नई दिल्ली11 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंडस्ट्रियल शराब पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों का है, इसे छीना नहीं जा सकता है। 9 जजों की बेंच ने 1997 में 7 जजों की बेंच का फैसला पलट दिया, जिसने कहा था- इंडस्ट्रियल शराब के प्रोडक्शन-सप्लाई को नियंत्रित करने का अधिकार केंद्र के पास है।
साल 2010 में यह केस 9 जजों की बेंच में ट्रांसफर हुआ था। इस साल अप्रैल में इस केस में 6 दिन लगातार सुनवाई हुई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज 9 जजों की बेंच ने 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने फैसले का विरोध किया।
इंडस्ट्रियल अल्कोहल इथेनॉल का अशुद्ध रूप है। आमतौर पर सॉल्वेंट के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। ये लोगों के पीने के लिए नहीं होती। अनाधिकृत उपभोग से बचने के लिए, इंडस्ट्रियल शराब में उल्टी पैदा करने वाला पदार्थ मिलाकर भी बेचा जाता है।
सुप्रीम कोर्ट बोला- औद्योगिक शराब पर टैक्स का अधिकार राज्य के पास
औद्योगिक शराब संविधान की लिस्ट II की एंट्री 8 के तहत नशीली शराब की परिभाषा के तहत आती है, जिससे राज्यों को इसके उत्पादन को विनियमित करने और टैक्स लगाने का अधिकार मिलता है। औद्योगिक शराब पर कानून बनाने की राज्य की शक्ति छीनी नहीं जा सकती।
याचिकाकर्ताओं ने कहा- इंडस्ट्रियल शराब पर टैक्स की शक्ति जरूरी
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि GST के बाद इंडस्ट्रियल शराब पर टैक्स लगाने की शक्ति महत्वपूर्ण है। ये राज्यों की आय का एक महत्वपूर्ण जरिया है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि औद्योगिक शराब को विनियमित करने की शक्ति केंद्र के पास चली जाती है, तो औद्योगिक शराब की अवैध खपत से निपटने के मामले में उनके हाथ बंधे रहेंगे।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत को औद्योगिक शराब के उत्पादन की तकनीकी प्रक्रिया के माध्यम से यह भी समझाने की कोशिश की कि सभी शराब ‘नशीली’ होती है चाहे पीने योग्य हो या नहीं।
केंद्र ने कहा- औद्योगिक शराब को विनियमित करने की शक्ति केंद्र की
केंद्र ने तर्क दिया कि औद्योगिक शराब को विनियमित करने की शक्ति हमेशा उनकी रही है। स्टेट लिस्ट की एंट्री 8 का उस शराब से कोई लेना-देना नहीं है जो पीने योग्य नहीं है।