भारत में टाइफाइड के निदान में विडाल टेस्ट
स्रोत: द हिंदू
भारत में टाइफाइड के निदान के हेतु विडाल टेस्ट के व्यापक उपयोग ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन के लिये इसकी सटीकता और निहितार्थ के विषय में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- विडाल टेस्ट, एक तीव्र रक्त परीक्षण, अपनी सीमाओं और गलत परिणामों की प्रवृत्ति के बावज़ूद, टाइफाइड बुखार के निदान के लिये भारत में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
- साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया (Salmonella typhi bacteria) के कारण होने वाला टाइफाइड, दूषित भोजन एवं जल के सेवन से फैलता है, जो तेज़ बुखार, पेट दर्द, कमज़ोरी, मतली, उल्टी और त्वचा संबंधी रोग जैसे लक्षणों के साथ आंत्र ज्वर के रूप में उत्पन्न होता है।
- कुछ वाहक महीनों तक बैक्टीरिया छोड़ते हुए लक्षण रहित रह सकते हैं, उपचार न होने पर मलेरिया और इन्फ्लूएंज़ा जैसी अन्य बीमारियों की तरह जीवन के लिये जोखिम बन सकता है।
- किसी मरीज़ के रक्त या अस्थि मज्जा से रोगाणुओं को अलग करना और उन्हें प्रयोगशाला में विकसित करना टाइफाइड के निदान के लिये स्वर्ण मानक है, लेकिन इस प्रक्रिया में समय लगता है तथा अत्यधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।
- विडाल टेस्ट बैक्टीरिया के विरुद्ध एंटीबॉडी का पता लगाता है, परंतु पूर्व एंटीबायोटिक उपचार तथा अन्य संक्रमण या टीकाकरण से एंटीबॉडी के साथ क्रॉस-रिएक्टिविटी जैसे विभिन्न कारकों के कारण सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम दे सकता है।
- टाइफाइड के गलत निदान से उपचार में देरी और जटिलताएँ हो सकती हैं, जो भारत में इस बीमारी की अस्पष्ट पहचान करने में सहायक होती हैं।
- विडाल टेस्ट द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) में योगदान देता है, जो एक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा उत्पन्न करता है।
- टाइफाइड की चुनौतियों से निपटने के लिये निदान तथा AMR निगरानी तक बेहतर पहुँच महत्त्वपूर्ण है।
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