Khushkhabri with IVF: आज के समय में अनियमित खानपान और बिगड़ती लाइफस्टाइल का असर सेहत पर देखने को मिलता है। इसका प्रभाव व्यक्ति की प्रजनन प्रणाली पर भी पढ़ा है। यही कारण है कि आज संतान प्राप्ति के लिए इलाज कराने वाले लोगों की संख्या में तेजी देखने को मिली है। इसके चलते ही देश में आईवीएफ सेंटर की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। संतान की इच्छा रखने वाले महिला और पुरुष के लिए ऐसे सेंटर किसी वरदान से कम नहीं हैं। लेकिन, आज भी आईवीएफ को लेकर लोगों के मन में कई प्रश्न रहते हैं। इन्हीं प्रश्नों के सटिक उत्तर लोगों को तक पहुंचाने के लिए ओनली माय हेल्थ की ओर से एक विशेष सीरीज Khushkhabri with IVF को शुरु किया गया है। इसमें आईवीएफ से जुड़े हर पहलु को विस्तार से बताया जाता है। आज की इस कड़ी महिलाओं को आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान ब्लीडिंग का सामना क्यों करना पड़ता है। साथ ही, इससे कैसे बचाव किया जा सकता है, के विषय में विस्तार से बताया गया है।
इस लेख में आगे यशोदा फर्टिलिटी एंड आईवीएफ सेंटर कड़कड़डूमा की इन्फ़र्टिलिटी और आईवीएफ़ कंसलटेंट डॉ. स्नेहा मिश्रा से जानते हैं कि आईवीएफ ट्रीटमेंट में महिलाओं को ब्लीडिंग क्यों होती है। IVF की प्रक्रिया के दौरान व्यक्तिगत परामर्श और विशेषज्ञ मार्गदर्शन बेहद आवश्यक है। इससे सफलता की संभावनाएं बढ़ाई जा सकती है।
आईवीएफ के दौरान ब्लीडिंग के सामान्य कारण क्या हो सकते हैं? – Causes Of Bleeding During IVF Treatment In Hindi
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग (Implantation Bleeding)
आईवीएफ के बाद गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग एक सामान्य स्थिति है। जब भ्रूण गर्भाशय की दीवार से जुड़ता है, तो महिला को हल्की ब्लीडिंग हो सकती है। यह आमतौर पर हल्का और गुलाबी या भूरे रंग का होता है और कुछ दिनों में बंद हो जाता है।
हार्मोनल परिवर्तन – (Hormonal Changes)
आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान और गर्भावस्था के पहले कुछ हफ्तों में महिला के शरीर में कई हार्मोनल बदलाव होते हैं। इन परिवर्तनों के कारण गर्भाशय की परत अधिक संवेदनशील हो सकती है, जिससे ब्लीडिंग हो सकती है।
सर्विकल इरिटेशन (Cervical Irritation)
गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) में अधिक ब्लड सर्कुलेशन होता है, जिससे वह अधिक संवेदनशील हो जाती है। आईवीएफ गर्भधारण के दौरान योनि में प्रवेश के लिए किए गए अल्ट्रासाउंड, वजाइनल टेस्ट के बाद हल्की ब्लीडिंग हो सकती है।
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy)
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी तब होती है जब भ्रूण गर्भाशय के बाहर, जैसे कि फैलोपियन ट्यूब में जुड़ जाता है। यह एक गंभीर स्थिति है और इसके परिणामस्वरूप भारी ब्लीडिंग, पेट में तेज दर्द, और चक्कर आना हो सकता है। इसे तुरंत चिकित्सीय देखभाल की आवश्यकता होती है।
गर्भपात का खतरा (Miscarriage Risk)
गर्भधारण के शुरुआती हफ्तों में ब्लीडिंग कभी-कभी गर्भपात का संकेत भी हो सकता है। गर्भपात होने पर, गर्भाशय से भ्रूण और गर्भाशय की परत बाहर निकलने लगती हैं, जिससे भारी ब्लीडिंग और पेट में ऐंठन हो सकती है।
आईवीएफ में ब्लीडिंग को रोकने के उपाय – Prevention Tips Of Bleeding During IVF Treatment in Hindi
आईवीएफ के दौरान होने वाली ब्लीडिंग को रोकना कई बार संभव नहीं होता है, लेकिन कुछ सावधानियों का पालन करके जोखिम को कम किया जा सकता है।
आराम करें (Proper Rest)
ब्लीडिंग के जोखिम को कम करने के लिए गर्भावस्था के शुरुआती हफ्तों में अधिक से अधिक आराम करना महत्वपूर्ण है। भारी कामकाज, दौड़-धूप, या भारी वजन उठाने से बचें, क्योंकि इससे गर्भाशय पर दबाव बढ़ सकता है और ब्लीडिंग की संभावना हो सकती है।
तनाव को नियंत्रित करें (Manage Stress)
तनाव हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकता है, जिससे ब्लीडिंग की संभावना बढ़ जाती है। ध्यान, योग और गहरी सांस लेने की तकनीकों का अभ्यास करके आप अपने तनाव को नियंत्रित कर सकती हैं।
सर्विकल इरिटेशन से बचें
गर्भावस्था के शुरुआती हफ्तों में वजाइनल जांच या यौन संबंध बनाने से बचें, खासकर अगर आपने पहले से ब्लीडिंग का अनुभव किया है। इससे सर्विक्स को आराम मिलेगा और ब्लीडिंग के जोखिम को कम किया जा सकता है।
हार्मोनल सप्लीमेंट्स लें
कुछ महिलाओं में प्रोजेस्टरॉन और अन्य हार्मोनों की कमी के कारण ब्लीडिंग हो सकता है। डॉक्टर द्वारा दिए गए हार्मोनल सप्लीमेंट्स लेने से इस कमी को पूरा किया जा सकता है और गर्भावस्था सुरक्षित बनी रह सकती है।
समय-समय पर चिकित्सा परामर्श लें (Regular Medical Consultation)
आईवीएफ गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से डॉक्टर से मिलना बेहद जरूरी है। किसी भी प्रकार की ब्लीडिंग होने पर डॉक्टर को तुरंत सूचित करें। समय-समय पर अल्ट्रासाउंड और जांच से भ्रूण के विकास की स्थिति का पता चलता रहता है, जिससे संभावित जटिलताओं का समय रहते निदान हो सकता है।
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आईवीएफ में प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होना असामान्य नहीं है, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ब्लीडिंग के कारण कई हो सकते हैं, और हर महिला की स्थिति अलग होती है। इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग से लेकर गर्भपात या एक्टोपिक प्रेग्नेंसी तक के कारणों को पहचानना और समय रहते डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है। इसके अलावा, उचित देखभाल, आराम, और नियमित चेकअप से आप ब्लीडिंग के जोखिम को कम कर सकते हैं और स्वस्थ गर्भावस्था की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।