केज कल्चर, मछली पालन का भविष्य, जानिए कैसे करें शुरुआत | मछली पालन | केज कल्चर के फायदे | मछली पालन तकनीक


केज कल्चर मछली पालन

मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए बिहार के मुंगेर जिले में केज कल्चर तकनीक शुरू की गई है। केज कल्चर तकनीक से तालाब या झील की तुलना में मछलियों का विकास तेजी से होता है। मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए केज कल्चर तकनीक से पहली बार बिहार के मुंगेर जिले में मछली उत्पादन चालू किया जा रहा है।

केज कल्चर तकनीक से कैसे करें मछली पालन:

केज कल्चर तकनीक से मछली पालन जलाशय में फ्लोटिंग केज यूनिट बनाए जाते हैं। एक यूनिट में 4 घेरा होते हैं, एक घेरा करीब 6 मीटर लंबा, 4 मीटर चौड़ा और करीब 4 मीटर की गहराई होती है। प्लास्टिक से बने घेरे के चारों ओर मजबूत जाल होता है। पानी में तैरते जाल के घेरों में मछलियों को  पाला जाता है। इन जालों में छोटी साइज की मछलियां पालने के लिए छोड़ी जाती है। मछलियों को प्रतिदिन आहार दिया जाता है और यह मछलियां 5-6 महीने में एक से सवा किलो की हो जाती है।  

इस तकनीक से मछली पालन के फायदे:

केज तकनीक से मछलियों का विकास अधिक तेजी से होता है। इसमें मछलियां स्वस्थ्य एवं सुरक्षित रहती हैं। इसमें मछलियों के बीमार होने की संभावना कम होती है, क्योंकि बाहरी मछलियों से संपर्क नहीं होता और संक्रमण का खतरा भी नहीं होता है। मछली पालक अपनी जरूरत और मांग के हिसाब से केज से मछली निकाल सकते हैं और मछलियों को केज में ही छोड़ सकते हैं। इसके अलावा केज तकनीक से मछली पालकों को कम लागत एवं कम समय में अधिक मुनाफा होता है। एक केज में ऊंगली साइज की करीब 6 हजार तक की मछलियों का पालन किया जाएगा। प्रति केज से 45 से 50 क्विंटल मछलियों का उत्पादन हो सकता है। 

मत्स्य पालकों को आत्मनिर्भर बनाना: केज कल्चर तकनीक से सबसे पहले मछली उत्पादन बिहार के मुंगेर जिले चालू किया जा रहा है। इसके लिए खड़गपुर झील में लगभग 17 केज कल्चर यूनिट लगाये गए हैं। समय एवं लागत के हिसाब से यह तकनीक मछली पालकों के लिए फायदेमंद है। बताया गया कि मत्स्य पालकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए राज्य सरकार की जलाशय मत्स्य विकास योजना के अंतर्गत 51 लाख रुपये की लागत से मत्स्य पालक चंदन कुमार यूनिट लगाया गया है। 



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