भगत सिंह की जयंती
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
28 सितंबर 2024 को महान क्रांतिकारी भगत सिंह की जयंती मनाई गई, जिनकी शिक्षाएँ भारत के लोगों को प्रेरित करती हैं। उनकी जयंती राष्ट्रीय नायक के रूप में मनाई जाती है, जिन्होंने साहस और बलिदान के साथ ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध देश की आज़ादी के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया था।
भगत सिंह कौन थे?
- जन्म: भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को बंगा, पंजाब, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। वे एक सिख परिवार से थे जो उपनिवेशवाद विरोधी गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थे, उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे।
- प्रारंभिक जीवन: जब वह बारह वर्ष के थे, तब उन्होंने जलियाँवाला बाग में हुए नरसंहार को देखा, जिससे उनमें देशभक्ति की भावना प्रबल हुई और उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लिये लड़ने की प्रेरणा मिली।
- शिक्षा: उन्होंने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया, जिसने स्वदेशी आंदोलन को बल मिलने के साथ क्रांतिकारी विचारों के प्रसार हेतु एक मंच प्राप्त हुआ।
- क्रांतिकारी संगठन: भगत सिंह वर्ष 1924 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के सदस्य बने, बाद में वर्ष 1928 में इसका नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) कर दिया गया।
- नौजवान भारत सभा की स्थापना वर्ष 1926 में भगत सिंह ने की थी, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम के लिये युवाओं को संगठित करना था।
- प्रमुख कार्य: भगत सिंह पुलिस की बर्बरता के कारण लाला लाजपत राय की मृत्यु के प्रतिशोध के रूप में वर्ष 1928 में पुलिस अधिकारी जेपी सॉन्डर्स की हत्या (लाहौर षडयंत्र केस) में शामिल थे।
- उन्होंने 18 अप्रैल, 1929 को बी.के. दत्त के साथ मिलकर दमनकारी ब्रिटिश कानूनों के विरोध में केंद्रीय विधान सभा में बम फेंका।
- गिरफ्तारी और मुकदमा: वर्ष 1929 में उन्हें बम कांड के लिये गिरफ्तार किया गया साथ ही लाहौर षडयंत्र मामले में हत्या के आरोप मे उन पर मुकदमा चला, जिसमे उन्हें दोषी ठहराया गया तथा मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई।
- 23 मार्च, 1931 को साथी क्रांतिकारी सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर में उन्हें फाँसी दे दी गई। भगत सिंह को शहीद-ए-आज़म के नाम से जाना जाता है।
- साहित्यिक योगदान: उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियों में ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’, ‘जेल डायरी’ और अन्य कृतियाँ, समाजवाद तथा क्रांति का समर्थन करने वाले कई राजनीतिक घोषणा-पत्र शामिल हैं।
- अपनी प्रारंभिक रचना विश्व प्रेम में भगत सिंह ने समानता के महत्त्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने भूख और युद्ध से मुक्त एक ऐसे विश्व की परिकल्पना की, जो मानव जाति और राष्ट्रीयता की सीमाओं से परे हो।
- विचारधाराएँ: उन्होंने मार्क्सवादी और समाजवादी विचारधाराओं का समर्थन किया, तर्कवाद, समानता और न्याय पर ज़ोर दिया। संगठित धर्म, जिसे मानसिक एवं शारीरिक गुलामी के रूप में देखा जाता था, की आलोचना की।
- विरासत: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को याद करने के लिये प्रत्येक वर्ष उनके जन्मदिन और उनकी फाँसी के दिन को याद किया जाता है। उन्हें एक राष्ट्रीय नायक और शहीद के रूप में जाना जाता है।
- प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि देने के लिये शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
वर्तमान में विश्व में भगत सिंह की विचारधारा की क्या प्रासंगिकता है?
- विश्व बंधुत्व: भगत सिंह का विश्व प्रेम का विचार बढ़ते राष्ट्रवाद, नस्लवाद और आर्थिक असमानताओं के समय में वैश्विक शांति, समानता एवं सहयोग को बढ़ावा देना है।
- सांप्रदायिक सद्भाव: उनके लेख सांप्रदायिक दंगे और उनके समाधान में सांप्रदायिकता की उनकी आलोचना समकालीन भारत में प्रासंगिक है, जहाँ धार्मिक एवं सांप्रदायिक तनाव सामाजिक एकता को कमज़ोर कर रहे हैं।
- राजनीति में छात्रों की भागीदारी: भगत सिंह ने छात्रों से राजनीतिक चर्चा में भाग लेने का आह्वान किया है, जैसा कि उनके लेख ‘छात्र और राजनीति’ में रेखांकित किया गया है, जो वर्तमान में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर युवाओं की भूमिका के बारे में चल रहे संवाद के अनुरूप है।
- कमज़ोर समुदायों का उत्थान: सिंह ने अपनी पुस्तक ‘द प्रॉब्लम ऑफ अनटचेबिलिटी’ में कमज़ोर समूहों के सशक्तीकरण और जातिगत पदानुक्रम को समाप्त करने का समर्थन किया है, जो आज भारत में सामाजिक न्याय एवं समानता के लिये चल रहे संघर्षों के साथ मेल खाता है।
- क्रांतिकारी भावना: भगत सिंह का क्रांति पर दृष्टिकोण, जो उनके लेख ‘क्रांति क्या है?’ में रेखांकित है, दमनकारी प्रणालियों और प्रतिक्रियावादी शक्तियों को निरंतर चुनौती देने का आह्वान करता है।
- यह विचार वैश्विक स्तर पर राजनीतिक सुधार और सामाजिक परिवर्तन के आधुनिक आंदोलनों का समर्थन करता है।