‘बाहर तेज बारिश हो रही है। भीग जाओगे। आज ऑफिस से छुट्टी क्यों नहीं ले लेते।’ दादी ने नाश्ते की टेबल पर बैठे विवेक से कहा। विवेक जर्नलिस्ट है। पराठे की बाइट लेते हुए विवेक ने जवाब दिया- ‘छुट्टी नहीं ले सकता दादी। आज बजट आने वाला है।’
.
दादी बोली- ‘तुम्हारी नौकरी में तो रोज कुछ न कुछ लगा रहता है। वैसे बजट में तुम क्या खबर करोगे ?’
विवेक ने जवाब दिया- ‘मुझे सरकार के बजट को आसान भाषा में समझाने की जिम्मेदारी मिली है। अब पता नहीं लोगों को समझा पाऊंगा या नहीं।’
दादी बोली- ‘अगर तुम मुझे और अपनी छोटी बहन रिया को पूरी बात समझा ले गए, तो समझो काम हो गया। तुम्हारे पास सिर्फ 10 मिनट हैं। उसके बाद टीवी पर मेरा सीरियल शुरू हो जाएगा।’
विवेक- देखो दादी। हमारे जैसे ज्यादातर परिवार अगले महीने की कमाई और खर्च का हिसाब लगाते हैं, वैसे ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और उनकी टीम भी ऐसा ही गणित जोड़ती है। हालांकि ये हिसाब पूरे देश की आमदनी और खर्च का होता है। हर साल होने वाली इस कवायद को बजट कहते हैं।
देश का बजट यानी देश के पूरे वित्तीय वर्ष का हिसाब-किताब। वित्तीय वर्ष यानी 1 अप्रैल से लेकर अगले साल 31 मार्च तक के 12 महीने का समय। मतलब वित्त मंत्री ये बही-खाता तैयार करती हैं कि सरकार को कहां-कहां से पैसा मिलेगा और सरकार कहां-कहां उसे खर्च करेगी। सरकारी कागजों में इसे एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट कहते हैं।
तभी थोड़ा कन्फ्यूज होते हुए रिया बोली- लेकिन भैया, जैसे मेरा नाम मम्मी-पापा ने रखा। ऐसे बजट का नाम बजट किसने रखा होगा?
विवेक- ये परंपरा ब्रिटेन की संसद में शुरू हुई थी। तब वहां के वित्त मंत्री ये सारा हिसाब-किताब एक चमड़े के बैग में रखकर लाते थे। चमड़े के बैग को फ्रेंच में बुजेत कहा जाता था। अंग्रेजी में उसे बजट कहा जाने लगा। इसी वजह से पूरी दुनिया में देश हो या घर, खर्च और आमदनी के हिसाब-किताब को बजट कहा जाने लगा।
दादी- तुम बता रहे बजट सालभर का हिसाब-किताब होता है। अभी 4-5 महीने पहले ही तो बजट आया था, 23 जुलाई को फिर पेश हो रहा है। साल में दो बार, क्या कुछ स्पेशल है?
विवेक- 5 महीने पहले 1 फरवरी को पूरे साल का बजट नहीं, बल्कि काम चलाऊ हिसाब-किताब पेश हुआ था। इसे अंतरिम बजट कहते हैं। अब 23 जुलाई को आम बजट पेश हो रहा है।
रिया- ये अंतरिम बजट और आम बजट में क्या फर्क होता है भैया?
विवेक- मान लो कि पापा को 3 महीने बाद कोई दूसरी नौकरी जॉइन करनी है। इस दौरान मौजूदा कंपनी उनकी सैलरी रोक सकती है। इस हालात में वे सिर्फ 2-3 महीने का ही बजट बनाएंगे। उसमें भी कोशिश करेंगे कि सिर्फ जरूरी खर्चे ही शामिल हों। बड़े-बड़े फैसले जैसे- प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करना, कार खरीदना… वगैरह टाल देंगे। 3 महीने बाद जब नई कंपनी जॉइन कर लेंगे, तो प्रॉपर बजट बनाएंगे।
ठीक इसी तरह इस साल देश में चुनाव होने थे। यानी मौजूदा सरकार कुछ महीनों की मेहमान थी। ऐसे में वित्त मंत्री फरवरी में ही पूरे साल का बजट नहीं बना सकती थीं, क्योंकि चुनाव के बाद नई सरकार बनती है, जो अपने हिसाब से बजट तैयार करती है। इसलिए इस साल 1 फरवरी को कुछ महीनों का काम चलाऊ बजट पेश हुआ था। इसे ही अंतरिम बजट कहते हैं। नई सरकार बनने के बाद 23 जुलाई को पूर्ण बजट पेश किया जा रहा है।
रिया- अंतरिम बजट बोलने में मुझे थोड़ा अटपटा लगता है। ये नाम कैसे पड़ा?
विवेक- इसकी भी एक कहानी है। दरअसल, जब भारत आजाद हुआ तो पहला बजट वित्त मंत्री आरके षणमुगम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया था। इसमें नए नियम और नए टैक्स लागू नहीं किए गए थे। इसके 95 दिन बाद 1948-49 का पूर्ण बजट पेश किया गया।
उस बजट को पेश करते समय षणमुगम ने कहा कि इससे पहले जो बजट पेश किया गया था वो अंतरिम था। इसी के बाद से ‘अंतरिम बजट’ नाम चल पड़ा। तब से कम समय के लिए पेश किए गए बजट को अंतरिम बजट कहा जाने लगा। भारत के संविधान में इसका अलग से कोई जिक्र नहीं है।
दादी- अच्छा ये बताओ कि अंतरिम बजट में कोई बड़ा फैसला क्यों नहीं करते?
विवेक- अंतरिम बजट में सरकार क्या करेगी, इसे लेकर कोई रोक तो नहीं है, लेकिन अमूमन सरकार कोई बड़ी घोषणा नहीं करती। सरकार के किसी ऐलान से वोटर्स पर गलत असर न पड़े, चुनाव आयोग इसका ध्यान रखता है। इसलिए अंतरिम बजट पर कुछ सीमाएं भी लगाई गई हैं।
ये एक परंपरा है कि सरकार अंतरिम बजट में कोई बड़ी घोषणा न करे। हालांकि 2019 में ही सरकार ने टैक्स छूट की लिमिट को 2.5 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया था।
रिया- भैया, मेरे लिए थोड़ा बोरिंग हो रहा है। बजट के बारे में कुछ इंट्रेस्टिंग बात बताओ।
विवेक- तुमको बजट के कुछ बड़े बदलाव के बारे में बताता हूं। ये ग्राफिक देखो…
दादी- बजट को संसद में पेश करना क्यों जरूरी है? सरकार तुम जैसे पत्रकारों को ऐसे ही क्यों नहीं बता देती?
विवेक- ये एक अच्छा सवाल है। देखो, हमारे घर में मैं और पापा जॉब करते हैं। आपकी पेंशन आती है। यानी हमारे घर में कमाई के 3 सोर्स हो गए। हम लोग अपनी कमाई को एक जॉइंट बैंक अकाउंट में जमा करते हैं।
इसी तरह सरकार को टैक्स, रेवेन्यू, लोन समेत अलग-अलग कई तरीकों से आमदनी होती है। ये सारी कमाई एक साझा कोष में जमा हो जाती है। इसे देश की ‘संचित निधि’ या ‘कंसोलिडेटेड फंड’ कहते हैं। इसका जिक्र संविधान के आर्टिकल 266 (1) में है।
अब बात खर्च की। अपने घर में भी नियम है कि जॉइंट अकाउंट से खर्च के लिए एक रुपया भी निकालना है तो मेरी, पापा और आप तीनों लोगों से इजाजत ली जाएगी। जॉइंट अकाउंट के हम तीनों मालिक हैं।
इसी तरह देश की संचित निधि की मालिक लोकसभा है। इसमें से एक भी पैसा निकालने के लिए लोकसभा की मंजूरी जरूरी होती है। आया समझ में…
दादी- हां, ये बात तो समझ में आ गई, लेकिन देश के पैसे की मालिक लोकसभा क्यों है?
विवेक- लोकसभा में जो सांसद होते हैं उन्हें हम यानी जनता सीधे वोट देकर चुनती है। संचित निधि में जमा पैसा जनता का ही होता है। इसलिए भारत के संविधान में ये इंतजाम किया गया है कि संचित निधि में जो जमा पैसा है, उसका फैसला लोकसभा करे। यानी अप्रत्यक्ष रूप से जनता की अनुमति ली जाती है।
राज्यसभा के सांसद सीधे जनता के जरिए नहीं चुने जाते। इसलिए राज्यसभा में बजट पर केवल चर्चा होती है। बजट में बदलाव और वोट देने का अधिकार राज्यसभा के पास नहीं होता है।
अच्छा रिया, तुम्हें पता है कि अब तक सबसे ज्यादा बार बजट किस वित्त मंत्री ने पेश किया है?
रिया- नहीं
विवेक- अच्छा तो इस ग्राफिक को देखो…
रिया- भैया, अगर सरकार बजट पेश ही न करे तो क्या होगा?
विवेक- बजट पेश करना सरकार की मजबूरी है। संविधान में दो जगह इसका हवाला है। थोड़ा टेक्निकल है, फिर भी बताता हूं…
पहला: संविधान के आर्टिकल 112 के तहत सरकार को हर साल लोकसभा में अपनी कमाई और खर्च का पूरा हिसाब-किताब बताना पड़ेगा।
दूसरा: संविधान के अनुच्छेद 114 के तहत विनियोग बिल का प्रावधान है। इस बिल के जरिए सरकार लोकसभा से अनुमति मांगती है। जिससे संचित निधि से पैसे निकाल सके। विनियोग विधेयक के पास होकर लागू होने तक सरकार भारत की संचित निधि से धन नहीं निकाल सकती।
दादी- अपने घर का बजट तो मैं, तुम, मम्मी और तुम्हारे पापा मिलकर बना लेते हैं। देश का बजट कैसे बनता है?
विवेक- बजट बनाने की तैयारी करीब 6 महीने पहले, यानी आमतौर पर सितंबर में ही शुरू हो जाती है। ये मोटे तौर पर 6 स्टेज में होता है…
- सितंबर में मंत्रालयों, विभागों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सर्कुलर जारी करके आने वाले साल के लिए जरूरी फंड का डेटा देने को कहा जाता है। इन आंकड़ों के आधार पर ही बाद में अलग-अलग मंत्रालयों को फंड दिए जाते हैं।
- बजट बनाने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद वित्त मंत्री, वित्त सचिव, राजस्व सचिव और व्यय सचिव की हर दिन बैठक होती है।
- अक्टूबर-नवंबर तक वित्त मंत्रालय दूसरे मंत्रालयों-विभागों के अधिकारियों के साथ मीटिंग करके ये तय करते हैं कि किस मंत्रालय या विभाग को कितना फंड दिया जाए।
- बजट बनाने वाली टीम को पूरी प्रक्रिया के दौरान प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और नीति आयोग के इनपुट लगातार मिलते रहते हैं। बजट टीम में अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
- बजट बनाने और इसे पेश करने से पहले कई इंडस्ट्रीज और ऑर्गनाइजेशन्स के प्रमुख लोगों से भी वित्त मंत्री चर्चा करती हैं।
- बजट से जुड़ी सारी चीजें फाइनल होने के बाद एक ब्लू प्रिंट तैयार किया जाता है। बजट को लेकर सब कुछ तय होने के बाद बजट दस्तावेज प्रिंट होता है।
रिया- मैं कहीं पढ़ रही थी कि बजट बनाने वाले लोगों को कमरे में बंद रखा जाता है। सही है क्या?
विवेक- हां, एक हद तक सच है। बजट डॉक्यूमेंट सीक्रेट होता है क्योंकि इसकी कोई भी सूचना बाहर नहीं आनी चाहिए। बजट दस्तावेज को वित्त मंत्रालय के चुनिंदा अफसर तैयार करते हैं। बजट दस्तावेज लीक न हो, इसलिए इसमें यूज होने वाले सभी कम्प्यूटरों को दूसरे नेटवर्क से डी-लिंक कर दिया जाता है।
बजट पर काम करने वाले अफसरों और कर्मचारियों को दो से तीन हफ्ते तक नॉर्थ ब्लॉक के दफ्तरों में ही रहना होता है। इस दौरान उन्हें बाहर जाने की इजाजत नहीं होती है। जब बजट बन जाता है तो वित्त मंत्री हलुआ भी खिलाती हैं। नीचे 16 जुलाई 2024 की तस्वीर है। जिसमें बजट तैयार होने के बाद वित्त मंत्री कर्मचारियों को हलवा खिला रही हैं।
दादी- मेरा होनहार बच्चा किसी को भी बजट समझा सकता है। अब मेरे सीरियल का टाइम हो रहा है। बारिश भी थम गई है। अब तुम बेफिक्र होकर ऑफिस जाओ और सबको आसान भाषा में बजट समझाओ।
****
स्केचः संदीप पाल
ग्राफिक्स: कुणाल शर्मा