कनाड़ा में मैकगिल यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने इस स्टडी को कंडक्ट किया है। जिसमें पाया गया है कि किशोरावस्था में स्मार्टफोन और सोशल मीडिया बहुत अधिक इस्तेमाल 23-24 की साल की उम्र में जाकर पैरानोइया, डेल्यूजन, हैलुसिनेशन (जिन्हें मति भ्रम भी कहते हैं) का कारण बनता है। ये सभी दिमाग से जुड़ी समस्याएं हैं। शोधकर्ताओं ने 1997 और 1998 के बीच जन्मे 1226 प्रतिभागियों पर इस बात का विश्लेषण किया। स्टडी को JAMA Psychiatry नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
रिसर्च के दौरान प्रतिभागियों से कई तरह के सवाल पूछे गए, यह जानने के लिए कि उन्हें परेशान करने वाले विचार, अजीब किस्म के अनुभव तो नहीं हुए हैं? इन सवालों में कुछ यूं थे- क्या आपको कभी ऐसा लगा है कि लोग आपके बारे में कोई हिंट देते हैं या फिर आपसे दोहरे मतलब वाली बातें करते हैं? क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है कि आपके मन में जो विचार आ रहे हैं वे आपके अपने विचार नहीं हैं? क्या आपने अकेले होने पर कभी आवाजें सुनी हैं?
दिए गए जवाबों के आधार पर शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि किशोरावस्था में वीडियो गेम खेलने वालों में 3 से 7 प्रतिशत ज्यादा मनोवैज्ञानिक अनुभव हुए हैं। लेकिन शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि यहां हम अकेले टेक्नोलॉजी पर ही दोष नहीं रख सकते हैं। कहा गया कि किसी बच्चे में अगर किसी डिवाइस की लत के लक्षण दिख रहे हैं तो यह इस बात की चेतावनी है कि वह जल्द ही दिमागी रूप से बीमार हो सकता है। रिसर्च टीम ने कहा कि युवाओं को एकदम से स्क्रीन से दूर कर देना भी कोई समाधान नहीं है, बल्कि यह ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है। टीम को उम्मीद है कि यह रिसर्च साइकोलॉजिस्ट को यह समझने में मदद जरूर करेगी कि युवाओं में ऐसे दिमागी लक्षण क्यों पैदा हो जाते हैं, और इस समस्या में उनकी मदद कैसे की जा सकती है।
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