लाल केले की खेती से बढ़ाएं मुनाफा, इन जीवांश खादों का करें इस्तेमाल | Red Banana Cultivation | लाल केले की खेती की जानकारी | Lal Kele Ki Kheti


लाल केले की खेती, किसानों के लिए मुनाफे का बड़ा मौका

किसान केला की फसल लगाने से पहले हरी खाद को तैयार कर सकते है। हरी खाद का उपयोग करके अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि किया जा सकता है। खेतों में लगातार बढ़ते रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटती जा रही है। उत्तर भारत में, लाल केले लगाने का सबसे अच्छा समय 15 जून के बाद से लेकर 15 सितंबर तक है। 

लाल केले की खेती Red Banana Cultivation:

उत्तर भारत में लाल केले की खती सही कृषि पद्धतियों और आधुनिक कृषि तकनीकों के प्रबंधन के साथ सफल खेती की जा सकती है। किसान लाल केले की खेती से बाजारों में अपनी आय को दोगुना बढ़ा सकते हैं। लाल केले को अपने लाल-बैंगनी रंग और मीठे स्वाद के लिये जाना जाता है। केले की यह किस्म उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है। लाल केले की खेती मुख्य रूप से दक्षिणी राज्यों में पहले से ही की जा रही है। मुख्यतः बिहार राज्य में लाल केले की खेती को लोकप्रिय बनाने के लिये अनुसंधान वर्ष 2023 में शुरू किया गया। 

लाल केले से अत्यधिक पैदावार के लिये मिट्टी की तैयारी:

लाल केले की खेती करने से पहले मिट्टी में पोषक तत्वों की जांच करके पीएच मान निर्धारित कर लें। लाल केले की खेती के लिये 5.5 से 7.5 उपयुक्त पीएच मान वाली अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी अच्छी होती है। केले की अधिक उपज के लिये खेत से खरपतवार और मलबे को भूमि से साफ करें। खेत की 30-40 सेमी. की गहराई तक जुताई करें। इसके लिये 800-1200 सेमी. वार्षिक वर्षा आदर्श है और केले के ज्यादा विकास के लिये 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।

हरी खाद होती है पोषक तत्वों से भरपूर:

केले की खेती करने के लिये सबसे पहले मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिये अधिक पोषक तत्व की आवश्यकता होती है। खेत में हरी खाद के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता तो बढ़ती ही है साथ ही फसल की उत्पादकता भी बढती है। हरी खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, जस्ता, तांबा, मैग्नीज, मोलिब्डेनम और लोहा तत्व भी अधिक मात्रा में पाया जाता है। हरी खाद फसलों की उत्पादकता में हर प्रकार से भूमि में जीवांश की मात्रा बढ़ाने में उपयोग करता है। 

मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिये खेत में लगाएं ढैंचा: मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिये मई-जून माह में सनई, मूंग, लोबिया और ढैंचा की बुवाई कर सकते हैं। ये फसलें कम समय में अच्छी पैदावार के साथ मिट्टी उर्वरता भी बढ़ती है। ढैंचा की खाद मिट्टी की क्षारीयता को भी कम करने में सहायक होती है। जिन खेतों में ढैंचा की खेती की जाती है उनमें मृदा सुधारक रसायन, जिप्सम या पायराई का प्रयोग हो चुका होता है। 

केले की अच्छी पैदावार के लिये करें ढैंचा की खाद का प्रयोग: हरी खाद के अन्दर नाइट्रोजन भरपूर मात्रा में पाई जाती है। इससे मिट्टी में रसायनिक, भौतिक एवं जैविक क्रियाशीलता में वृद्धि के साथ केले की उत्पादकता, फलों की गुणवत्ता एवं अधिक उत्पादन प्राप्त करने में भी सहायक होता है। खाली खेत में नमी हेतु हल्की सिंचाई करके 40-45 किलोग्राम ढैंचा के की बुवाई करते हैं, जब फसल करीब 50-60 दिन की हो जाती है तब मिट्टी पलटने वाले हल से ढैंचा को मिट्टी में दबा देते हैं। इससे केला की रोपाई से पहले अच्छी हरी खाद तैयार हो जाती है।



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