इस बारे में जानकारी रखने वाले सूत्रों ने Reuters को बताया, “राइट-हैंड ड्राइव कारों को भारत के लिए एलोकेट किया जाएगा। कंपनी ने इनकी मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दी है।” हालांकि, यह पता नहीं चला है कि टेस्ला के किस मॉडल का भारत को एक्सपोर्ट किया जाएगा। जर्मनी में बर्लिन के निकट कंपनी के प्लांट में मॉडल Y की मैन्युफैक्चरिंग की जाती है। पिछले महीने केंद्र सरकार ने EV कंपनियों के न्यूनतम 50 करोड़ डॉलर का इनवेस्टमेंट करने और तीन वर्षों में मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने की शर्त पर इम्पोर्ट टैक्स में कटौती की घोषणा की थी। इससे टेस्ला को फायदा होगा जिसने इम्पोर्ट टैक्स में कटौती के लिए लॉबीइंग की थी। हालांकि, देश की ऑटोमोबाइल कंपनियां इस छूट का विरोध कर रही थी।
इस बारे में टिप्पणी के लिए भेजी गई ईमेल का टेस्ला ने उत्तर नहीं दिया। हाल ही में Financial Times की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि टेस्ला अपनी फैक्टरी के लिए गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों पर फोकस करेगी जहां पहले से ऑटोमोटिव इंडस्ट्री की मौजूदगी है। अमेरिका और चीन जैसे कंपनी के बड़े मार्केट्स में डिमांड घटने के कारण यह नए मार्केट्स में संभावना देख रही है। मौजूदा वर्ष की पहली तिमाही में टेस्ला की सेल्स 8.5 प्रतिशत घटी है।
यह लगभग चार वर्ष में पहली बार है कि जब वर्ष-दर-वर्ष आधार पर कंपनी की तिमाही सेल्स में कमी हुई है। इससे टेस्ला की ग्रोथ को लेकर आशंका बढ़ गई है। बिलिनेयर Elon Musk की इस कंपनी ने पहली तिमाही में 3,86,810 व्हीकल्स की डिलीवरी की है। दुनिया भर में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की सेल्स गिरना और BYD जैसे EV मेकर्स से कड़ी टक्कर मिलना इसके पीछे प्रमुख कारण हैं। पिछले वर्ष की समान तिमाही में टेस्ला ने लगभग 4,23,000 यूनिट्स की बिक्री की थी। कंपनी ने अपने EV के प्राइसेज भी घटाए थे लेकिन इसके बावजूद इसे सेल्स में कमी का सामना करना पड़ा है। इसका असर टेस्ला के शेयर प्राइस पर भी पड़ा है। इस वर्ष कंपनी के शेयर में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट हुई है।
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