भारत में शव दान – Drishti IAS


भारत में शव दान

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि के कारण शवों की मांग में वृद्धि हुई है लेकिन भारत में शवों के दान में हुई कमी के कारण इन संस्थानों को चिकित्सा शिक्षा के लिये लावारिस शवों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

  • शव दान के विषय में: मृत्यु के बाद अपना संपूर्ण शरीर को वैज्ञानिक उद्देश्य हेतु दान को शव दान कहा जाता है, इसका मुख्य उद्देश्य चिकित्सा पेशेवरों को शल्य चिकित्सक बनने तथा मानव शरीर रचना को समझने के लिये प्रशिक्षण में सहायता प्रदान करना है।
  • पात्रता: 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति कानूनी रूप से अपना शरीर दान करने के लिये सहमति दे सकता है। पूर्व सहमति न होने की स्थिति में, निकटतम रिश्तेदार दान कर सकते हैं।
  • अपवर्जन: अंग दाताओं या तपेदिक, एचआईवी या सेप्सिस जैसे संक्रामक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों तथा चिकित्सीय-कानूनी मामलों में शामिल व्यक्तियों के शवों को अस्वीकार किया जा सकता है।
  • लावारिस शव: राज्य के एनाटॉमी अधिनियम के तहत कॉलेज लावारिस शवों का उपयोग करते हैं, जहाँ रिश्तेदारों को 48 घंटों के भीतर शव पर दावा करना होता है।
    • लावारिस शव प्रायः हाशिए पर पड़े या गरीब व्यक्तियों के होते हैं, जिससे सहमति के बारे में नैतिक प्रश्न उठते हैं।

  • अंग दान के विपरीत,संपूर्ण शरीर के दान की निगरानी के लिये कोई राष्ट्रीय संगठन नहीं है। आमतौर पर, यह उत्तरदायित्त्व सीधे मेडिकल कॉलेजों के एनाटॉमी विभागों पर।
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन, मृत दाताओं से अंग प्रत्यारोपण का प्रबंधन करता है

और पढ़ें: भारत में चिकित्सा शिक्षा की स्थिति 





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