गर्भावस्था किसी भी महिला के लिए चुनौतीपूर्ण समय होता है। इस दौरान उसे बहुत सारे शारीरिक और मानसिक बदलावों का सामना करना पड़ता है। हालिया आंकड़े प्रेगनेंसी में ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते हुए जोखिम की ओर इशारा कर रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ब्रेस्ट कैंसर की गिनती दूसरे प्रमुख कैंसर के रूप में की जाती है। डब्ल्यू एच ओ के मुताबिक हर साल स्तन कैंसर के 2.3 मिलियन से ज़्यादा मामले सामने आते हैं। इसके अलावा 95 फीसदी देशों में स्तन कैंसर महिला कैंसर से होने वाली मौतों का पहला या दूसरा प्रमुख कारण बनकर उभर रहा है। हालिया आंकड़े प्रेगनेंसी के दौरान ब्रेस्ट कैंसर के जोखिमों में बढ़ोतरी देख रहे हैं। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते है। मगर इनमें से ज्यादातर प्रेगनेंसी का समय पूरा होते और प्रसव के बाद अपने आप ठीक होने लगते हैं। प्रेगनेंट महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते मामले चिंता बढ़ा रहे हैं। आइए जानते हैं क्या हैं इसके कारण और इस जोखिम से कैसे बचा जा सकता है (Breast cancer during pregnancy) ।
क्या हैं गर्भावस्था में स्तन कैंसर के मामले (What are the cases of breast cancer in pregnancy?)
नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार गर्भावस्था के दौरान स्तन कैंसर के मामले अब पहले से ज्यादा देखे जा रहे हैं। लगभग हर 3,000 गर्भवती महिलाओं में से 1 महिला ब्रेस्ट कैंसर की शिकार हो रही है। यह गर्भवती और पोस्टपार्टम महिलाओं में होने वाला सबसे आम कैंसर है। इसके अलावा वे महिलाएं, जो 30 की उम्र के बाद गर्भवती होती हैं, उनमें ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क अन्य महिलाओं की अपेक्षा में बढ़ जाता है।
रिसर्च के अनुसार अधिकतर मामले 32 से 38 साल की उम्र की महिलाओं में पाए जाते हैं। दरअसल, बहुत सी महिलाएं प्रेगनेंसी में देरी कर देती हैं। ऐसे में गर्भावस्था के दौरान स्तन कैंसर को जोखिम बढ़ जाता है।
क्यों बढ़ रहा है गर्भावस्था में स्तन कैंसर का जोखिम (Why is the risk of breast cancer increasing in pregnancy?)
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार गर्भावस्था से जुड़े स्तन कैंसर की जानकारी गर्भावस्था के दौरान या बच्चे के जन्म के पहले वर्ष में मिलती है। स्तन कैंसर विकसित होने का जोखिम महिला की उम्र के साथ बढ़ता है। गर्भवती होने से स्तन कैंसर नहीं होता है, बल्कि शरीर में पहले से मौजूद स्तन कैंसर कोशिकाएं हार्मोन में आने वाले बदलाव के कारण तेज़ी से परिवर्तित होकर बढ़ने लगती हैं।
ऑनकोलॉजिस्ट डॉ मनदीप सिंह मल्होत्रा बताते हैं कि ब्रेस्ट कैंसर की पीक एज 45 वर्ष है। कम उम्र की महिलाएं तेज़ी से ब्रेस्ट कैंसर की चपेट में आ रही है। बदल रहा लाइफस्टाइल इस समस्या का मुख्य कारण है। शारीरिक व्यायाम की कमी और गलत खानपान के चलते महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजेन हार्मोन का स्तर बढ़ रहा है, जो कैंसर का जोखिम कारक है। इसके अलावा अनुवांशिकता इस समस्या को बढ़ा रही है। दरअसल, बीआरसीए 1 और बीआरसीए 2 ऐसी जीन है, जो डीएनए को रिपेयर करती है , जिससे प्रोटीन का उत्पादन बढ़ने लगता हैं। इसमें म्युटेशन से जीन डीएनए को रिपेयर करने की क्षमता खोने लगता है, जिससे जेनेटिक ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ता है और महिलाओं में कम उम्र में ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम को बढ़ा रहा है।
वे लोग जो समय पर ब्रेस्ट चेकअप और स्क्रीनिंग को अपनाते हैं, उनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम होने लगता है। अर्ली स्टेज पर ब्रेस्ट कैंसर की जानकरी मिलने से 40 से 50 फीसदी तक इस रोग से बचा जा सकता है। साथ ही हार्मोन पॉजिटिव होने के चलते कीमोथेरेपी की भी आवश्यकता नहीं होती है।
क्या हो सकते हैं गर्भावस्था में ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण (Signs of breast cancer)
- ब्रेस्ट में गांठ महसूस होती है और वो उभरी हुई नज़र आने लगती है। गांठ में दर्द रहने से ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
- स्तन के साइज़ में बदलाव महसूस होने लगता है। निप्पल के रंग से लेकर बनावट तक सब कुछ बदला हुआ दिखता है। इसके अलावा ब्रेस्ट के निप्पल पर डिंपल दिखने लगता है।
- दर्द का अनुभव होने लगता है। ब्रेस्ट में दर्द होने से समस्या बढ़ने लगती है। दर्द सामान्य से तेज़ होने लगता है।
- असामान्य डिस्चार्ज का सामना करना पड़ता है। ब्रेस्ट से होने वाला डिस्चार्ज दूध से अलग दिखता है और सूजन महसूस होती है।
- निप्पल पर रूखापन बढ़ने लगता है और अंडरआर्म में सूजन बढ़ने लगती है।
क्या प्रेगनेंसी के दौरान ब्रेस्ट कैंसर का इलाज शरू किया जा सकता है? (Can I start breast cancer treatment during pregnancy?)
इस बारे में गायनोकोलॉजिस्ट डॉ शिवानी कपूर बताती हैं कि प्रेगनेंसी में ब्रेस्ट कैंसर के कई मामले सामने आते हैं। अगर सात सप्ताह की प्रेगनेंसी के दौरान कैंसर डिटेक्ट होता है, तो उसमें प्रेगनेंसी टर्मिनेट करने की सलाह दी जाती है। मगर कुछ मामलों में अगर कैंसर 30 सप्ताह के दौरान डिटेक्ट होता है, तो बच्चे के जन्म के बाद कीमोथेरेपी करने का स्टेप लिया जाता है।
वहीं कुछ मामले ऐसे भी हैं, जिसमें प्रेगनेंसी के दौरान कैंसर को एग्रेसिव होने से बचाने के लिए मेडिकेशन शुरू कर दी जाती है। मगर कीमोथेरेपी और सर्जरी बाद में की जाती है।
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार गर्भावस्था की पहली तिमाही में महिलाओं को कीमोथेरेपी नहीं दी जाती है। दरअसल, इस दौरान बच्चे के आंतरिक अंग विकसित होने लगते हैं। रिसर्च के मुताबिक दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान कुछ कीमो दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर गर्भावस्था के अंतिम तीन सप्ताह में कैंसर की दवाओं को देने से परहेज किया जाता है।
प्रेगनेंसी में स्तन कैंसर का संदेह हो तो आपको करवाने चाहिए ये टेस्ट (Test to detect breast cancer during pregnancy)
1. क्लीनिकल ब्रेस्ट एग्ज़ामिनेशन
हेल्थ प्रोफेशनल्स की मदद से ब्रेस्ट के उपर और अंडर आर्म के पास बनने वाली महीन गांठों की जांच की जाती है। गांठ का बढ़ना और ब्रेस्ट में नज़र आने वाला बदलाव ब्रेसट कैंसर की ओर इशारा करता है।
2. अल्ट्रासाउंड
नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित प्रक्रिया है। इसकी मदद से ब्रेस्ट टिशूज की इमेज तैयार की जाती है, जिसे सोनोग्राम कहा जाता है।
3. बायोप्सी
सेल्स या टिशूज़ के बारे में जानकारी पाने के लिए ब्रेस्ट को माइक्रोस्कोप के नीचे देखा जाता है, जिससे कैंसर के लक्षणों की जांच की जा सके। यदि स्तन में गांठ पाई जाती हैए तो बायोप्सी की जा सकती है।