॉलो-अप अध्ययन करने की जरूरत है।”
वे आगे कहते हैं, “भ्रूण विकास पर सीपीएम के वास्तविक प्रभाव को जानने के लिए एन्यूप्लोइडी स्क्रीनिंग (पीजीएस-ए) के लिए पेरिप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग किए जाने की जरूरत है। इसके साथ ही 21वीं सदी में क्रोमोसोम पॉलीमॉर्फिज्म की आगे की जांच के लिए ब्लास्टोसिस्ट दर, एन्युप्लोइडी दर के बाद नैदानिक गर्भावस्था दर, प्रारंभिक गर्भपात और जीवित जन्म दर शामिल है।”
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