ब्रेस्ट कैंसर के मामले महिलाओं में काफी देखने को मिल रहे हैं। लेकिन आज के समय में महिलाएं अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रही हैं, और किसी भी तरह की बीमारी से लड़ने और खुद को हेल्दी रखने के लिए हर संभव प्रयास करने की कोशिश कर रहती हैं। ब्रेस्ट कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसका समय पर निदान न होने के कारण आपकी जान जाने का जोखिम भी बढ़ सकता है। अक्टूबर महीना, ब्रेस्ट कैंसर मंथ के नाम से जाना जाता है। इस पूरे महीने में ब्रेस्ट कैंसर के प्रति महिलाओं को जागरूक किया जाता है और बचाव के तरीके बताने के लिए कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस समय ब्रेस्ट कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जंग जीतने वाली महिलाएं भी अन्य कैंसर मरीजों का हौंसला बढ़ाने के लिए आगे आती हैं और उन्हें अपनी जर्नी के बारे में बता कर इस बीमारी से लड़ने के लिए हिम्मत देती हैं। इन्हीं महिलाओं में दिल्ली की रहने वाली आंचल शर्मा भी हैं, जो जनवरी, 2017 में ब्रेस्ट कैंसर के बारे में पता चला। लेकिन काफी कठिनाइयों और मुश्किलों के बाद भी आंचल ने हिम्मत नहीं हारी और ब्रेस्ट कैंसर को मात देकर आज एक नॉर्मल लाइफ जीने के साथ, वर्तमान में ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं का हौंसला बढ़ाने और उन्हें जागरूक करने में लगी हुई हैं। ऐसे में आइए इस ब्रेस्ट कैंसर जागरूरता महीने में ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर आंचल शर्मा से जानते हैं उनकी जर्नी के बारे में-
“22 दिन तक अकेले किया इस बीमारी का सामना”
आंचल बताती हैं कि, “ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जानकारी मिलने के बाद मैं बिल्कुल ब्लैकआउट हो गई थी, क्योंकि ये खबर मेरे लिए काफी डरा देने वाली थी। मुझे कैंसर होने की जानकारी देने के दौरान डॉक्टर क्या कह रहे थे, मैं कुछ भी सुनने की हालत में नहीं थी। उस समय मुझे ऐसा लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई हो। ये एक ऐसा समय था, जब मेरे परिवार में बहुत समय बाद खुशियों आई थी। मेरे भाई की शादी थी, और घर के सभी सदस्य बहुत खुश थे। ऐसे में मैं अपने परिवार के किसी भी सदस्या को दुख देने के बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं भाई की शादी होने तक किसी को भी इस बारे में कुछ नहीं बताउंगी। इस दौरान घर की शादी के फंक्शन के बीच मैं डॉक्टर के पास अपने बायोप्सी, ब्लड टेस्ट आदि के लिए अकेले जाती और शाम को फंक्शन में हंसी खुशी शामिल होती थी। भाई की शादी के सभी रिती रिवाज खत्म होने के बाद मैंने ब्रेस्ट कैंसर की पहली सर्जरी अकेले जाकर करवाई, जिसमें मुझे कीमो पोर्ट इंस्टॉल किया गया। सर्जरी करवाने के बाद जब मैं घर लौटी, तो मेरे घर में दुख का माहौल छा गया।
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“ट्रीटमेंट के दौरान कई समस्याओं का किया सामना”
मेरा फाइनेंशियल बैक ग्राउंड ज्यादा मजबूत नहीं था, जिस कारण मुझे अपनी ट्रीटमेंट के दौरान भी नौकरी करनी पड़ी, ताकि मेरा इलाज न रुक जाए। ब्रेस्ट कैंसर से छुटकारा पाने के लिए मैं 6 बार कीमो थेरेपी, 32 बार रेडिएशन और 2 बार सर्जरी से गुजरी। ब्रेस्ट कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान मुझे कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं से गुजरना पड़ा, जिसका सामना करना मेरे लिए काफी मुश्किल था। ब्रेस्ट कैंसर के ट्रीटमेंट के दौरान भी होने वाले साइड इफेक्ट्स का सामना करना मेरे लिए साइकॉलिजिकल तौर पर मुश्किल था, लेकिन इससे ज्यादा 9 से 10 घंटे के दौरान नौकरी करने के कारण शरीर और दिमाग पर पड़ने वाले दबाव को सहन कर पाना मुश्किल था।”
“खुद को मानसिक तौर पर कि मजबूत रखने की कोशिश”
आंचल का कहना है कि ब्रेस्ट कैंसर के पूरी ट्रीटमेंट के दौरान शारीरिक समस्याओं को बर्दाश्त कर पाना जितना मुश्किल होता है, उतना ही मुश्किल अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर रखना भी होता है। आंचल बताती हैं कि, “कीमो के साइड इफेक्ट्स को जानने के बाद मैंने अपने बालों के झड़ने का इंतजा नहीं किया, बल्कि बाल झड़ने से पहले खुद ही अपने बालों को शैव कर लिए, ताकि उस समय होने वाले मानसिक तनाव को कंट्रोल कर सकें।”
परिवार का मिला सपोर्ट- आंचल
आंचल का कहना है कि, “मेरी मम्मी और भाई ने उन्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया। ब्रेस्ट कैंसर की पूरी जर्नी के दौरान मेरे परिवार ने मुझे विक्टिम की तरह महसूस नहीं करने दिया, बल्कि उन्होने हर समय मेरा हौंंसला बढ़ाया। उन्होने कभी मुझे यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं बचुंगी नहीं, बल्कि उन्हें पूरी यकीन था कि मुझे कुछ नहीं होगा और मैं इस जंग को जरूर जीत कर रहूंगी।”
पैसों की कमी का करना पड़ा सामना
आंचल एक सेल्फ डिपेंडेंट महिला हैं, और उनकी फाइनेंशियल कंडीशन ज्यादा अच्छी न होने के कारण उन्हें अपनी गाड़ी, ज्वेलरी आदि चीजों को बेचना पड़ा, ताकि वे अपनी इलाज पूरा करवा सकें। आंचल बताती हैं कि, “पैसों की कमी के कारण उन्हें उनका एक रेडिएशन थेरेपी देरी से करवानी पड़ी, जिसका असर उनके सेहत पर नकारात्मक तौर पर पड़ सकता था।” आंचल आगे बताती हैं कि, “इसके अलावा एक इवेंट कंपनी में काम करने के दौरान उन्हें काफी देर तक खड़ा रहना पड़ता था, जिस कारण एक बार उनके पैर की उंगलियों में पस भी जम गई, लेकिन इसके बावजूद भी वो आराम करने के लिए घर नहीं जा सकीं, क्योंकि उन्हें अपना इवेंट पूरा खत्म होने तक वहां रुकना था।”
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कैंसर के मरीजों को सपोर्ट करने के लिए शुरू किया अभियान
अपनी ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी से जीतने के बाद और ठीक होने के बाद आंचल की दुनिया पूरी तरह बदल गई। न सिर्फ उनके जीने का तरीका बदल गया, बल्कि उनके जीने का मकसद भी पूरी तरह बदल गया है। कैंसर की वजह से आंचल ने “Can Heal” और “Non Profit- Meals Of Happiness” नाम की कम्यूनिटी और NGO की शुरुआत की, जिसमें वे जगह-जगह जाकर कैंसर पेशेंट्स के लिए वर्कशॉप ऑर्गेनाइज करती है, उन्हें इस बीमारी से लड़ने के लिए हौंसल देने के साथ हेल्दी लाइफस्टाइल कैसे फॉलो करें इस बारे में बताती हैं। इसके साथ ही अपनी NGO की मदद से वे कैंसर पीड़ितों से अलग-अलग स्थानों पर जाकर उनसे मिलती हैं उनके लिए खाने का इंतजाम करती हैं और जितनी संभव हो सकें उनकी मदद करने की कोशिश करती है।
आंचल का मानना है कि कैंसर होने का मतलब यह नहीं है कि आपका मरना कंफर्म है, बल्कि इस बीमारी से बाहर निकला जा सकता है। किसी भी बीमारी से बाहर आना संभन है, अगर आप सही इलाज, डाइट और हेल्दी लाइफस्टाइल फॉलो करें और अपने डॉक्टर के द्वारा बताई गई सभी गाइडलाइन्स को फॉलो करें। इसलिए, कैंसर होने पर हौंसला नहीं हारना चाहिए, बल्कि खुद पर भरोसा रखें और जितना संभव हो इस बीमारी से लड़ने की कोशिश करें, और खुद को पॉजिटिव रखें।